Chandigarh News: मोरनी टिकरताल में चंद पैसों के लिए सैलानियों की सुरक्षा से समझौता करने की घटनाएं आम होती जा रही हैं। प्रशासन की लापरवाही और सुरक्षा नियमों के अभाव के कारण सैलानियों की जान जोखिम में डाली जा रही है। टिकरताल पर उपलब्ध नावों में क्षमता से अधिक लोगों को बैठाकर उनकी सुरक्षा को नजरअंदाज किया जा रहा है।
एक बार फिर से टूरिज्म विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। टेंडर के अनुसार, ठेकेदार को आईआरएस (IRS) सर्टिफाइड बोट्स उपलब्ध करानी थी, जिनकी निरीक्षण टूरिज्म विभाग द्वारा की जानी चाहिए थी। लेकिन कई महीने बीत जाने के बावजूद विभाग ने इन बोट्स की जांच-पड़ताल करना उचित नहीं समझा।
टेंडर की शर्तों के अनुसार, आईआरएस प्रमाणित बोट्स का रजिस्ट्रेशन और इंश्योरेंस होना अनिवार्य था ताकि सैलानियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। सूत्रों के अनुसार, ठेकेदार ने सुरक्षा मानकों की अनदेखी करते हुए अवैध बोट्स का संचालन शुरू कर दिया है, जिनमें से कुछ बोट्स आईआरएस सर्टिफाइड नहीं हैं। इस अनियमितता के चलते सैलानियों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है।
इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि टूरिज्म विभाग के वरिष्ठ अधिकारी, जिनमें डीडीओ, कंपनी सेक्रेटरी, एएमडी और एमडी शामिल हैं, इस मामले पर आंखें मूंदे बैठे हैं। विभाग की निष्क्रियता और ठेकेदार पर विशेष मेहरबानी ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या विभाग अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन सही ढंग से कर रहा है।
सिर्फ सुरक्षा ही नहीं, बल्कि ठेकेदार ने बिना विभागीय अनुमति के पुराने रेट्स को बदलकर नए और अधिक शुल्क भी लागू कर दिए हैं, जिससे पर्यटकों की जेब पर सीधा असर पड़ा है। यह नई दरें पूरी तरह से अवैध हैं और प्रशासन की अनदेखी से ठेकेदार को अनुचित लाभ पहुंचाया जा रहा है।
प्रश्न यह उठता है कि प्रशासन किस दबाव में या किस कारणवश इन सब अनियमितताओं को नजरअंदाज कर रहा है। क्या टूरिज्म विभाग किसी बड़े हादसे के बाद ही जागेगा? इस स्थिति से सैलानियों की सुरक्षा और भरोसे दोनों पर बुरा असर पड़ रहा है।
कुछ सैलानियों ने बताया कि नाविक उनसे अधिक पैसा वसूलते हैं और फिर भी नावों में जरूरत से ज्यादा लोगों को बैठाते हैं। एक सैलानी ने कहा, “बोर्ड पर लिखी गई फीस तो जेब पर भारी पड़ती ही है, लेकिन असली खतरा तब होता है जब नाव में अतिरिक्त लोगों को बैठाकर उसे असुरक्षित बना दिया जाता है।”
उसके बावजूद प्रशासन मौन क्यों है? क्या प्रशासन को सैलानियों की सुरक्षा की चिंता नहीं है? अगर भविष्य में कोई हादसा होता है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? यह सवाल स्थानीय नागरिक और पर्यटक दोनों ही उठाते रहे हैं। चंद पैसों के लिए सैलानियों की जान को जोखिम में डालना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है बल्कि गंभीर प्रशासनिक चूक भी है।
प्रशासन को चाहिए कि वे इस मुद्दे पर तुरंत ध्यान दें और सख्त नियमों को लागू करें ताकि भविष्य में किसी बड़े हादसे से बचा जा सके। प्रशासन इन मुद्दों पर कड़ी कार्रवाई करे और सैलानियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कदम उठाए।
डी डी ओ अश्विनी कुमार की चुप्पी और प्रशासन की लापरवाही
जब इस बारे में डी डी ओ अश्विनी कुमार से बात की तो उन्होंने भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया और यह कहकर पल्ला झाड़ दिया कि इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता और फोन को दूसरे व्यक्ति को देकर पल्ला झाड़ लिया। इससे साफ जाहिर होता है कि डी डी ओ वहां हो रही गतिविधियों पर कितना ध्यान दे रहे हैं। उन्हें इस बात की भी जानकारी नहीं थी कि कौन सी बोट्स का इंश्योरेंस है, कौन सी बोट्स आईआरएस सर्टिफाइड हैं और किस बोट में कितने सैलानी बैठ सकते हैं। यहां तक कि इन बोट्स का आखिरी निरीक्षण कब हुआ था, इसकी भी जानकारी उन्हें नहीं थी।
जब इस बारे में मोरनी टिकरताल काउंटर इंचार्ज से वहां चल रही बोट्स के इंश्योरेंस और सर्टिफिकेशन के कागज दिखाने को कहा गया तो उन्होंने बताया कि उनके पास कोई दस्तावेज नहीं हैं और यह दस्तावेज संभवतः पंचकूला हेड ऑफिस में हो सकते हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब कार्यस्थल पर ही कागजात उपलब्ध नहीं हैं तो वे पंचकूला में क्या कर रहे हैं? क्या प्रशासन के पास कोई प्रमाणित दस्तावेज नहीं हैं? इससे हरियाणा टूरिज्म की मिलीभगत साफ दिखाई देती है।
प्रशासन को तत्काल प्रभाव से इस स्थिति पर कार्रवाई करनी चाहिए और सभी संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक करना चाहिए ताकि सैलानियों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।