Chandigarh News: असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) और इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आइवीएफ) सेवाएं देने वाले भारत के मशहूर मेडिकल संस्थान जिंदल ने एक बार फिर रिप्रोडक्टिव मेडिसिन के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। संस्थान ने हाइपोगोनाडोट्रॉपिक हाइपोगोनाडिज़्म के कारण मेल इनफर्टिलिटी के एक जटिल मामले का सफल इलाज किया है।
इनफर्टिलिटी से पीड़ित मरीज और उसकी 28 वर्षीय पत्नी पिछले चार साल से संतान प्राप्ति में असफल हो रहे थे। जांच में पता चला कि उनके पति को एजोस्पर्मिया है, जिसका कारण उनके शरीर में एफएसएच (फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हॉर्माेन) और एलएच (ल्यूटिनाइजिंग हार्माेन) का लेवल कम होना था। जिंदल आईवीएफ की एक्सपर्ट टीम ने सही उपचार देकर इस जटिल समस्या का समाधान किया।
गहन जांच के बाद यह पाया गया कि पत्नी की प्रजनन क्षमता सामान्य थी, लेकिन पति की समस्या के लिए स्पेशल हार्माेन थेरेपी की जरूरत थी। जिंदल आईवीएफ की एक्सपर्ट मेडिकल टीम की देखरेख में पति को ह्यूमन मेनोपॉज गोनाडोट्रोपिन इंजेक्शन दिए गए।
इन इंजेक्शनों में 75 आईयू एफएसएच (फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हॉर्माेन) और 75 आईयू एलएच (ल्यूटिनाइजिंग हार्माेन) की मात्रा थी। शुरुआत में तीन महीने तक यह थेरेपी दी गई, ताकि शुक्राणु (स्पर्म) बनने की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जा सके। हालांकि, तीन महीने के उपचार के बाद भी वीर्य (स्पर्म सैंपल) में कोई शुक्राणु नहीं पाए गए।
हालांकि एक्सपर्ट्स ने उम्मीद नहीं छोड़ी और इंजेक्शन का इलाज जारी रखा। पांचवें महीने में चमत्कारी परिणाम मिलाकृ वीर्य (स्पर्म सैंपल) में शुक्राणु पाए गए, और लगभग 20 लाख गतिशील शुक्राणु मौजूद थे। यह टीम के लिए एक बड़ी सफलता थी, जिससे कपल को अपने ही जेनेटिक मटेरियल से गर्भधारण करने का मौका मिला।
पीड़ित व्यक्ति को पत्नी के स्वयं के अंडों और पति के स्वयं के शुक्राणु से आईवीएफ कराने की सलाह दी गई, जिसे वे खुशी-खुशी अपनाने को तैयार हो गए। आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान पत्नी से 10 स्वस्थ अंडे लिए गए, जिनमें से 6 भ्रूण बने। पहले ही एम्ब्रियो ट्रांसफर (भ्रूण प्रत्यारोपण) के प्रयास में पत्नी गर्भवती हो गई, और गर्भावस्था पूरी तरह से स्वस्थ रही। नौ महीने बाद कपल ने एक सुंदर बेटी को जन्म दिया, जिससे उनकी वर्षों की प्रतीक्षा समाप्त हुई और उनके जीवन में खुशियों की नई रोशनी आई।
जिंदल आईवीएफ में सीनियर कंसल्टेंट और आईवीएफ-पीजीटी एक्सपर्ट डॉ. शीतल जिंदल ने कहा कि यह मामला दर्शाता है कि आधुनिक प्रजनन चिकित्सा बांझपन की समस्याओं को भी हल कर सकती है, भले ही प्रारंभिक इलाज से तुरंत परिणाम न मिले।
हम धैर्य और सटीकता के साथ इस कपल को उनके अपने अंडों और शुक्राणुओं से माता-पिता बनने का सपना पूरा करने में मदद कर सके। इस सफलता ने हमारी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया है कि हम बांझपन की चुनौतियों का सामना कर रहे दंपत्तियों को व्यक्तिगत और सहानुभूतिपूर्ण देखभाल प्रदान करते रहें।
इस मौके पर कपल ने कहा, हमने जिंदल आईवीएफ की मेडिकल एक्सपर्ट टीम से हेल्प और इमोशनल सपोर्ट की मांग कि थी और इनकी वजह से ही हमें अपनी बेटी को इस दुनिया में लाने में मदद मिली। हम डॉ। जिंदल और जिंदल आईवीएफ की पूरी टीम के प्रति बेहद आभारी हैं, जिन्होंने पूरे इलाज के दौरान हमें निरंतर सहयोग और हिम्मत दी। अपने ही जेनेटिक मटेरियल से गर्भधारण कर अपने बच्चे को जन्म देना हमारे लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं है, जिसे हम जीवन भर संजोकर रखेंगे।