Chandigarh News: कल्पना संवेदनाओं, भावनाओं और विचारों का उत्पादन

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Chandigarh News:  कल्पना संवेदनाओं, भावनाओं और विचारों का उत्पादन है, जो पहले से मौजूद अनुभवों को नया रूप दे सकती है या पूरी तरह से नए और कल्पनाशील दृश्य प्रस्तुत कर सकती है. कल्पना एक मानसिक प्रक्रिया है जो अनुभवों, विचारों और धारणाओं को जोडक़र एक नया अर्थ या छवि बनाती है.यह हमें दुनिया को नए तरीके से देखने, नए विचारों को विकसित करने और रचनात्मक होने में मदद करती है।

इसका साधन माध्यम होते है विचार कल्पना पर अधारित रहते है, कल्पनाएं विचारो की वाहक होती है, कल्पना से सोच शक्ति को बल मिलता है, आधार मिलता है। विचार और सोच दोनो परिपक्व होते है कल्पना शक्ति से अर्थात कल्पना मे वह शक्ति होती है जो किसी मे नही होती है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजआलोक ने नाभा तेरापंथ भवन मे कहे।

मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा जैसे रात का अंधेरा दिन के उजाले के आगे हार जाता है। वेैसे ही यह चक्र निंरतर चलता रहता है। जो स्थिति हमारे सामने हो उसके साथ  तालमेल कर लेने से ही जीवन आसान बन जाता है। बदलाव तो हर वक्त आना ही है। कुछ स्थितियां सुखद तो कुछ दुखद होगी ही। ऐसे मे हर स्थिति को स्वीकार कर आगे बढने की कोशिश करते रहना ही जीने का रास्ता बन सकता है।

मनीषीसंत ने कहा सभी के जीवन मेें कुछ तिथियों का बडा ही महत्व होता है। इन तारिखों में कुछ लोग अपने जीवन से जुडे होते हैं। जैसे विवाह की तिथियों में महत्व जीवन में सुख या दुख पानी में नमक की तरह होता है। हम उसे जितना सीमित सोच में बसा लेगे उतना ही वह हमे घेर लेगा।
हर पल उसी  में डूबे रहने के कारण हमे उसकी कडवाहट झेलनी पडती है पर उसके साथ सोच के दायरे को फैला देने से मात्रा कम न होने पर काी दर्द में अंतर जरूर पडेगा। दरअसल ये नवजीवन के प्रतीक होते हैं। लेकिन कुछ बदलाव ऐसे काी होते हंै जो हमे बिल्कुल अच्छे नही लगते है जैसे यौवन से बुढापे की ओर बढना या कोई बिमारी हो जाना। शक्तिम या संपति का घटना, ये सब हमे मानसिक कष्ट देते हैं। हम बदलाव काी अपने मन के अनुसार चाहते हैं। बल्कि कह सकते हैं कि केवल अपने बढोतरी के लिए चाहते हैँ। यह सहज संभव नही है। बदलाव जीवन का अनिवार्य अंग है।

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया जीवन मे एक निरंतरता बनी रहती है इसके प्रति जो लोग जागरूक रहते हैं वे ही इसका लाभ उठा सकते है और लापरवाह लोगों को हानि उठानी पडती है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है  मनुष्य की  उम्र कोई चाहकर भी नही रोक पाता। इसलिए जीवन की  निरंतरता के प्रति सजग और सरल और सहज दृष्टिकोण अपनाए जाएं।
इसमे बाधा बनता हेै मन क्योंकि मन भी बहुत गतिशील है  मन अपनी गति को जीवन की निरंरतरता से टक्कर देता है और फिर दुख पीडा जैसे अनुभवों की शुरूआत होती है ध्यान रखिएगा कष्ट संकट पीडा ये सब भाव है जैसे ही यह  भाव मन तक पहुंचते हैं मन उनको रूप देने लगता है जो आकार मन देता है वैसा ही दुख हमारे सामने खडा हो जाता है। इसलिए  जीवन की निरंतरता मे मन की गति पर हो होश रखना होगा क्योकि मन आशक्ति मे काटकता है ओर अशक्ति जीवन की निरंतरता के लिए बहुत बडा अवरोध है।