Chandigarh News: वन नेशन, वन इलेक्शन के समर्थन में” विषय पर एक विचारशील संगोष्ठी आज लॉ भवन, सेक्टर 37, चंडीगढ़ में सफलतापूर्वक आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में 250 से अधिक वकीलों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं, न्यायिक विशेषज्ञों और कानूनी विद्वानों ने भाग लिया और भारत में समानांतर चुनावों को लागू करने के संवैधानिक और व्यावहारिक पहलुओं पर गहन चर्चा की।

संगोष्ठी की शुरुआत पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट बार के वरिष्ठ अधिवक्ता लेखराज शर्मा के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने विशिष्ट अतिथियों का परिचय कराया और “वन नेशन, वन इलेक्शन” पहल की महत्ता पर प्रकाश डाला, जो राजनीतिक स्थिरता और प्रभावी शासन सुनिश्चित करने में सहायक हो सकती है।

मुख्य अतिथि, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरविंद सांगवान ने वन नेशन, वन इलेक्शन के संवैधानिक व्यवहार्यता और कानूनी जटिलताओं पर गहन व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि यह प्रणाली चुनावी प्रक्रिया को सुगम बनाने, प्रशासनिक खर्चों को कम करने और शासन में रुकावटों को कम करने में सहायक हो सकती है। उन्होंने इस सुधार के संभावित अवसरों और चुनौतियों पर न्यायिक दृष्टिकोण से प्रकाश डाला।

वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व सहायक सॉलिसिटर जनरल ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि यह चुनावी सुधार राष्ट्र की जरूरत है। उन्होंने बताया कि बार-बार होने वाले चुनाव शासन को बाधित करते हैं, सरकारी खजाने पर अतिरिक्त भार डालते हैं और नीति-निर्माण से ध्यान भटकाते हैं। उन्होंने कानूनी बिरादरी से इस पहल का समर्थन करने की अपील की, जिससे भारत में स्थायित्व और विकासोन्मुखी प्रशासन को बढ़ावा मिलेगा।

वरिष्ठ अधिवक्ता एवं हरियाणा के पूर्व एडवोकेट जनरल बी.आर. महाजन ने इस विषय पर अपनी राय रखते हुए बताया कि अलग-अलग समय पर चुनाव कराने से प्रशासनिक चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। उन्होंने कहा कि यदि सभी चुनाव एक साथ कराए जाएं तो नीतिगत स्थिरता, प्रशासनिक दक्षता और दीर्घकालिक विकास योजनाओं में निरंतरता लाई जा सकती है।

वरिष्ठ अधिवक्ता अतुल लखनपाल ने भारतीय चुनावी इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में एकसाथ चुनाव कराए जाते थे, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और समयपूर्व विघटन के कारण यह चक्र बाधित हो गया। उन्होंने वकील समुदाय से अपील की कि वे इस प्रणाली को फिर से स्थापित करने के लिए अपना समर्थन दें।

संगोष्ठी का समापन एक इंटरैक्टिव सत्र के साथ हुआ, जहां अधिवक्ताओं ने वन नेशन, वन इलेक्शन की व्यवहार्यता, आवश्यक संवैधानिक संशोधन और इसके संघीय ढांचे पर संभावित प्रभाव पर विचार-विमर्श किया।

यह संगोष्ठी कानूनी समुदाय के लिए एक आह्वान थी कि वे लोकतांत्रिक सुधारों को मजबूत करने में सक्रिय भूमिका निभाएं। इस विषय पर वकीलों की जबरदस्त भागीदारी ने उनके भारत के चुनावी ढांचे को अधिक स्थिर और विकासोन्मुखी बनाने की प्रतिबद्धता को दर्शाया।