Chandigarh News : चंडीगढ़ प्रशासन के कला विभाग एवं टैगोर थिएटर सोसाइटी के तत्वाधान शुक्रवार 8 नवंबर बलवंत गार्गी के नाटक ” लोहाकुट ” का मंचन हुआ।थिएटर फॉर थिएटर द्वारा सशक्त रंगकर्मी सुदेश शर्मा के निर्देशन में यह प्रस्तुति सार्थक विचारधारा लिए थी। ट्राइसिटी थिएटर फेस्टिवल के अंतर्गत यह प्रस्तुति एक विचारवान एवं सशक्त संदेश वाहक प्रस्तुति से भी परिभाषित होगी।
स्त्री के वजूद और अस्तित्व में घुटती बेबस संवेदनाओं और मन मसोसती कसक को परिभाषित करता कथानक निसंदेह आज भी सामाजिक सार्थकता लिए है। लगभग 80 साल पहले लिखा गया ये नाटक समय के साथ सामाजिक रहन सहन में बदलाव लिए हो लेकिन सोच और मानसिक कुंठा में आज भी समाज वहीं विचारधारा लिए है। औरत आज बराबरी का हक लिए बेशक मर्द के साथ आ खड़ी हुई है लेकिन आज भी वह अपने संवेदन मन को मसोसती कई सामाजिक समझौतों से बंधी है। इसी सूक्ष्म पहलू पर बुना ये कथानक उसके उन पहलुओं की विवेचना करता है।इतने सालों के बाद भी हकीकत यही है के इस मुद्दे की गंभीरता को समझा जाए।
औरत सत्कार चाहती है भावनाओं की कद्र और इसलिए कोमल संवेदनाओं की पूरक अभिव्यक्ति का आग्रह लिए वह आज उस चौराहे पर खड़ी है जहां यह न मिलने पर वह विद्रोह कर देती है। आज टूटती पारिवारिक परिस्थितियां बढ़ते तलाक और बिखरते परिवार इसके उदाहरण है। स्त्री में छुपी कोमल भावनाएं उन्हें सामाजिक बंधन और कुंठित रीति रिवाज़ो में चुपचाप समर्पण करने से रोकती तल्ख और विद्रोही बनाने लगी है।
सुंदर प्रस्तुति और सार्थक संदेश देती यह प्रस्तुति इस ट्राइसिटी थिएटर फेस्टिवल की एक शानदार उपलब्धि थी। निर्देशक सुदेश शर्मा अभिनेता सुदेश शर्मा पर भारी था। दृश्य परिकल्पना, वेश भूषा ,दृश्य रचना,उत्तम प्रकाश परिकल्पना ,संवाद पकड़,संवाद उच्चारण,सेट डिजाइनिंग, सभी निर्देशकीय मानक अपने मयार पर परिपूर्ण थे लेकिन मनोभाव की उत्कृष्टता , समभाव दृश्यों का बार बार दोहराया जाना,कही कही उबाऊ कही कहीं अप्रासंगिक कहीं कहीं नाटक की लय को तोड़ता सशक्त रंगकर्मी के उत्कृष्ट मंचन प्रस्तुति को उसके आयाम से वंचित भी करता था।अनीता शब्दीश सशक्त अभिनेत्री होने के बावजूद अति आत्म विश्वास लिए अपनी आपेक्षित प्रस्तुति से चूक गई। मनोभाव अभिव्यक्ति में वह अपने सामर्थ्य के बावजूद कहीं कहीं अपनी अपेक्षाएं से सामान्य रही जबकि यह सक्षम देने का हुनर लिए हैं मानसिक विद्रोह और मजबूर समर्पण में मनोभाव उनके संभावित हुनर के मयार से वंचित था।
मानसिक विद्रोह और बिखरते रिश्तों पर अपने हुनर की पकड़ निश्चे ही उसे स्त्री प्रभावित नाटक के संभावित आयाम पर स्थापित करता। गुरप्रीत सिंह बैंस अपने किरदार में श्रेष्ठ लिए थे। बाकी सभी किरदारों का चयन और निर्देशकीय मानक नाटक में जीवंत हिस्सेदारी निभाते सफल प्रस्तुति पर स्थापित करते रहे। विशिष्ट प्रकाश व्यवस्था इस नाटक का एक सशक्त पहलू था और हरविंदर सिंह शनटी के ये महारत प्रस्तुति का सार्थक पहलू था। थिएटर फॉर थिएटर अपने रंगकर्म के जज्बे ,लग्न ,और निरंतर संघर्ष से जुड़े अपना योगदान देते ट्राइसिटी में पहचान लिए हैं।
नाटक के उत्सव से भली भांति परिचित वह सार्थक प्रस्तुति देते इसके सशक्त प्रभाव को भी समझते हैं। सुदेश जी से बात करते उन्होंने बताया के पहले इस नाटक पर चर्चा से उन्होंने कथानक में बदलाव कर मुख्य स्त्री किरदार को अन्त में फिर प्रस्थिति वश वापिस आने की परिकल्पना की थी और हॉल ही में इस के मंचन में यह बदलाव भी किया था लेकिन फिर इस प्रस्तुति में उन्होंने कथानक के अनुसार इस का अंत किया जिससे यह संदेश जाए के और का अंतर्मन समझना जरूरी है नहीं तो विद्रोह की पूर्ति नहीं होगी।ऐसा संदेश नई पीढ़ी के लिए एक सार्थक उदाहरण है। ऐसा सार्थक प्रयास और प्रस्तुति सफल नाटक मंचन से परिभाषित होगी।थिएटर फॉर थिएटर और संयोजक टैगोर थिएटर सोसाइटी निश्चे ही बधाई के पात्र।
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