मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा आपके लिए हर चीज ठीक है। जिस पल आप कोई चीज चुनते हैं, तो आप उसे दूसरी चीजों से अलग कर देते हैं। भक्ति का मतलब है पूरी तरह से चुनावविहीन हो जाना। जब पूरी तरह से चुनाव-विहीनता होती है, जब हर चीज आपको अपने में समेट ले या आप हर चीज को अपने में समेट लें, तब उसे भक्ति कहते हैं। सत्य भी ऐसा ही होता है- सबको शामिल करने वाला। यह ज्ञान-योग नहीं है। किसी चीज के बारे में आपकी जानकारी, जो आपके लिए जीता-जागता अनुभव नहीं है, एक शुद्ध कचरा है। हो सकता है कि वह बहुत पवित्र कचरा हो, लेकिन वह आपको मुक्त नहीं करता, वह आपको सिर्फ उलझाता है। अगर आप आसमान की तरफ देखते हैं, तो तमाम खगोलीय पिंडों, तारों और आकाशगंगा को पाएंगे, लेकिन उनके बावजूद वहां अथाह खालीपन, एक अनंत शून्यता की मौजूदगी सबसे बड़ी है। इस वक्त भी, इसी शून्यता की गोद में यह संपूर्ण सृष्टि घटित हो रही है। इस शून्यता को ही ‘शिव’ कहते हैं, और इसीलिए उन्हें सृष्टि का आधार माना जाता है। सही मायने में ज्ञान-योग के मार्ग पर चलने के लिए चंद लोगों के पास ही जरूरी बुद्धि होती है। ज्यादातर लोगों को भारी मात्रा में तैयारी की जरूरत होगी। बुद्धि को छुरी जैसी पैनी बनाने के लिए एक पूरी पद्धति होती है जिससे कि उस पर कुछ भी न चिपके। इसमें बहुत वक्त लगता है, क्योंकि मन बड़ा मारक होता है। वह लाखों तरह के भ्रम पैदा कर देगा। कुछ ही लोग इसकी साधना सही तरीके से कर पाते हैं।
मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया जीवन ऊर्जा को एक दिशा में चलने के लिए एक बचनबद्धता आवश्यक है। जीवन बचनद्धता के साथ चलता है। एक विद्यार्थी किसी स्कूल या कॉलेज में एक बचनबद्धता के साथ प्रवेश लेता है। तुम एक डॉक्टर के पास एक बचनबद्धता के साथ जाते हो कि डॉक्टर जो कुछ उपचार बताता है, उसको सुनते हो या उसके द्वारा दी गई औषधि को लेते हो। बैंक एक बचनबद्धता के साथ कार्य करते हैं। सरकार भी एक बचनबद्धता के साथ कार्य करती है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि एक परिवार भी बचनबद्धता के साथ चलता है, मां-बच्चे के साथ प्रतिबद्ध है व बच्चा अपने मां-बाप के प्रति प्रतिबद्ध है। पति-पत्नी के साथ और पत्नी पति के साथ बचनबद्ध है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में चाहे वह प्यार हो या व्यवसाय हो या मित्रता हो, बचनबद्धता अवश्य होती है।