Chandigarh News: मर्यादा महोत्सव तेरापंथ का महाकुंभ है, जिसमें इसमें शिक्षण-प्रशिक्षण, प्रेरणा-प्रोत्साहन, अतीत की उपलब्धियों का विहंगावलोकन, भावी कार्यक्रमों का निर्धारण आदि अनेक रचनात्मक प्रवृत्तियां चलती हैं। सब साधु-साध्वियां अपने वार्षिक कार्यक्रमों और उपलब्धियों का लिखित और मौखिक विवरण प्रस्तुत करते हैं।
श्रेष्ठ कार्यों के लिए गुरु द्वारा विशेष प्रोत्साहन मिलता है। कहीं किसी का प्रमाद, मर्यादा के अतिक्रमण का प्रसंग उपस्थित होता है तो उसका उचित प्रतिकार होता है। संघ की यह स्पष्ट नीति है कि किसी की कोई गलती हो जाए तो उसको न छुपाओ, न फैलाओ, किन्तु उसका सम्यक् परिमार्जन करो, प्रतिकार करो।
आचार्य भिक्षु ने अपने धर्मसंघ की एकता और पवित्रता बनाए रखने के लिए कर्तव्य-अकर्तव्य, विधि-निषेध की सीमा स्थापित की, जिसे मर्यादा नाम से जाना जाता है। इन्हीं मर्यादाओं को सुदृढ़ बनाने एवं इनको हर वर्ष दोहराने के उद्देश्य से मर्यादा महोत्सव का आयोजन किया जाता है। ये शब्द मनीषी संत मुनि विनय कुमार आलोक ने 161वे मर्यादोत्सव पर एकत्रित श्रावक श्राविकाओंं को संबोधित करते हुए सेक्टर-24 सी अणुव्रत भवन में कहे।
कार्यक्रम मे मुख्य अतिथि के रूप मे ज्वांइट सेके्रेटरी जरनल एडमिस्टे्रशन पंजाब सिविल सेक्रेटरी तेजदीप सिंह ने शिकरत की। कार्यक्रम में जैन तेरापंथी सभा चंडीगढ के अध्यक्ष वेद प्रकाश जैन, मंत्री प्रदीप जैन, विजय गोयल, श्रीमती शांता चोपडा, प्रेेम नाहर इत्यादि बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओंं ने हिस्सा लिया।
मनीषीसं ने आगे कहा मर्यादा-महोत्सव दुनिया का अनूठा उत्सव एवं विलक्षण पर्व है। विश्व में मर्यादा महोत्सव कहीं भी मनाया नहीं जाता, मात्र एक तेरापंथ धर्मसंघ ऐसा है यहां ये उत्सव धूम धाम से मनाया जाता है। मुझे बताया गया है कि तेरापंथ धर्मसंघ की ऐतिहासिक परम्परा से जुड़ा यह पर्व लौकिक पर्व नहीं है।
इस दिन राग-रंग, नाच गाना, विशाल भोज, मनोरंजन का कोई आयोजन नहीं होता है। सिर्फ सामुदायिक चेतना, शिक्षण-प्रशिक्षण, प्रेरणा-प्रोत्साहन, अतीत की उपलब्धियों का विहंगावलोकन, भावी कार्यक्रमों का निर्धारण आदि रचनात्मक प्रवृत्तियां चलती हैं।
मर्यादाओं को सुदृढ़ बनाने एवं इनको हर वर्ष दोहराने के उद्देश्य से मर्यादा महोत्सव का आयोजन किया जाता हैं। मर्यादा-महोत्सव दुनिया का अनूठा उत्सव एवं विलक्षण पर्व है। तेरापंथ धर्मसंघ की ऐतिहासिक परम्परा से जुड़ा यह पर्व लौकिक पर्व नहीं है। इस दिन राग-रंग, नाच गाना, विशाल भोज, मनोरंजन का कोई आयोजन नहीं होता है।
सिर्फ सामुदायिक चेतना के अभ्युत्थान की संयोजना में धर्मसंघ का दिल और दिमाग नए आदर्शों को अनुशासना से जोड़ता है। इस पर्व पर साधुता की तेजस्विता, कर्तृत्व की कर्मण्यता और निर्माण की निष्ठा का प्रशिक्षण होता है। पूरे धर्मसंघ की आचार्य द्वारा सारणा-वारणा की जाती है।
मनीषीसंत ने आगे कहा तेरापंथ धर्मसंघ तेजस्वी संघ है, यह तैजस की आराधना का केन्द्र हैं। उसकी तेजस्विता के स्रोत हैं- आत्मानुशासन, आत्म निंयत्रण और आत्म संयम की प्रबल भावना। एक आचार, एक विचार और एक समाचारी के लिए तेरापंथ प्रख्यात है।
वह संघ स्वस्थ और चिरंजीवी होता है, जिसका प्रत्येक सदस्य स्वस्थ संतुष्ट हो, प्रसन्न हो। मर्यादाओं के निर्माण के पीछे आचार्य श्री भिक्षु का यही पवित्र दृष्टिकोण रहा था। उन्होंने लिखा- न्याय, संविभाग और समभाव की वृद्धि के लिए मैंने ये मर्यादाएं लिखी है। आपसी कलह और सौहार्द की कमी संगठन की जड़ों को कमजोर बनाते हैं।
भिक्षु की मर्यादाओं और व्यवस्थाओं का ही प्रभाव है कि तेरापंथ संघ में कलह, घरेलु झगड़े पनप भी नहीं सकते। तेरापंथ में गुरु शिष्यों का संबंध अनुपम है। वे विनय और वात्सल्य भाव के सुदृढ़ स्तम्भों पर टिके हुए हैं। साधु-साध्वियों का विनय, समर्पण, श्रद्धा, भक्ति और अहंकार-ममकार से मुक्त संयमी जीवन भी जन-जन के लिए कम आकर्षण का विषय नहीं है। इसका कारण है आज्ञा, मर्यादा, अनुशासन और गुरु निष्ठा उनके रोम-रोम में श्वास-प्रश्वास में रमी हुई है। तेरापंथ धर्मसंघ एवं उसकी मर्यादाएं आज विभिन्न धार्मिक संगठनों एवं सम्प्रदायों के लिये अनुकरणीय है।