Chandigarh News : साहस के साथ जिंदगी का ले आनंद : मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

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Chandigarh News, चंडीगढ : क्या इस काम को करने में आपको इससे मिलने वाले पैसे से ज्यादा ख़ुशी मिल रही है या मिलेगी ?या फिर ये आप थोड़े से पैसों के लिए और एक ठीक ठाक से जीवन जीने किए लिए कर रहे हैं! यदि एसा है तो फिर आप जिन्दगी भर संघर्ष करने वाले हैं क्योंकि जिस काम में आपका इटरस्ट न हो उसे करना किसी यातना से कम नहीं है और यह यातना आप अपने पूरे युवावस्था के लिए चुन रहे हैं जब आपको इससे छुटकारा मिलेगा आप बूढ़ें हो चुके होंगे.आज सम्भावनाओं की कोई कमी नही है, कमी है तो उन्हें देखने की,जरूरत है तो अलग नजरिये वाले लोगों की, नई सोच की, कुछ क्रिएटिव लोगों की, साहस की और मिलकर नये रिस्क लेने वालों की,अगर ऐसा हुआ तो देश में तरक्की करने वालों की बाढ़ आ जाएगी, वे अपने साथ कई और लोगों को भी रोजगार देंगे और अनावश्यक बेरोजगारी खत्म हो जाएगी। ये शब्द मनीषीसंतश्रीमुनिविनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर-24 सी  अणुव्रत भवन  तुलसीसभागार में सभा को संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा जिन लोगों के जीवन में उत्साह नहीं होता है, वे उनका जीवन निरस हो जाता है, ऐसे लोगों को किसी काम में आनंद नहीं मिलता, हर पल मन उदास रहता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए हर हाल में प्रसन्न और संतुष्ट रहना चाहिए। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है, जिसमें उत्साह का महत्व बताया गया है। ्रचलित कथा के अनुसार पुराने समय में एक राजा को अपने हाथी से विशेष स्नेह था। हर युद्ध में राजा उस हाथी को ले जाता था। हाथी भी राजा के सभी आदेशों का पालन करता था। हाथी की मदद से राजा ने कई शत्रुओं को पराजित किया था, लेकिन समय के साथ हाथी बूढ़ा हो गया था। अब वह अधिक तेज नहीं था। इस वजह से हाथी ने उस हाथी को युद्ध में ले जाना बंद कर दिया। राजा ने एक नया हाथी मंगवा लिया था।

वृद्ध हाथी के लिए राजा ने खाने-पीने की पूरी व्यवस्था कर दी थी, लेकिन इसके बाद भी वह उदास रहने लगा। राजा और उसके सैनिकों को लगा कि अब वृद्धावस्था की वजह से इसकी ऐसी हालत हो गई है। कुछ दिनों के बाद हाथी पूरी तरह से उत्साहहीन हो गया। एक दिन वह तालाब के बीच में पहुंच गया, वहां दलदल अधिक थी। तालाब के बीच में पहुंचकर वह फंस गया। बहुत कोशिश के बाद भी हाथी निकल नहीं पा रहा था। हारकर वह वहीं बैठ गया। सैनिकों ने हाथी को फंसा हुआ देखकर राजा को सूचना दी। राजा अपने मंत्रियों के साथ तुरंत तालाब किनारे पहुंच गए। राजा ने हाथी को बहुत आवाज लगाई, लेकिन वह हिला नहीं। सैनिकों ने भी उसे निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। तब एक मंत्री ने राजा से कहा कि हमें यहां युद्ध में बजने वाले ढोल-नगाड़े बजाना चाहिए।

ये सुनकर राजा को हैरानी हुई, लेकिन उन्होंने हाथी को निकालने के लिए मंत्री की बात मान ली। अब वहां ढोल-नगाड़े बजने शुरू हो गए। जैसे ही ढोल-नगाड़ों की आवाज हाथी ने सुनी, वह पूरी ताकत से उठ गया। अब उसने दलदल से बाहर निकलने की कोशिशें तेज कर दी और उसे सफलता भी मिल गई। कुछ ही देर में हाथी तालाब से बाहर आ गया। ये देखकर राजा हैरान था। उन्होंने मंत्री से पूछा कि ये कैसे संभव हुआ। तब मंत्री ने कहा कि महाराज मैं इस हाथी को अच्छी तरह जानता हूं। ये आपके साथ युद्ध में जाता था। उस समय इसके जीवन में उत्साह था, लेकिन जब से आपने इसे युद्ध में ले जाना बंद कर दिया है, तब से ये उदास रहने लगा, इसका उत्साह खत्म हो गया था। आज हमने इसके सामने फिर से ढोल-नगाड़े बजाए तो इसे लगा कि अब इसे युद्ध में जाना है। इसका उत्साह लौट आया और इसने पूरी ताकत लगा दी दलदल से निकलने में और इसे सफलता भी मिल गई।