Chandigarh News: रोजमर्रा की जिंदगी में भागते-भागते हंसी भुलते जा रहे है

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Chandigarh News: अकेलापन स्वयं से खास तरह की दूरी है. इसके उलट हंसी खुद से निकटता है. रोजमर्रा की जिंदगी में भागते-दौड़ते हुए हम इन दोनों के बीच बहुत तेजी से फंस रहे हैं. अकेलेपन का भंवर तेजी से मन को अपनी ओर खींचता रहा है. कहां से आ रहा है बोरियों में भरा हुआ, ट्रकों में लदा, जानलेवा, घुटनभरा अकेलापन! अकेलेपन पर बात करते हुए, उसे समझने की कोशिश करते हुए यह जानना बहुत जरूरी है कि अकेलापन अनायास आई अपरिचित चुनौती नहीं, बल्कि यह उस कमी से उपजी है, जिसे हम अपनेपन के नाम से जानते हैं. आप मेरे अस्तित्व को हमेशा अपनी जरूरत के हिसाब से नहीं ढाल सकते! जितना हम अपने भीतर को सशक्त करेंगे, अकेलेपन और तनाव से उतनी ही तेजी से दूर होते जाएंगे!इसने आत्महत्या और डिप्रेशन के विरुद्ध जीवन संवाद की प्रासंगिकता को नवीन ऊर्जा, संबल दिया. जाते हुए साल में मेरी आपके लिए शुभकामना है, ‘जितना अधिक हो सके स्वयं से प्रेम करें. अपने अस्तित्व के भाव को स्थाई बनाएं. दूसरों को यह अधिकार न दें कि वह आपको आपकी अनुमति के बिना दुखी कर सकें!’ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजआलोक ने नाभा तेरापंथ भवन मे कहे।

मनीषीसंत ने आगे कहा रिश्तों की मिठास, असहमति के बाद भी एक-दूसरे के लिए कोमल अहसास, मन में उन सभी के प्रति सहिष्णुता और उदारता, जिन्होंने हमारे होने में किसी भी तरह की भूमिका का निर्वाह किया! रिश्तों से जैसे ही यह मिठास गायब होती है, उसको भरने के लिए उतनी ही तेजी से अकेलापन हमारी ओर दौड़ता चला आता है.अकेलापन अकेले नहीं आता. वह अपने ही प्रति एक ऐसी भावना से भरा होता है, जिसमें अपने नकार की प्रतिध्वनि बहुत तीव्र होती है. ऐसा अक्सर तब होता है, जब हमें लगता है कि हम उस रास्ते पर कुछ अकेले पड़ गए हैं जिस पर हमारे साथ चलने वाले बहुत दूर निकल गए. तब भी ऐसा होता है जब हम दूसरों के खिलाफ जाकर कोई निर्णय लेते हैं और उस निर्णय पर हमारे कदम आशा के अनुरूप नहीं टिक पाते! उस समय भी अकेलापन हमें घेर लेता है जब हम अपनों, समाज और स्वयं द्वारा तय किए गए लक्ष्य में पिछडऩे लगते हैं।

मनीषीसंत ने कहा यह पिछडऩा पूरी तरह हमारे बस में नहीं. इसमें देश, काल परिस्थिति का भरपूर योगदान है. जंगल में शेर एक समान क्षमता वाले कई हिरणों का एक साथ पीछा करता है और उनमें से कोई एक उसके हाथ लगता है. ध्यान से देखने पर हम पाते हैं कि सभी हिरणों की क्षमता में बड़ा अंतर नहीं. हो सकता है जिस पल शेर ने किसी एक को पकड़ा उस पल शेर ने अपनी गति बढ़ाई हो! यह भी हो सकता है कि पकड़े गए हिरण की गति मात्र एक क्षण के लिए तनिक धीमी हुई हो! जब शेर हिरणों का पीछा करता है तो वह अपनी शक्ति, क्षमता, एकाग्रता से ही दौड़ता है. इसमें असल में उसके हाथ में बहुत कुछ होता नहीं. सब कुछ उस क्षण पर निर्भर करता है जब शेर अपनी पूरी ऊर्जा किसी एक्शन में झोंक कर एक हिरण पर आक्रमण कर देता है।