Chandigarh News : व्यक्ति के पास जो कुछ होता है वह उससे संतुष्ट नहीं:  मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

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Chandigarh News | चंडीगढ : वे लोग हमेशा सुखी रहते हैं जो हर हाल में संतुष्ट रहते हैं। अगर किसी व्यक्ति के पास सुख-सुविधा के सभी चीजें हैं, लेकिन वह असंतुष्ट है तो वह कभी खुश नहीं रह सकता है। व्यक्ति के पास जो कुछ होता है वह उससे संतुष्ट नहीं। वे लोग हमेशा सुखी रहते हैं जो हर हाल में संतुष्ट रहते हैं। अगर किसी व्यक्ति के पास सुख-सुविधा के सभी चीजें हैं, लेकिन वह असंतुष्ट है तो वह कभी खुश नहीं रह सकता है। संतुष्टि से सुख कैसे मिलता है, इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक ने सैक्टर 24सी अणुव्रत भवन मेें संबोधित करते हुए कहे।

मनीषीसंत ने आगे कहा संतोष ही दुनिया का सबसे बड़ा सुख है। मनुष्य को जीवन में जितनी धन संपत्ति मिले उसमें ही खुश रहकर उस धन का सद् उपयोग करना चाहिए। उस धन का कुछ हिस्सा दान करने व धर्म के नाम पर खर्च करने से ही सुख पाया जा सकता है। सुख में तो व्यक्ति के साथी कई मिल जाते हैं लेकिन वास्तव साथी का पता दुख में ही चलता है। हर पल व हर समय काम आने वाले केवल भगवान और सदगुरु द्वारा दिए गए गुरु मंत्र का जाप है। अपने व्यवहार में थोड़ा-सा बदलाव करके आप अनेक खुशियां पा सकते हैं। खुशी पाने के लिए मनुष्य यहां-वहां भटकता रहता है, जबकि खुशी उसके अंतर्मन में निहित है। दुर्भाग्यवश ज्यादातर लोग यह बात जानते हुए भी इससे अनजान बने रहते हैं। हमारी खुशी का सीधा संबंध संतोष-संतुष्टि से है और हमारा आंतरिक ²ष्टिकोण ही हमारे अंदर सच्चे मायने में खुशी की भावना का अहसास कराता है।

मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया क्रोध का हर समय गलत असर ही पडता है, क्रोध का स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, पाचन शक्ति क्षीण हो जाती है, रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति कमजोर होने से शरीर रोगी हो जाता है। क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति विभ्रमित होती है और स्मृति के विभ्रम से बुद्धि नष्ट हो जाती है। इसलिए व्यक्ति को क्रोध उत्पन्न नहीं होने देना चाहिए। यह सही है कि दूसरे के क्रियाकलापों से क्रोध उत्पन्न होता है, लेकिन क्रोध के आवेग को रोकने का तो हम प्रयत्न कर ही सकते हैं। कहते हैं कि क्रोध आने पर एक गिलास ठंडा पानी पीने से क्रोध की अग्नि शांत हो जाती है। दूसरे उपाय के अनुसार उल्टी गिनती गिनने से मस्तिष्क को अधिक व्यस्त रखने के कारण भी क्रोध शांत होता जाता है। इसके साथ ही एकांत में जाकर ध्यान के माध्यम से क्रोध के विकारों को नष्ट करने का प्रयास करें तो ऋणात्मक ऊर्जा को मोडक़र हम सकारात्मक ऊर्जा से विवेक सम्मत निर्णय लेने में सक्षम हो सकते हैं।