Chandigarh News: चेतना को जगाकर ही प्रसन्नता को पाया जा सकता है

0
188
Chandigarh News
Chandigarh News:   जीवन का निर्माण करना चाहते हो तो आनंद के रस मे सदाबहार प्रसन्न रहकर, चेतना को जगाओ, व्यक्ति बंद आंख  के खौफनाक सपने मे खौफ व रंगीन सपने मे रंगीनियां दिखाई देने पर आंख खुलते ही भयभीत व खुश नही होता। शरीर की नींद तो 6 या 8 घंटे मे टूट जाती है चेतना की नींद चिरकालीन अनंत से चली आ रही है। स्वप्न व सत्य के भेद को सिर्फ  जगा हुआ ही जान सकता है। दुखो का रोना, भ्रम, अज्ञान है जीवन की सच्चाई समझ आ गई तो जाग जाओगे। । ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने नवदिवसीय अध्यात्मिक अनुष्ठान के अंतर्गत चौथे दिन इंद्र बस्ती तेरापंथ भवन में कहे।
मनीषीश्रीसंत ने कहा- आत्मा के कार्य को जागो, संसार के कार्याे मे सो जाओ, जो निश्चय से जगता है वह कार्य मे जागृत है। जो व्यवहार मे जागृत है वह अपने कार्य मे सोते है। संसार सोता है, आत्मा साधक फिर भी जागृत रहता है। मन, सोच, दृष्टि बदलते ही सोई हुई चेतना जाग जाती है, अविचलता आ जाती है। चेतना के जागृत होने पर इंसान जो कुछ पाता है उसे वह अपने तक ही सीमित नही रखता बल्कि जो कुछ पाया उसे रोक  तक बढाता है  जो अपने पास रखता है वह अभी तक  सोया है। पानी  को रोकने  पर सडता है जितना प्रवाहित होता है पवित्रता आती है। जीवन  के कल्याण के लिए पूरी  तरह से जागे और जो कुछ  पाया उसे सत्कार्याे पर लगाने  पर ही जीवन उत्कर्ष बनता है।  त्याग की भूमिका तक पहुंचने से पहले दान का मार्ग न छोडे। जो देता है वह पाता है। जितना दोओगे उतना ही पाओगे। सच्चाई  तो यह है कि देने की बात आती है तो हाथ संकुचित  हो जाते है संग्रहित  करते है तो  सड जाते है। भावों को सुद्ढ बनायें साधना का मार्ग बनाया तो  ग्रो करे यही वास्तवितकता मे ग्रोथ है।
मनीषीश्रीसंत ने कहा कि वह स्थिति जिसमें मनुष्य सुख, दुख, हानि, लाका, क्रोध, मोह व अहंकार आदि से मुक्त होकर स्वयं में स्थापित हो चुका हो। यानी मन का पूर्णतया निग्रह। मन, इंद्रियों द्वारा मनुष्य को संसार में लिप्त करके उसकी प्रवृत्ति को वाह्यं बनाता है और वह संसार में इंद्रियों के द्वारा सुख की खोज में भटकता रहकर जीवन-मरण का चक्कर लगाता रहता है। इसीलिए परमानंद की प्राप्ति के लिए सबसे पहले मन की प्रवृत्ति को अपने अंदर की ओर मोडऩा चाहिए।
मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया-सुखी रहने के लिए आवश्यक है कि परिस्थितियों का रोना न रोया जाए। जहांं उद्यमए पराक्रम, धैर्य व साहस है, वहां पर दुख ठहर ही नहीं सकता। हर रात के बाद सवेरा आता है। सच्चा सुख देने से मिलता है, पाने से नहीं। परस्पर व्यवहार में स्वयं से अधिक दूसरों को महत्व देना चाहिए। प्रेम, सत्य, तप, त्याग की नींव पर खडी की गई सुख की इमारत ही शाश्वत है। भौतिक साधन कितना ही वाह्य सुख प्रदान करे, भीतर तो खाली ही रहेगा। कामनाओं की पूर्ति से सुख प्राप्त नहीं हो सकता। एक के बाद एक कामना जीवनपर्यन्त मनुष्य के साथ जुडी रहती है। जीवन भर साधन बटोरते-बटोरते वर्तमान जीवन व्यर्थ चला जाता है।