Chandigarh News: जब तक दुनिया में जाति, धर्म, रंग, छोटे बडे आदि का भेदभाव रहेगा तब तक दुनिया में ना कोई सुकुन से रहा है और न ही रहेगा। इन सर्कीणताओं को तोडकर ही पर तत्व को पाया जा सकता है। सफलता का केंद्र खत्म करना होगा।

अगर बच्चों से आपको प्रेम है और मनुष्य-जाति के लिए आप कुछ करना चाहते हैं तो बच्चों के लिए सफलता के केंद्र को हटाइए, सफलता के केंद्र को पैदा करिए। अगर मनुष्य-जाति के लिए कोई भी आपके हृदय में प्रेम है और आप सच में चाहते हैं कि एक नई दुनिया, एक नई संस्कृति और नया आदमी पैदा हो जाए तो यह सारी पुरानी बेवकूफी छोडऩी पड़ेगी, जलानी पड़ेगी, नष्ट करनी पड़ेगी और विचार करना पड़ेगा कि क्या विद्रोह हो, कैसे हो सकता है इसके भीतर से।

यह सब गलत है, इसलिए गलत आदमी पैदा होता है। शिक्षक बुनियादी रूप से इस जगत में सबसे बड़ा विद्रोही व्यक्ति होना चाहिए। तो वह पीढिय़ों को आगे ले जाएगा। सबसे बड़ा ट्रेडिशनलिस्ट वही है, वही दोरहाए जाता है पुराने कचरे को। क्रांति शिक्षक में होती नहीं है। ये शब्द मनीषीश्रीसंतमुनिविनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर-24 सी अणुव्रत भवन तुलसीसभागार में सभा को संबोधित करते हुए कहे।

मनीशीश्रीसेंत ने आगे कहा हमारे जो मूल्य हैं, हमारी जो वैल्यूज हैं-उनकी बाबत विद्रोह का रुख, विचार का रुख होना चाहिए कि हम विचार करें कि यह मामला क्या है! जब आप एक बच्चे को कहते हैं कि तुम गधे हो, तुम नासमझ हो, तुम बुद्धिहीन हो, देखो उस दूसरे को, यह कितना आगे है! तब आप विचार करें, तब आप विचार करें कि यह कितना दूर तक ठीक है और कितने दूर तक सच है! क्या दुनिया में दो आदमी एक जैसे हो सकते हैं? क्या यह संभव हुआ है? हर आदमी जैसा है, अपने जैसा है, दूसरे आदमी से कंपेरिजन का कोई सवाल ही नहीं। किसी दूसरे आदमी से उसकी कोई कंपेरिजन नहीं, कोई तुलना नहीं है।

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया छोटी प्रतिबद्धता तुम्हें घुटन देती है, क्योंकि तुम्हारी क्षमता बहुत अधिक है। जब तुम्हारे पास दस कार्य करने के लिए होते हैं और यदि एक कार्य गलत हो जाता है, तो तुम बाकी कार्यों को करते रह सकते हो। लेकिन यदि तुम्हारे पास केवल एक ही कार्य करने के लिए होता है और वह अगर गलत हो जाता है तो तुम उसी से चिपके रह जाते हो।

प्राय: हम यह सोचते हैं कि पहले हमारे पास कार्य के स्रोत हों, तब हम कोई भी कार्य करने के लिए बचनबद्ध होंगे। वास्तव में यह ऐसा नहीं है. तुम जितना ही बड़ा कार्य करने की बचनबद्धता करोगे, उतने ही बड़े स्रोत स्वमेय ही प्राप्त हो जाएंगे। जब तुम्हारे अन्दर किसी कार्य को करने का विचार आता है तो जब भी और जितना भी आवश्यक होता है उसके लिए स्रोत तुमको मिल जाते हैं।

उत्तरदायित्व बढ़ाने के साथ ही बढ़ती है क्षमता: क्षमता के बाहर हाथ-पैर फैलाने से तुहारा विकास होता है। यदि तुममें अपने शहर की देखभाल करने की क्षमता है और तुम यह कार्य करते हो, तो बड़ी बात नहीं है, लेकिन यदि तुम इसे विस्तृत करते हुए अपने पूरे प्रदेश की देखभाल करने या बचनबद्धता करते हो तो तुम्हें उतनी ही अधिक शक्ति प्राप्त होती है। जैसे ही अधिक उत्तरदायित्व लेते हो, तुम्हारी क्षमता भी बढ़ जाती है, बुद्धिमता भी बढ़ जाती है, तुम्हारी प्रसन्नता बढ़ जाती है और तुम दैविक शक्ति के साथ एकीकृत हो जाते हो।