Chandigarh News: व्यवस्थित जीवन जीने के लिए मनुष्य के जीवन में नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है। नियम के बगैर मनुष्य का जीवन पशु से भी बदतर माना जाता है। नियम पालन और कुछ नहीं, बल्कि अनुशासन में रहना है। जिस व्यक्ति के जीवन में अनुशासन है, वे अपने सभी काम सही समय पर और सही तरीके से करते हैं, जिससे सफलता उनके कदम चूमती है। इसके विपरीत अनुशासन के बगैर व्यक्ति कभी खुशहाल जीवन नहीं जी सकता। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजआलोक ने राजपुरा देशभगत कॉलोनी मे कुलदीप सिंगला के आवास नंबर-26 मे कहे।
मनीषीसंत ने आगे कहा ऐसा इसलिए, क्योंकि नियम का पालन नहीं करने से व्यक्ति अनुशासन खो देता है। इस कराण उसका जीवन कई तरह के संकटों से घिर जाता है। प्रकृति के सारे कार्य नियमबद्ध तरीके से होते हैं। जिस तरह सूर्य नित्य उदित होता है और चंद्रमा अपनी चांदनी बिखेरता है, उसी तरह मनुष्य को भी आलस्य को त्यागकर अपने जीवन में नियमों का पालन करना चाहिए।
जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना ही है। जब प्रकृति नियमों के प्रति इतनी सजग व अडिग है, तो मनुष्य को इससे छूट कैसे मिल सकती है? कभी-कभी प्रकृति जब अपने नियम से हटती है। हालांकि ज्यादातर बार इसकी वजह मनुष्य द्वारा किया गया खिलवाड़ ही होता है-तब विकराल घटनाएं घटित होती हैं।
इसी तरह जो व्यक्ति नियमों का पालन नहीं करता, उसका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और ऐसा मनुष्य मुसीबतों से घिर जाता है। मनुष्य द्वारा किए जाने वाले प्रत्येक कार्य के लिए नियम हैं और जो व्यक्ति अपने कर्म में इन नियमों का पालन करता है, उसका जीवन सुखी व्यतीत होता है।
विवेकानंद ने मनुष्य के चरित्र को उसका वास्तविक धन बताया है। विवेकानंद कहते हैं कि सत्यवादी बनिए। इसका आशय है किसी से डरे बगैर व्यक्ति को सत्य बोलना चाहिए। चाहे यह किसी को अच्छा लगे या न लगे। सत्य के लिए सब कुछ छोड़ा जा सकता है, लेकिन सच को किसी भी चीज के लिए नहीं छोड़ा जा सकता।
इसी तरह पवित्रता और परमार्थ के बारे में उन्होंने कहा था, ये जहां कहीं भी उपस्थित होंगे, ऐसी कोई ताकत नहीं है, जो उस व्यक्ति को हिला सके। इनसे युक्त होने पर व्यक्ति संपूर्ण ब्रह्मांड के विरोध का सामना करने में सक्षम हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य को नियम पालन को अपना धर्म मानना चाहिए।
मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया यदि अनुशासन का पालन नहीं किया जाए, तो जीवन उच्छृंखल बन जाएगा। हम इतिहास व पुराण उठाकर देखें, तो हमें इसके अनेक उदाहरण मिल जाएंगे, जहां अनुशासन से महत्वपूर्ण सफलताएं और उपलब्धियां हासिल हुई हैं। ये उपलब्धियां हमारे लिए प्रेरणा का प्रबल स्तंभ बनीं।
आज जीवन की आपाधापी बढ़ गई है, लोग कम समय में अधिक से अधिक सफलताएं प्राप्त कर लेना चाहते हैं। वह येन-केन-प्रकारेण ढंग से लक्ष्य प्राप्ति के लिए दौड़ते रहते हैं। वे अनुशासन का पालन करना जरूरी नहीं समझते, लेकिन इसके विपरीत सच्चाई यह है कि जहां जितना अच्छा अनुशासन है, वहां उतनी ही शांति व सुख है।
यह एक कटु सच्चाई है कि अनुशासन के बिना सफलता नहीं हासिल की जा सकती। जिस देश के लोग अनुशासित हैं, जहां की सेना अनुशासित है, वह देश निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होता रहेगा, वह सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ता रहेगा। अनुशासन का पहला पाठ हम घर से सीखते हैं। घर ही वह प्रथम पाठशाला है, जहां हमें भली-भांति अनुशासन की शिक्षा मिलती है। यह शिक्षा केवल पुस्तक के पन्नों को उलटने से नहीं मिलती, बल्कि वयस्कों के या स्वयं के अनुशासन से बच्चों को मिलती है।