कांग्रेस में जमकर जारी है कलह, विपक्ष भी कस रहा कांग्रेस के कलह पर ताने
डॉ रविंद्र मलिक, चंडीगढ़ :
पिछले कुछ दिन से गर्मी का पारा चढ़ा हुआ है तो दूसरी तरफ प्रदेश के राजनीतिक माहौल भी खासी तपन का अहसास हो रहा है। इनेलो सुप्रीमो ओपी चौटाला के बाहर आने के बाद हर पल राजनीतिक माहौल में कंपन हो रही है। लेकिन इससे परे एक और बड़ी गतिविधि राजनीति के गलियारों में छाई हुई है। वो है प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का हमेशा की तरह से रहने वाला कलह जो रह रह कर सामने आता रहा है। पिछले कई दिन से नेता प्रतिपक्ष और पार्टी दिग्गज भूपेंद्र सिहं हुड्डा और पार्टी प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा के बीच का अंदरुनी कलह फिर सतह पर आ गया है। दोनों पार्टी हाईकमान से मिल चुके हैं। दोनों के बीच वर्चस्व की जंग जारी है। ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा है कि हुड्डा व पार्टी प्रदेशाध्यक्ष के बीच खाई बनी हो। इससे पहले पार्टी में ऐसा कई बार हो चुका है। सीधे तौर पर कहें तो ये वर्चस्व की जंग है जिसमें हर कोई विजेता बन कर सामने आना चाहता है। । ये बात बार बार उठ रही है कि शायद हुड्डा भी चाहते हैं कि उनको भी पंजाब के मुख्यमंत्री और कांग्रेस दिग्गज कैप्टन अमरिंदर की तरह फ्री हैंड मिले। वहीं ये भी बता दें कि कांग्रेस के अन्य कद्दावर नेताओं रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी, कैप्टन अजय यादव और कुलदीप बिश्नोई से भी हुड्डा की नहीं बनती है।
क्या हुड्डा को भी खुली छूट चाहिए हरियाणा में?
एक बात लगातार चर्चा में है कि क्या हुड्डा को पंजाब के कैप्टन अमरिंदर की तर्ज पर खुली छूट चाहिए। पार्टी हाईकमान ने जिस तरह से साफ कर दिया है पंजाब में कैप्टन हो सर्वेसर्वा होंगे और वहां वो ही सबसे बड़ा चेहरा है। कैप्टन के खिलाफ कुलांचे भर रहे नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी ने साफ कर दिया कि कैप्टन उपर ही रहेंगे। ऐसा ही कुछ हुड्डा भी चाह रहे हैं कि पार्टी हाईकमान हरियाणा में भी साफ कर दे कि यहां पार्टी तरफ से वो ही पहली पसंद व सर्वेसर्वा हैं। पार्टी के ज्यादा विधायक भी उनकी तरफ हैं जिसके चलते पार्टी का कोई नेता उनको टक्कर देता नजर भी नहीं आ रहा है। लेकिन इससे परे पार्टी आलाकमान शक्ति व संतुलन दोनों को साथ लेकर चल रही है।
क्या हाईकमान हुड्डा से खुश है या फिर मजबूरी?
पिछली दफा निरंतर सामने आया था कि दिल्ली में विराजमान पार्टी हाईकमान हुड्डा से कतई खुश नहीं है। कई बार हुड्डा की अनदेखी की जानकारी सामने आई थी। पिछली दफा किसानों की ट्रैक्टर यात्रा में राहुल गांधी अंबाला आए तो यहां बेटे दीपेंद्र हुड्डा की अनदेखी की जानकारी आई। लेकिन जिस तरह से हुड्डा ने दबाव बनाया और पार्टी के ज्यादातर विधायक उनके पक्ष में दिखे तो हाईकमान को झुकना पड़ा। इस बात का इल्म दिल्ली दरबार को भी है कि प्रदेश में कांग्रेस को मृतप्राय होने से बचाने के लिए फिलहाल हुड्डा का होना जरुरी है। ज्यादातर विधायक भी हुड्डा के साथ ही खड़े हैं । ऐसे में दिल्ली वालों के पास भी फिलहाल कोई ज्यादा विकल्प नहीं हैं। ऐसे में हुडा हाईकमान की गुड बुक्स मैं भी नहीं और मजबूरी भी हैं।
क्या इतिहास खुद को दोहराएगा, सैलजा पद पर रहेंगी या नहीं?
अब सब इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या कांग्रेस में पिछले बार वाला इतिहास दोहराया जाएगा। मतलब ये है कि क्या हुड्डा पहले की तरह दबाव बना पार्टी प्रदेशाध्यक्ष को हटवा पाएंगे। सैलजा से पहले अशोक तंवर पार्टी अध्यक्ष थे। हर किसी को पता है कि हुड्डा और तंवर में सामंजस्य तो दूर की बात, रत्ती भर भी नहीं पटी। नौबत मारपीट व लात घूंसो तक आन पहुंची थी। हुड्डा खेमे के समर्थन के आगे आलाकमान को नतमस्तक होना पड़ा और तंवर ने पार्टी को अलविदा कह दिया था। उनके जाने के बाद पार्टी हाईकमान ने बीच का रास्ता निकालते हुए हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष बनाया और चुनाव में टिकट बंटवारे में हुड्डा का ही पैर ऊपर रहा था। सैलजा को प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी थी। लेकिन राज्यसभा की सीट हुड्डा के बेटे दीपेंद्र को मिली तो यहां भी हुड्डा व सैलजा के बीच तल्खियां बढ़ गई। तब से लेकर अब तक दोनों के बीच कुछ भी ठीक नहीं है। अब सवाल यहां ये चर्चा में है कि क्या हुड्डा पहले की तरह पार्टी हाईकमान पर दबाव बनाकर अपनी बात मनवा पाएंगे। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं की सैलजा पर दिल्ली हाईकमान का हाथ वी विश्वास दोनों हैं।
पार्टी हाईकमान से मिलने के दौर जारी सभी खेमों के?
हुड्डा कई दिन पहले पार्टी हाईकमान से मुलाकात कर चुके हैं और दौर जारी है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए साफ किया है कि हरियाणा में वो ही पार्टी के सबसे मजबूत नेता हैं और पार्टी के ज्यादातर विधायक उनके साथ हैं। इसके बाद पार्टी के अन्य और विरोधी खेमे के नेता भी निरंतर पार्टी हाईकमान से मिल रहे हैं। 5 जुलाई को एक बार फिर हुड्डा खेमे के विधायक दिल्ली पहुंचे। पहले वो हुड्डा के आवास पर एकत्रित हुए व आगामी रणनीति पर बातचीत की और इसके बाद वो केसी वेणुगोपाल से मिलने पहुंचे। उनसे पहले किरण चौधरी ने वेणुगोपाल ने मुलाकात थी। ये भी किसी से छुपा नहीं है कि हुड्डा व किरण चौधरी में कतई नहीं पटती है।
हुड्डा खेमा बोले- सैलजा की कार्यशैली ठीक नहीं
हुड्डा खेमे के विधायक एक सधी हुई रणनीति के साथ काम कर रहे हैं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से वो साफ कर रहे हैं कि कुमारी सैलजा को पार्टी प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी से हटाया जाए। उनके आरोप हैं कि सैलजा जो भी फैसला ले रही हैं, उनमें किसी की सहमति नहीं होती है। वो किसी को साथ लेकर नहीं चल रही है और जो भी कर रही हैं अपनी मनमर्जी से कर रही हैं। ऐसे में सैलजा को पद से हटाया जाना चाहिए।