Chaitra Navratri Day Four, आज समाज डिजिटल डेस्क: हिंदुओं के खास त्योाहर नवरात्रि में पूरे नौ दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। हिंदुओं के त्योहार चैत्र नवरात्रि का आज तीसरा दिन है और बुधवार को चौथा दिन होगा। आज दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा की गई और बुधवार को देवी के चौथे स्वरूप माता कुष्मांडा की पूजा की जाएगी। ज्योतिष के मुताबिक साधक का मन इस दिन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है।
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मां कूष्माण्डा ने की थी ब्रह्माण्ड की रचना
ज्योतिष शास्त्र का कहना है कि जब सृष्टि का अस्तित्व भी नहीं था तब मां कूष्माण्डा ने ब्रह्माण्ड की रचना की थी, इसलिए यह ब्रह्माण्ड की मूल शक्ति व मूल स्वरूप है। मां कूष्माण्डा का निवास स्थान सौरमंडल के ऐसे ग्रह हैं, जहां पर सिर्फ और सिर्फ वे ही रहने में सक्षम हैं। उनकी शरीर की आभा व चमक सूर्य के समान चमकती है।
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पुष्प : पीला रंग बहुत पसंद
मां कुष्मांडा को पीला रंग बहुत पसंद है, इसलिए ज्योषित का कहना है कि पीले कमल का फूल चढ़ाने से देवी कूष्मांडा खुश होती हैं और भक्तों की हर समस्या का हल होता है। देवी कुष्मांडा को पीले गलगोटे के फूल अर्पित करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं बहुत जल्द पूरी होती हैं।
पसंदीदा प्रसाद – मालपुए का भोग
धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग बहुत पसंद है। इस कारण देवी के भक्तों को मां को मालपुए का भोग लगाना चाहिए। माना जाता है कि जो व्यक्ति मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाता है उसका यश व बुद्धि में वृद्धि होती है और उसकी कोई भी फैसला करने की क्षमता भी मजबूत होती है। मालपुए के भोग से मां का आशीर्वाद मिलता है और इससे किसी भी कार्य में कामयाबी हासिल होती है।
मां का स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभू?तेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ मां कूष्मांडा की प्रार्थना मंत्र: सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥ मां कूष्मांडा बीज मंत्र: ऐं ह्री देव्यै नम:
इसलिए कहा जाता है अष्टभुजा देवी
जब सृष्टि नहीं थी और चारों ओर केवल अंधकार था, तब मां कुष्मांडा ने सौम्य मुस्कान के साथ ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसी कारण उसे ब्रह्माण्ड का मूल स्वरूप या मूल शक्ति कहा जाता है। देवी कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, इसीलिए उन्हें अष्टभुजा देवी कहा जाता है। वे अपने सात हाथों में क्रमश: कमण्डलु, अमृत से भरा कलश, गदा, धनुष, चक्र, बाण, तथा कमल पुष्प धारण करते हैं। आठवें हाथ में जपमाला है, जिसके विषय में माना जाता है कि यह सभी सिद्धियां और संपदाएं प्रदान करती है।
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