Chandigarh News: दुनिया में परिवर्तन ही है साश्वत : मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

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Chandigarh News: चंडीगढ़, 18 नंबवर : दुनिया में परिवर्तन ही साश्वत है। हमने किताबों में इतिहास को बदलने के बारे में अवश्य ही पढ़ा होगा। समय के साथ यह परिवर्तन होना आवश्यक था। जीवों से मनुष्यों के परिवर्तन के बारे में भी हम पूर्ण रूप से जानते हैं। इतिहास में मनुष्य कुछ और था, और आज के इस वैज्ञानिक युग में मानवों की परिभाषा कुछ और ही है। आज की इस रफ्तार भरी जिंदगी में लोग अपनी इच्छाओं के अनुसार खुद को बदलते रहते है। उनके मन मुताबिक काम न होने पर ये दुसरे या दुनिया को कोसते है। जीवन में अनुभवों से सीखकर खुद को बदलने की जरूरत होती है। अगर हम बदलना बंद कर देते हैं तो एक ही जगह रुक जाते हैं। जो बदलता है वही आगे बढ़ता है। ये शब्द मनीषीसंतश्रीमुनिविनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर-24 सी  अणुव्रत भवन  तुलसीसभागार में सभा को संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीसंत ने आगे कहा जीवन को बदलाव की प्रक्रिया से गुजरना ही पड़ता है। अगर बदलाव आपका लक्ष्य नहीं है तो फिर जीवन ठहर जाएगा। बदलाव नहीं होगा तो जीवन की धारा रुक जाएगी। हर अनुभव हमें प्रेम, धैर्य और आनंद प्राप्त करना सिखाता है। अनुभव ही हमें बहुत सी चीजें सिखाते हैं। हमारे विकास में सहायक होते हैं। हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हम ‘संसार’ को ‘निर्वाण’ में बदलें। या दूसरे शब्दों में कहें कि ‘बंधन’ को ‘मुक्ति’ में बदलें। ऐसा होने के लिए जरूरी है कि आत्म स्मरण या खुद को याद रखें।

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया एक बार एक महिला मेरे पास आई और मुझसे कहने लगी कि मुझे डर है कि पता नहीं मेरा भविष्य क्या होगा क्योंकि मेरे पति की कंपनी को एक दूसरी कंपनी ने टेकओवर कर लिया है। मैंने उससे कहा कि उसे इस बात से डरने की जरूरत नहीं है। अपने जीवन को देखो, इसमें बहुत सी शानदार बातें दिखाई देंगी। तुम एक गरीब परिवार में जन्मी और देखो कि अब कितनी अच्छी जगह पर तुम हो। तुम्हारे जीवन में जो भी अच्छी चीजें हुई हैं उनसे ऊर्जा ग्रहण करो और अपने जीवन में आगे बढ़ो। हमारे बचपन में हमारे मन में डर नहीं होता। बड़े ही बच्चों के मन में डर बोते हैं। फिर डर हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाता है। बड़े ही बच्चों को बताते हैं कि बच्चा आसानी से गिर सकता है। तब एक डर उसके मन में बैठ जाता है। जब बच्चा बड़ा होता है तो वह गिरने से डरता है।
उसका शरीर हमेशा किसी भी तरह झुकने का प्रतिरोध करता है। वह सख्ती से सीधा बना रहना चाहता है। मार्शल आर्ट में हमें सिखाया जाता है कि शरीर को झुकाना कला है, लेकिन जिनके मन में बचपन का डर बैठा है कि झुकेंगे तो चोट लग जाएगी वे शरीर को सख्त बनाए रखते हैं। इसलिए मार्शल आर्ट सीखने वाले पहले सीखी सारी बातों को पीछे छोडक़र नई चीजें सीखते हैं। तब झुकना और गिरना इस कला का एक हिस्सा बन जाता है। वह व्यक्ति जो इंद्रियों के स्तर पर ही जीता है वह एक स्तर तक ही चीजों को अनुभव कर पाता है। दूसरी तरफ वह व्यक्ति जो लगातार सही डाइट, व्यायाम और शरीर को नई चीजों का अभ्यस्त बनाकर आगे बढ़ता है वह दूसरे ही स्तर पर होता है। वह व्यक्ति जो गुस्से और ईष्र्या के बजाय प्रेम और करुणा को महत्व देता है वह भी किसी दूसरे ही स्तर पर जीवन को जीता है। इसी तरह जब व्यक्ति सही दिशा में सोचता है और अपने विचारों में स्पष्टता रखता है तो वह भी अगले स्तर की ओर अग्रसर होता है।
जब भी व्यक्ति चीजों को मुक्त होकर देखेगा वह लगातार आगे बढ़ता जाएगा। जब व्यक्ति मन से साफ और भीतर से शांत होगा तो वह अलग ही ऊंचाई पर होगा। अज्ञान और ज्ञान दोनों से मिलकर ही जीवन बनता है। हमें दोनों में तालमेल बिठाना पड़ता है। इस ऐसे समझिए कि अगर आपके घर में इटैलियन मार्बल लगा है लेकिन उस पर पॉलिश नहीं है तो वह भी साधारण ही दिखाई देगा। इसी तरह आपके पास ज्ञान है लेकिन उसके साथ विनम्रता नहीं है या समझ नहीं है तो उसका कोई खास अर्थ नहीं है। जीवन को जानने की कोशिश करें। हर कोई किसी न किसी स्तर पर मूर्खता करता है, असहाय होता है और इन चीजों का बोध ही हमें समझदारी से आगे बढऩे की प्रेरणा देता है। अगर कोई यह मान ले कि वह सबकुछ जानता है और उसे बदलने की जरूरत नहीं है तो इस तरह की स्थिति में वह व्यक्ति अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेता है।