Chandigarh News: मनमोहन सिंह अपनी लाल रंग की ‘मारूति 800’ कार हर साल करवाते थे सर्विस

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Chandigarh News: चंडीगढ़ | प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का दस वर्ष का कार्यकाल, अगर ‘स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप’ यानी एसपीजी के लिहाज से देखें तो वह बहुत आरामदायक और प्रोटोकॉल का सौ फीसदी पालन, इस भावना से भरा रहा है। अगर एसपीजी ने कह दिया कि आपको छह मीटर चलना है, इस प्वाइंट पर खड़े होना है, यहां मुड़ना है तो डॉ. मनमोहन सिंह, इस प्रोटोकॉल में आधा इंच का बदलाव भी नहीं करते थे। मतलब, जो एसपीजी ने तय कर दिया, उनके लिए वही पत्थर की लकीर था। दूसरा, मनमोहन सिंह के पास जो ‘मारूति 800’ लाल रंग की कार थी, वे हर साल उसकी सर्विस कराते थे। भले ही वह पीएम हाउस न बाहर न निकले, लेकिन डॉ. मनमोहन हर वर्ष उसका इंश्योरेंस कराना नहीं भूलते थे। जब उस लाल रंग वाली मारूति कार को सर्विस सेंटर पर ले जाया जाता तो साथ में एसपीजी जवान रहते थे।

‘एसपीजी जवानों-अफसरों के दिलों पर करते थे राज’

केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के कई अधिकारी डॉ. मनमोहन सिंह के एसपीजी दस्ते में शामिल रहे थे। एसपीजी से लौटने के बाद कुछ अधिकारी मौजूदा समय में भी विभिन्न बलों में कार्यरत हैं। इन्हीं में से एक अधिकारी ने अमर उजाला डॉट कॉम से बात की है। उन्होंने बताया, अगर हम कहें कि डॉ. मनमोहन सिंह, एसपीजी के जवानों और अफसरों के दिलों पर राज करते थे, तो गलत नहीं होगा। इसके पीछे वजह भी हैं। एसपीजी को दिक्कतें तब आती हैं, जब कोई भी सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति, एसपीजी के प्रोटोकॉल को फॉलो न करे। बार बार नियम तोड़ता हो, यानी एसपीजी घेरे से बाहर जाता हो। गाड़ी में जिस सीट पर बैठने के लिए कहा जाए, वहां न बैठे। तय रूट से बाहर दूसरी जगह पर जाने की बात कहे। ऐसे कई सारे सिक्योरिटी प्रोटोकॉल होते हैं, जिन्हें सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति की सौ फीसदी सुरक्षा सुनिश्चित करने के मकसद से तैयार किया जाता है।

‘प्रोटोकॉल का पूरा पालन करते थे मनमोहन सिंह’

डॉ. मनमोहन सिंह, चूंकि एक गैर राजनीतिक परिवेश से आने वाले व्यक्ति थे। दूसरे प्रधानमंत्रियों की तरह उन्हें पब्लिक रैलियों में बहुत कम जाना होता था। अगर किसी समारोह में जा रहे हैं तो वे प्रोटोकॉल का पूरा पालन करते थे। उन्होंने एसपीजी घेरे को कभी तोड़ने की कोशिश नहीं की। कौन सी गाड़ी में बैठना है, कब उतरना है, किससे कितनी दूरी पर मिलना है, गाड़ी के अंदर या बाहर से हाथ हिलाना है या नहीं। गाड़ी के पास किसी को बुलाना है या नहीं, इन सब बातों का वे सौ प्रतिशत पालन करते रहे। उनके हर रूट का प्लान पहले से ही तैयार रहता था। उसमें कोई बदलाव भी नहीं होता। एसपीजी ने जैसा प्लान तैयार कर दिया, सब कुछ वैसे ही रहता था।

‘उनके चेहरे पर हमेशा संतुष्टि के भाव थे’

अधिकारी के मुताबिक, डॉ. मनमोहन सिंह बोलते बहुत कम थे। हालांकि उनका हाव भाव सदैव मिलनसार वाला ही रहता था। चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे। उनके पीछे खड़े रहना है, साथ चलना है या गाड़ी में बैठना है, हर बात में उनका सहयोगात्मक भाव दिखाई पड़ता था। जब अगस्त 2019 में उनकी एसपीजी सुरक्षा वापस ली गई तो उनके लिए वह सब ऐसा था कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। उन्होंने कभी भी सुरक्षा बदलाव पर सवाल नहीं उठाया।

राहुल गांधी तोड़ते थे एसपीजी सुरक्षा घेरा

केंद्र सरकार ने डॉ. मनमोहन की एसपीजी सुरक्षा हटाकर उन्हें सीआरपीएफ की जेड प्लस सुरक्षा दी थी। कुछ महीने बाद सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) की सुरक्षा वापस ले ली गई थी। तब कांग्रेस पार्टी ने सरकार की मंशा पर खूब सवाल उठाए थे। इन तीनों को भी सीआरपीएफ की जेड प्लस सुरक्षा मुहैया कराई गई थी। उस वक्त सरकार की तरफ से बताया गया था कि राहुल गांधी ने 2005 से 2014 के बीच में रोजाना औसतन एक बार एसपीजी सुरक्षा घेरा तोड़ा था। वे देश के कई हिस्सों में 18 बार गैर बुलेट प्रूफ वाहनों में बैठकर गए थे। अगर 2015 से मई 2019 तक की बात करें तो राहुल गांधी ने अकेले दिल्ली में ही 1800 से ज्यादा बार नॉन बुलेट रिसिस्टेंट (नॉन-बीआर) वाहनों में सफर किया था। 2019 में जून तक राहुल ने 247 बार दिल्ली से बाहर भी नॉन बीआर वाहनों में यात्रा की थी।