Chandigarh News: खेल कोई भी हो अगर खिलाडी जीतने के लिए एडी चोटी का जोर लगाते है। उसमें कुछ को ही सफलता प्राप्त हुई और तमाम के खाते में असफलता आई। सफलता और असफलता का निर्धारण करने में जिन बिंदुओं की अत्यंत निर्णायक भूमिका मानी गई, उनमें से एक है प्रबल इच्छाशक्ति। जिस स्वप्निल मुकाबले के लिए खिलाड़ी कई साल कड़ा परिश्रम करते हैं, उसे वह इच्छाशक्ति और मानसिक दृढ़ता के अभाव में मात्र कुछ ही पलों में गंवा देते हैं। कहते भी हैं कि युद्ध केवल अस्त्र-शस्त्र से नहीं, बल्कि उत्साह से भी जीता जाता है। प्रबल इच्छाशक्ति ही उत्साह की वास्तविक जननी है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलो
मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा नि:संदेह प्रबल इच्छाशक्ति ही मनुष्य की सफलता का मुख्य आधार है। यह प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान है, बस उसे जागृत करने और विकसित करने की आवश्यकता है। आत्मसुधार या व्यक्तित्व का निर्माण इच्छाशक्ति पर ही निर्भर करता है। असफल होने के बाद भी प्रयास करते रहने की लगन ही इच्छाशक्ति का निर्धारण करती है। इच्छाशक्ति के अभाव में योग्यता, अनुकूलता और प्रतिभा किसी काम की नहीं। दुख और असफलता दुर्बल इच्छाशक्ति के कारण ही आते हैं। अतीत को लेकर पछतावा और भविष्य की अनावश्यक चिंता मनुष्य की इच्छाशक्ति पर आघात करते हैं। गलतियों पर चिंतन करने और कुढ़ते रहने से ऊर्जा व्यर्थ होती है और हमें अकर्मण्य बना देती है। यही अकर्मण्यता इच्छाशक्ति का हनन करती है और मनुष्य जीती बाजी भी हार जाता है।
मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया दिव्यांग यानी जिनके अंग शरीर में तो हैं, लेकिन उनके कार्य करने की क्षमता पूरी तरह शून्य हो गई हो। ऐसे कई लोग हैं जो आंखों से देख नहीं सकते। कान से सुन नहीं सकते या फिर उनके शारीरिक अंग जैसे- पैर, हाथ या तो बचपन से अविकसित हैं या फिर किसी दुर्घटना के कारण वह खराब हो चुके हैं।दरअसल, हमारे शरीर का कोई अंग जब बहुत समय तक कार्य नहीं करता या फिर जन्म से ही सक्रिय नहीं हैं।
ऐसे में हमारा मस्तिष्क के वह भाग क्रियाशील हो जाते हैं। जो उस अंग से जुड़े हुए होते हैं, और उसे दिशानिर्देशित करते हैं।होता यूं है कि वह व्यक्ति उन अंगों के न होने पर भी अपने कार्य को बेहतर तरीके से कर सकता है। लेकिन ऐसा तभी होगा जब उस व्यक्ति में इच्छा शक्ति बहुत ज्यादा प्रबल होगी।ऐसे कई लोगों के उदाहरण या समाचार हम अखबार, पत्रिका, सोशल साइट्स या फिर टीवी पर देखते और पढ़ते हैं।
जिनकी आंखों में रोशनी नहीं, लेकिन वह आस-पास की वस्तुओं को स्पर्श और आवाज से पहचान जाते हैं। ऐसे कई लोग हैं जिनके हाथ नहीं होते तब वह पैरों से लिखना सीख जाते हैं। ऐसा उनकी प्रबल इच्छाशक्ति के कारण होता है। यह इच्छा हर व्यक्ति में मौजूद रहती है। यह बिल्कुल जरूरी नहीं यह इच्छा शक्ति दिव्यांग लोगों के पास ही हो, यह शक्ति हर मनुष्य के अंदर होती है। जरूरत है तो इसे जाग्रत करने की और यह तभी संभव होगा जब आप सकारात्मक दृष्टिकोण को आजमाते हुए, अपने हर कार्य को पूरी लगन और प्रबल इच्छा शक्ति के साथ करेंगे।