(Chandigarh News) पंचकूला। शिक्षा का अधिकार हर बच्चे का हक है, लेकिन आज स्कूल शिक्षा देने के साथ-साथ किताबों और वर्दी के नाम पर अभिभावकों की जेब पर भारी बोझ डाल रहे हैं। खासकर प्राथमिक से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के माता-पिता मोटी रकम खर्च करने को मजबूर हैं। स्थिति यह है कि स्कूलों की मनमानी के खिलाफ आवाज उठाने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि प्रशासन और स्कूल प्रबंधन की मिलीभगत के आरोप लगातार सामने आ रहे हैं।

अधिकारियों की चुप्पी और अभिभावकों की पीड़ा

पंचकूला जिले में अभिभावकों का कहना है कि अगर वे स्कूलों की शिकायत करते हैं, तो अधिकारियों द्वारा स्कूल प्रबंधन को उनकी पहचान बता दी जाती है। इससे बच्चों पर मानसिक दबाव पड़ता है और उनका स्कूल में पढ़ाई करना मुश्किल हो जाता है। कई अभिभावकों का कहना है कि किताबों और वर्दी की ऊंची कीमतें कमीशनखोरी का नतीजा हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं।

कहीं कोई कार्रवाई नहीं

जब इस विषय में जिला शिक्षा अधिकारी सतपाल मलिक से बात की गई तो उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि उनके अधिकार क्षेत्र में केवल नौवीं से 12वीं तक की कक्षाएं आती हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने अब तक किसी स्कूल के खिलाफ कोई कार्रवाई की है, तो वह जवाब देने से हिचकने लगे। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक स्तर पर भी इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा।

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सरकार “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” और “सबको शिक्षा” जैसी योजनाएं बनाती है, लेकिन जब निजी स्कूलों की लूटखसोट और अधिकारियों की निष्क्रियता सामने आती है, तो ये योजनाएं सिर्फ कागजी साबित होती हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) लागू होने के बावजूद जब अभिभावकों को किताबों और वर्दी के ऊंचे दाम चुकाने पड़ें और कोई राहत न मिले, तो यह गंभीर चिंता का विषय है।

अब देखना यह होगा कि शिक्षा मंत्री और प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर कोई ठोस कदम उठाते हैं या फिर अभिभावक इसी तरह आर्थिक बोझ के तले दबे रहेंगे।

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