Chandigarh News: बाढ़ तथा बहती हुई नदी में यह अंतर है कि बहती हुई नदी का पानी एक विशेष दिशा में बहता है, जबकि बाढ़ की अवस्था में पानी बिना किसी क्रम के दिशाविहीन होकर बहता है। इसी प्रकार हमारे जीवन में यदि ऊर्जा को कोई दिशा नहीं प्रदान की जाती तो यह दिग्भ्रमित हो जाती है। जीवन की ऊर्जा के प्रवाह के लिए एक दिशा की आवश्यकता होती है। जब तुम प्रसन्न होते हो तो तुहारे अन्दर अत्यधिक जीवन ऊर्जा होती है, लेकिन जब जीवन ऊर्जा यह नहीं जानती है कि कहां और कैसे जाना है, तब यह अवरुद्ध होकर जड़ हो जाती है। जिस प्रकार जल की धारा को बहते रहना है, उसी प्रकार जीवन की धारा को भी चलते रहना है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने संगरूर तेरापंथ भवन मे कहे।

मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा  जीवन ऊर्जा को एक दिशा में चलने के लिए एक बचनबद्धता आवश्यक है। जीवन बचनद्धता के साथ चलता है। एक विद्यार्थी किसी स्कूल या कॉलेज में एक बचनबद्धता के साथ प्रवेश लेता है। तुम एक डॉक्टर के पास एक बचनबद्धता के साथ जाते हो कि डॉक्टर जो कुछ उपचार बताता है, उसको सुनते हो या उसके द्वारा दी गई औषधि को लेते हो। बैंक एक बचनबद्धता के साथ कार्य करते हैं। सरकार भी एक बचनबद्धता के साथ कार्य करती है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि एक परिवार भी बचनबद्धता के साथ चलता है, मां-बच्चे के साथ प्रतिबद्ध है व बच्चा अपने मां-बाप के प्रति प्रतिबद्ध है। पति-पत्नी के साथ और पत्नी पति के साथ बचनबद्ध है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में चाहे वह प्यार हो या व्यवसाय हो या मित्रता हो, बचनबद्धता अवश्य होती है।
मनीषीश्रीसंत ने कहा वास्तव में तुम्हें बचनबद्धता न होने से क्रोध होता है। तुम किसी से किसी प्रकार की बचनबद्धता की आशा रखते हो और जब वे नहीं करते हैं तो तुम मानसिक हलचल से ग्रसित हो जाते हो। या जब कोई अपनी बचनबद्धता का पालन नहीं करता है तो भी तुम मानसिक हलचल से ग्रसित हो जाते हो। लेकिन तुम देखो कि तुमने अपने जीवन में कितनी बचनबद्धताओं को लिया है और उनका पालन किया है। हमारी शक्ति, क्षमता या कार्यकुशलता हमारी बचनबद्धता के समानुपाती होता है. यदि तुम अपने परिवार का पालन-पोषण करने की बचनबद्धता लेते हो तो तुहें उतनी शक्ति या क्षमता प्राप्त होती है। यदि तुहारी बचनबद्धता किसी समुदाय के प्रति है तो तुहें उतनी अधिक मात्रा में शक्ति, प्रसन्नता और क्षमता प्राप्त होती है।
मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया प्राय: हम यह सोचते हैं कि पहले हमारे पास कार्य के स्रोत हों, तब हम कोई भी कार्य करने के लिए बचनबद्ध होंगे। वास्तव में यह ऐसा नहीं है. तुम जितना ही बड़ा कार्य करने की बचनबद्धता करोगे, उतने ही बड़े स्रोत स्वमेय ही प्राप्त हो जाएंगे। जब तुम्हारे अन्दर किसी कार्य को करने का विचार आता है तो जब भी और जितना भी आवश्यक होता है उसके लिए स्रोत तुमको मिल जाते हैं। उत्तरदायित्व बढ़ाने के साथ ही बढ़ती है क्षमता: क्षमता के बाहर हाथ-पैर फैलाने से तुहारा विकास होता है। यदि तुममें अपने शहर की देखभाल करने की क्षमता है और तुम यह कार्य करते हो, तो बड़ी बात नहीं है, लेकिन यदि तुम इसे विस्तृत करते हुए अपने पूरे प्रदेश की देखभाल करने या बचनबद्धता करते हो तो तुहें उतनी ही अधिक शक्ति प्राप्त होती है। जैसे ही अधिक उत्तरदायित्व लेते हो, तुहारी क्षमता भी बढ़ जाती है, बुद्धिमता भी बढ़ जाती है, तुहारी प्रसन्नता बढ़ जाती है और तुम दैविक शक्ति के साथ एकीकृत हो जाते हो।