Chandigarh News: चंडीगढ़ मेयर कुलदीप कुमार ने लिया मनीषीसंत से आर्शीवाद

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Chandigarh News: आज चंडीगढ मेयर कुलदीप कुमार ने मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक से शिष्टाचारक मुलाकात की।  इस दौरान श्री कुलदीप ने मनीषीसंत से आर्शीवाद प्राप्त किया। इस दौरान उन्होने मनीषीसंत की कथनी और करनी एक सम्मान है। मनीषीसंत ने आचार्यश्रीमहाश्रमण जी चंडीगढ चतुमार्स को लेकर कुछ वार्तालाप मेयर से की तो उन्होने कहा यह तो हमारा बडा सौभागय होगा जब चंडीगढ की धरा पर आचार्यश्री के चरण पग पडेगें। हम उस आने वाली घडी का बेसब्री  और पलके बिछाकर इंतजार कर रहे है।

मनीषीसंत को भंयकर सर्दी मे एक ही कपडे ओढे देखकर मेयर ने कहा संतो के शरीर पर सर्दी, गर्मी व धूप छांव का असर नही पडता ये सदा एक ही रस मे रहते है और ऐसी शख्शियत के रूबरू दर्शन करने का मुझे बराबर मौका मिलता रहता है।

आत्मविश्वास को जिंदगी से कभी न होने दे कम: मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलो
चंडीगढ, 9 दिसंबर आत्मविश्वास से हमारी संकल्प शक्ति बढ़ती है और संकल्प शक्ति से बढ़ती है हमारी आत्मिक शक्ति। संसार के सारे युद्धों में इतने लोग नहीं हारते, जितने कि सिर्फ घबराहट से। अत: अपने ऊपर विश्वास रखकर ही आप दुनिया में बड़े से बड़ा काम सहज ही कर सकते हैं और अपना जीवन सफल बना सकते हैं। मधुमक्खी कण-कण से ही शहद इक_ा करती है। उसे कहीं से इसका भंडार नहीं मिलता। उसके छत्ते में भरा शहद उसके आत्मविश्वास और कठिन परिश्रम का ही परिणाम है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक ने  सैक्टर-24 सी अणुव्रत भवन तुलसीसभागार मे कहे।

मनीषीसंत  ने अंत मे फरमाया हमारे अस्तित्व का एक ही लक्ष्य है और वो है आध्यात्मिक जिसकी हम सामन्यत: अवहेलना कर रहे हैं। इसलिए हममें से हर अधिकांश व्यक्ति अशांत है। हम छोटी-छोटी बातों के लिए लड़ते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि हम सभी में एक ही प्रकाश है, और वो है ज्योतिसम् ज्योति:। यह प्रत्येक मनुष्य में है। यदि कोई जानना चाहे कि जीवन का सत्य क्या है ? तो उसके लिए यह अनिवार्य है। वह अपने ह्दय के गुप्त भाग में ध्यान के जरिए प्रवेश करे। क्योंकि परमात्मा ऊपर आसमान में नहीं। न वह तारों में है। न वो समुद्र में हैं वह तो अंत: मन में बसा हुआ है। जिसे बस खोजने की जरूरत है। हमारे यहां अनेक धर्म हैं।

गुरु नानक ने अपने समय में हिंदू-मुस्लिम को परस्पर विरोधी के तौर पर देखा। और कहा तुम रूपों को लेकर, समारोहों को लेकर, सिद्धांतों और तीर्थस्थानों को लेकर आपस में क्यों झगड़ते हो? हम सभी एक ही ईश्वर की पूजा करते हैं जो ओंकार है। जो एक है। बस नाम और रूप अलग-अलग हैं। हमें अपने जीवन के प्रत्येक क्षण अपने से पूछना चाहिए कि क्या हम जिन महान उपदेशों को देते हैं उनका अपने जीवन में पालन भी करते हैं। यदि हम सचमुच पालन कर रहे होते हैं तो इतने सामाजिक मतभेद नहीं होते और न हममें इतने धार्मिक अंतर होते। आरंभ हम स्वयं से करें।अधिकांश लोग सोचते हैं कि संतों के जीवन में खठोरता और उदासीनता होती है। यह सत्य नहीं है। जो परमात्मा से साक्षात्कार करते हैं वे समाज के दु:ख या विफलताओं के प्रति कठोर दृष्टिकोण नहीं रखते हैं। वो सभी मानवीय दु:खों के प्रति सहानुभूति का नजरिया रखते हैं।