मेले की सभी तैयारियां पूरी, 3 दिन तक चलेगा मेला
Kurukshetra News (आज समाज) कुरुक्षेत्र: जिले के कस्बे पिहोवा में तीन दिन तक चलने वाला प्रसिद्ध चैत्र चौदस मेला कल से शुरू हो जाएगा। मेले के सफल आयोजन को लेका प्रशासन ने सभी तैयारियां पूरी कर ली है। इस बार मेले में 5 लाख के करीब श्रद्धालु आने की संभावना है। पहले यह मेला 5 दिन तक चलता था और एकादशी से प्रारंभ होता था। लेकिन अब सिर्फ 3 दिन रह गया और त्रयोदशी से अमावस्या तक चलेगा। इस धार्मिक मेले में हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल, यूपी, दिल्ली सहित देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं।

पृथुदक तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है पिहोवा को

सरस्वती तीर्थ के पुरोहित एवं इतिहासकार विनोद पचौली के मुताबिक, ग्रंथों में पिहोवा को पृथुदक तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। यहां प्रतिवर्ष चैत्र मास की चतुर्दशी को वारुणी पर्व का मुख्य मेला आयोजित होता है। प्राचीन काल में इस पर्व की शुरूआत पिशाच मोचनी एकादशी से होती है, जिसे पापमोचनी एकादशी भी कहा जाता है।

मृत आत्माओं को शांति प्रदान करने के लिए किया जाता है पिण्ड दान

धार्मिक मान्यता के अनुसार, यदि किसी से भूलवश किसी जीव की हत्या हो जाती थी, तो इस दिन पिण्ड दान करने से वह दोष समाप्त हो जाता था। द्वादशी और त्रयोदशी के दिन विशेष व्रत और अनुष्ठान किए जाते थे। चतुर्दशी को पिशाच मोचनी चौदस कहा जाता था, जिसमें मृत आत्माओं को शांति प्रदान करने के लिए पिण्ड दान किया जाता है। अमावस्या पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं।

1000 वर्ष से भी पुराना शिला लेख मौजूद

सरस्वती तीर्थ के पास स्थित डेरा सिद्ध बाबा गरीब नाथ के मठ में राजा भोज काल का 1000 वर्ष से भी पुराना शिला लेख मौजूद हैं। इससे ज्ञात होता है कि यह मेला प्राचीन समय में पूरे एक महीने तक चलता था। उस दौरान पशु और अनाज का बड़ा व्यापारिक मेला भी लगता था। यह स्थल धार्मिक ही नहीं बल्कि व्यापारिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है।

स्वयं ब्रह्मा ने की थी पृथुदक तीर्थ की स्थापना

वामन पुराण के अनुसार, पृथुदक तीर्थ की स्थापना स्वयं ब्रह्मा ने की थी। महाभारत काल में भी इस स्थान का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि राजा पृथु ने यहां अपने पिता का पिंडदान किया था, जिससे यह स्थल पितरों की शांति के लिए पवित्र माना जाता है। सरस्वती के उत्तरी तट पर जप करते हुए देह त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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