Chandigarh News: मनुष्य जैसे कर्म करेगा उसक वैसा ही फल मिलेगा।अर्थात जैसे बीज बोओगे वैसा फल पाओगे। मनुष्य क हर सोच उसके जीवन के खेत में बोया गया एक बीज ही है।
यदि मनुष्य अच्छी सोच के बीज बोएगा तो अच्छा फल मिलेगा।प्रेम के बीज बोएंगे तो प्रेम के ही फल अंकुरित होकर आएंगे।ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजआलोक ने पटियाला तेरापंथ भवन मे कहे।
मनीषीसंत ने आगे कहा क्रोध और गाली-गलौच के बीच बोएंगे तो खुद के लिए विषैला वातावरण बनेगा। मनुष्य की सोच जैसी होगी उसके विचार भी वैसे बन जाएंगे। मन में ही स्वर्ग होता है और मन में ही नरक। वह खुद ही घर-परिवार को स्वर्ग बनाता है और खुद ही नरक।
व्यक्ति के स्वभाव को बदलना बड़ा कठिन है। जिस प्रकार कुरूक्षेत्र की धरती पर कौरवों और पांडवों के दरमियान युद्द हुआ था। उसी प्रकार मनुष्य के मन में हर समय इच्छाओं तथा तृष्णाओं का युद्द चलता रहता है।
मनीषीसंत ने आगे कहा जीवन में हर मनुष्य आनंद चाहता है। वह इसलिए कि यह जीवन परमानंद का अंश है। यानी मानव अंश है, तो परमपिता अंशी हुआ। इस आनंद की प्राप्ति के लिए परमपिता ने वैविध्यपूर्ण संरचना की है। हमारी ज्ञानेंद्रियों से मन-मस्तिष्क प्रभावित होता है।
इसका आशय हुआ कि ज्ञानेंद्रियां यदि आनंद संग्रहित कर रही हैं, तो जीवन में आनंद और यदि दुख संग्रहित कर रही हैं तो जीवन कष्टदायी और नर्क जैसा हो जाता है। सभी जानते हैं कि ज्ञानेंद्रियों में आंख, कान, नाक, जीभ, और त्वचा को शामिल किया जाता है। मनुष्य को चाहिए कि वह आनंद के लिए इन सारी ज्ञानेंद्रियों से संतुलन, समन्वय और सामंजस्य स्थापित करके चले। भौतिकवादी युग में हर काम इसके विपरीत हो रहा है।
मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया  हम जीवन में हताशा क्यों महसूस करते हैं? जीवन कभी निराशाजनक नहीं है… बल्कि हमारा मस्तिष्क चूंकि बहुत ज्यादा अपेक्षाओं से भरा है और वे अपेक्षाएं निराशाजनक हैं। जीवन बहुत सुंदर है लेकिन मस्तिष्क की अपेक्षाओं ने उसे कब्जा लिया है।
अगर जीवन में प्रसन्नता पाना है तो अपना ध्यान उन चीजों पर लगाइए जो आपके पास है बजाय कि उन चीजों के बारे में सोचने के जो आपके पास नहीं हैं। धैर्य के साथ जीवन को जिएं। गति को थोड़ा कम कर दें और फिर देखें जीवन प्रसन्नता से भर जाएगा।
जो मनुष्य सिर्फ भौतिक पदार्थो के पीछे भागेगा, उसे प्रचुर मात्र में भौतिक संपत्ति तो हासिल हो जाएंगी, लेकिन जरूरत से ज्यादा भौतिकता साथ में दुख, कष्ट, तनाव, क्रोध और विकृति भी लाती है। जिस प्रकार कंप्यूटर साइंस में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों की भूमिका है, उसी प्रकार शरीर रूपी हार्डवेयर के साथ चिंतन रूपी सॉफ्टवेयर को भी वायरस मुक्त रखा जाना चाहिए।