Chandigarh News: सच्चे मित्र की आवश्यकता भी जीवन की प्रमुख जरूरत – मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

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Chandigarh News | चंडीगढ : मित्र ही संसार में सबसे हितैषी, संवेदनशील, सच्चा सहायक, हमदर्द और दुख-सुख का साथी होता है। सच्चे मित्र के संपर्क में आने से व्यक्ति अपने बड़े से बड़े दुख को भूल जाता है। शाम शर्मा ने कहा मित्र साहस उत्साह के लिए प्रेरक का काम करता है। वह शुभचिंतक तथा मुसीबत से बचाने वाला होता है। मित्रता के अनेकों लाभ है परंतु यह तभी संभव है जब मित्र सच्चा, नि:स्वार्थ निष्कपट हो। वह व्यक्ति वाकई भाग्यशाली होता है जिसे सच्चा, निष्छल मित्र मिल जाए। एसएल लाटका ने कहा जिस व्यक्ति को सच्चा मित्र मिल जाए वह हर मुसीबत का सामना आसनी से कर सकता है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक ने सैक्टर 24सी अणुव्रत भवन मेें संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीसंत ने आगे कहा मानव की प्रतिष्ठा में ही धर्म की प्रतिष्ठा है। कोई भी धर्म श्रेष्ठ और महान हो सकता है, लेकिन मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं हो सकता। स्वामी विवेकानंद मानव धर्म को ही सवरेपरि समझते थे। वे बेलूर में रामकृष्ण परमहंस मठ की स्थापना के लिए धन एकत्र कर रहे थे। इसके लिए जमीन पहले ही खरीदी जा चुकी थी। उन्हीं दिनों कोलकाता में प्लेग की महामारी फैल गई। स्वामी जी ने तुरंत मठ निर्माण की योजना टाल दी और एकत्रित धनराशि से रोगियों की सेवा करने लगे। किसी ने उनसे पूछा, अब मठ का निर्माण कैसे होगा? इस समय मठ निर्माण से अधिक मानव सेवा की आवश्यकता है। मठ तो फिर बन सकता है, लेकिन गया हुआ मानव हाथ नहीं आएगा।
मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया सच्चा मित्र साहस उत्साह के लिए प्रेरक का काम करता है वह मुसीबत से बचाने वाला होता है।  सच्चा मित्र पाकर व्यक्ति संसार में एकाकी अनुभव नहीं करता। ऐसा मित्र हमदर्द मुसीबत तकलीफ बांटने का काम करता है। घर में प्रवेश करते ही जब अन्दर से स्वागत करने वाली कोई आवाज नहीं होती तो व्यक्ति अपने को बाहरी दुनिया से निकलने पर, जहाँ अधिकांश सम्बन्ध स्वार्थों के सम्बन्ध होते हैं, अधिकांश रिश्ते केवल औपचारिक होते हैं और वातावरण में बनावटीपन भरा रहता है- ऐसी दुनिया से बाहर आने पर घर की खामोशी व्यक्ति को अपने अकेलेपन का अहसास कराती है। विशेषत: ऐसे व्यक्ति जिन्हें विवाह के बाद यह अकेलापन मिला है वे अनुभव करते हैं कि सूने घर में प्रवेश और पत्नी की मुस्कान के स्वागत का अनुभव करते हुए घर में प्रवेश करने में कितना भारी अन्तर होता है?’’  पारिवारिक जीवन में, जीवन- साथी उस मित्र की आवश्यकता को पूरा करता है, जो पूर्णतया निष्पक्ष, निर्दोष और यथासम्भव सही परामर्श देता है। इसलिए कि परिवार में पति- पत्नी के लाभ व हित एक- दूसरे पर निर्भर करते हैं, उन्हें दोनों का लाभ साथ- साथ दीखता है और वे परस्पर दूसरे पक्ष की भलाई में अपनी भलाई समझते हैं। केवल उत्तरदायित्वों के बोझ से खिन्न होकर पारिवारिक जीवन के प्रति निराश और उदास दृष्टिकोण अपना लिया जाय तो दु:खी व परेशान रहने के अलावा और कोई परिणाम नहीं निकलता।

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया यदि हम यह न मानें तो कहना पड़ेगा कि किसी दूसरे के द्वारा की गई क्रिया का फल का कोई दूसरा भोगता है जो तर्क विरुद्ध है। यदि इस नियम पर पूर्ण आस्था हो तो तर्क हमें इसके एक अन्य निष्कर्ष को भी स्वीकार करने के लिए बाध्य करता है। यदि सभी क्रियाओं का फल भोगना पड़ता है तो उन क्रियाओं का क्या होगा जिनका फल भोगने के पहले ही कर्ता मर जाता है? या तो हमें कर्म के सिद्धांत को छोडऩा होगा या फिर, मानना होगा कि कर्ता नहीं मरता, वह केवल शरीर को बदल देता है। भारतीय विचारकों ने एक स्वर से दूसरा पक्ष ही स्वीकार किया है।