Chandigarh News : पर्यावरण नुकसान व बहाली के लिए री–स्टोरेशन प्लान बनी डीसी, पीपीसीबी, सीपीसीबी की कमेटी

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Chandigarh News |जीरकपुर : बरवाला रोड पर स्थित बड़ी फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री नेक्टर लाइफ साइंसेज लिमिटेड पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पांच करोड़ रुपए का अंतरिम इन्वॉयरोमेंटल कंपनसेशन लगाया है। यह अंतरिम मुआवजा इलाके की आबोहवा को नुकसान पहुंचाने के आरोप में सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड(सीपीसीबी) और (पीपीसीबी) की कंपनी की इंस्पेक्टशन रिपोर्ट के आधार पर लगाया गया है। कंपनी को यह राशि दो महीनों के भीतर पीएसपीसीबी के पास जमा करानी होगी।
यहां अहम बात है कि पांच करोड़ रुपए पर्यावरण को नुकसान के लिए महज अंतरिम मुआवजा है जबकि फाइनल पर्यावरण मुआवजे में एडजस्ट किया जाएगा। यह अंतिम मुआवजे की की गणना और निर्धारण पीपीसीबी द्वारा किया जाएगा। यानी फाइनल मुआवजा पांच करोड़ से कहीं अधिक भी हो सकता है। एनजीटी ने पीपीसीबी को यह भी कहा है कि नेक्टर लाइफ साइंसेज लिमिटेड पर नुकसान की भरपाई के लिए कितना अंतिम जुर्माना लगाना चाहिए, यह तय करने के लिए उस साल से कंपनी की आय की जांच करनी होगी, जिस साल से समस्याएं हुई थीं। हालांकि कंपनी को भी अपनी बात रखने का मौका दिया गया जिसके पीपीसीबी तय करेगा कि कंपनी को कितना भुगतान करना चाहिए। इस काम को दो महीनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।

री–स्टोरेशन प्लान तैयार करेगी डीसी, पीपीसीबी, सीपीसीबी कमेटी

एनजीटी ने यह भी निर्देश दिए हैं कि इलाके में पर्यावरण को हुए नुकसान को ठीक और बहाल करने के लिए अंतरिम और अंतिम पर्यावरणीय मुआवजा का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए जिला मैजिस्ट्रेट, पीपीसीबी और सीपीसीबी की एक संयुक्त कमेटी को री–स्टोरेशन प्लान तैयार करने को कहा गया है। इस कमेटी में डीसी के नुमाइंदे के तौर पर डेराबस्सी के एसडीएम, सीपीसीबी की ओर से दो साइंटिस्ट और पीपीसीबी से एसई और एक्सीयन स्तर के अफसर होंगे। कमेटी दो महीने के भीतर कंपनी और आसपास इलाके का दौरा करेगी जिसमें आबोहवा को नुकसान व बहाली के तमाम उपायों की डिटेल रहेगी। कोर्ट के आदेशानुसार कमेटी को दो महीनों के भीतर रि–स्टोरेशन प्रोजेक्ट तैयार करना होगा और पर्यावरण क्षतिपूर्ति के भुगतान के बाद तीन महीनों के भीतर इसे लागू भी करना होगा।

छह महीने तक हर माह सीपीसीबी–पीपीसीबी विजिट करे

एनजीटी ने पीपीसीबी–सीपीसीबी पर आधारित एक और कमेटी के गठन कर उसे निर्देश दिए हैं कि यह कमेटी छह महीने तक हर महीने कंपनी में विजिट कर वहां प्रदूषण रोधक उपायों का मुआयना करने के अलावा सैंपल्स लेकर उसकी जांच करेगी। एक्सीयन रणतेज शर्मा के अनुसार इस टीम ने पीपीसीबी के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर राजीव गुप्ता की अगुवाई में कंपनी का 4 दिसंबर को दौरा कर वहां हवा और पानी के एक दर्जन से अधिक लेकर उन्हें जांच के लिए भेजा है। इसकी रिपोर्ट चेयरमैन को दी जाएगी। यहां बता दें कि 7 जनवरी को प्लांट की डिफेक्टिव चिमनी से काली राख उड़कर इलाके में फैल गई थी। इसके बाद से शिकायतें और बढ़ गईं। मई में एनजीटी ने शिकायतों को लेकर पीपीसीबी की रिपोर्ट्स पर आदेश होल्ड कर लिया था जिसपर 21 नवंबर को 5 करोड़ रु के मुआवजे का अंतरिम आदेश दिया। फाइनल फैसला आना अभी बाकी है।

जीरो लिक्विट डिस्चार्ज युनिट से भी एनजीटी असंतुष्ट

कंपनी हवा–पानी में प्रदूषण की शिकायतों से जूझती रही है। इसे लेकर उसने 15 लाख रु की लागत से 350 केएलडी का जीरो लिक्विड डिस्चार्ज(जेडएलडी) यूनिट भी लगाया परंतु एनजीटी इसकी रिपोर्ट से भी संतुष्ट नहीं है। दरअसल, जेएलडी से ट्रीटेड पानी केवल प्लांटेशन में इस्तेमाल किया जा रहा है जबकि एनजीटी के निर्देश हैं कि जेएलडी ट्रीटेड पानी का पूरी फैक्ट्री में रियूज होना चाहिए। इसके अलावा पहली रिपोर्ट में यही है कि काली राख उड़ने की शिकायतें भी हैं। कंपनी के पुनीत सूद से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वह प्रेस बयान देने के लिए अधिकारिक पर्सन नहीं है। बेहतर है कंपनी सेक्रेट्री से बात की जाए। हालांकि कंपनी सेक्रेट्री का नंबर उन्होंने नहीं दिया।