Chai tum to chunav vatarni ho: चाय तुम तो चुनाव वैतरणी हो

0
502
असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने एक महत्वपूर्ण मांग की थी। चाय को राष्ट्रीय पेय घोषित किया जाए। गोगोई ने खुलकर नहीं कहा कि चाय बेचने वाला भी प्रधानमंत्री बन जाता है। इसीलिए चाय को राष्ट्रीय पेय घोषित किया जाए। गोगोई ने चतुराई से मोदी और अपनी चाय की पतीली को जोड़कर कांग्रेस की निगाह में हिमाकत नहीं की है। सियासती चाय खौलाने के अनुभवी गोगोई को अनुमान रहा होगा प्रधानमंत्री पहल का स्वागत करेंगे।
भारतीय चाय बेचकर अंगरेजों ने अकूत दौलत कमाई। श्रीलंका, असम और बंगाल की सर्वोत्तम चाय की ब्लेंडिंग और पैकिंग इंग्लैंड में होने पर बहुत महंगी दरों पर बेचा जाता है। बु्रूक बांड चाय की खपत अमूल के दुग्ध उत्पादनों के मुकाबले कई गुना है। गुजरात पुत्र मोदी ने नहीं बताया कि वे दूध भी बेचते या नहीं। गुजरात पर तो राम का नहीं कृष्ण का असर है। कृष्ण का जीवन दूध, मलाई खाते पीते और बांटते खिलाते निकला है। फिर भी गुजरात में दूध व्यापार का प्रतीक है, पीने का नहीं। मोदी ने चाय की दूकान में पिता की सहायता कर प्रधानमंत्री पद हथिया लिया।
‘चाय की प्याली में तूफान’ वाले मुहावरे के बदले ‘दूधो नहाओ पूतो फलो’ का उफान आ गया। आभिजात्य वर्ग में कॉफी का चलन है। दक्षिण भारतीय उसके मुरीद होेते हैं। इसलिए चाय बेचने वाले को वोट नहीं देते। एक रोमांटिक फिल्मी गीत में नायिका नायक से कहती है ‘इसीलिए मम्मी ने मेरी तुम्हें चाय पे बुलाया है।’ एक चाय-शोधपत्र के अनुसार मेघनाद के बाण के कारण लक्ष्मण घायल मूर्छित हो गए। होष में लाने की तरकीबें नामुराद हो गईं। वैद्य सुषेण ने लक्ष्मण की नाड़ी की परीक्षा की। कहा नीलगिरि पर्वत पर उगने वाली वनस्पति ला दी जाए। राम के भाई की जान बच सकती है। आननफानन में हनुमान वनस्पति को नहीं पहचानने के कारण पहाड़ी ही उखाड़ लाए। हरी भरी वनस्पति का काढ़ा लक्ष्मण को पिलाया गया। तब मूर्छा टूटी। वही वनस्पति नीलगिरि की प्रसिद्ध चाय हुई।
चाय प्रचारक प्रधानमंत्री की पार्टी गाय को माता कहती इंसान का बीफ बनते देखती भी है। छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख वन संरक्षक ने गाय को अपनी माता कहते उपस्थित मुख्यमंत्री से मांग की थी कि गाय को प्रादेषिक पषु घोषित किया जाए। माता को पशु घोषित कराने का यह नायाब नुस्खा था। मुख्य वनसंरक्षक सेवानिवृत्ति के बाद अपने लिए पद का जुगाड़ करने गाय को दुह रहे थे।
कनॉट प्लेस का प्रसिद्ध टी हाउस अब बंद हो चुका है। वह कभी डॉ. राममनोहर लोहिया का अस्थायी घर होता था। चुनिंदा बुद्धिजीवी अज्ञेय, श्रीकांत वर्मा, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, रघुवीर सहाय, विजयदेव नारायण साही, लाड़ली मोहन निगम, जॉर्ज फर्नांडीस, ओमप्रकाश दीपक, किशन पटनायक, सच्चिदानन्द सिन्हा, ओंकार शरद, प्रयाग शुक्ल, ओमप्रकाश निर्मल, निर्मल वर्मा वगैरह को वहां जिरह करते डूबते उतराते देखा जा सकता था। वह माहौल चाय की केतली से छलक गई चाय की तरह गायब हो गया है।
एक युवक ने वर्षों पहले स्नातक हो जाने के बाद नौकरी नहीं मिलने पर गोंदिया में ग्रेजुएट टी स्टॉल खोला। सहानुभूति और उत्साहवर्द्धन के कारण उसकी चाय दूकान चल निकली। वह बेचारा विधायक तक नहीं बन पाया। चाय की दूकान पर खपना महत्वपूर्ण नहीं है। ब्रांडिंग और मार्केटिंग करना आना चाहिए। राज और उद्धव जैसी चाय और मोदी जैसी चाय में यही फर्क है। असम और बंगाल में चाय के उत्पादन के साथ खपत बहुत है। शायद सबसे अधिक चाय बंगाल में पी जाती है। इसलिए बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी बंगाल में पैदा होते हैं। दूध पीने वाले बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान वगैरह बीमारू राज्यों में नहीं। बस्तर, झारखंड, महाराष्ट्र आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के जंगलों के नक्सलियों का काम चाय के बिना नहीं चलता। उनकी प्रेरणा के देश चीन में चाय ही चाय पी जाती है। इसलिए मोदी चीनी पंथ प्रधान को गुजरात ले गए थे। जो चीनी कहलाते हैं वे चीनी कम खाते हैं। नरेन्द्र मोदी नवरात्रि के अवसर पर अमेरिका गए। यही प्रचारित है वे नौ दिनों तक नीबू डालकर पानी पीते रहे। पानी में नीबू डालकर लक्ष्मण को पिलाया गया होता तो मूर्छा नहीं टूटती। मोदी नीबू निचोड़ने की आदत के चलते चाय की मेज पर प्रेसिडेंट ओबामा से बेहतर कूटनीतिक चर्चा करने का अवसर गंवा चुके। भारत-अमेरिका मैत्री में नीबू का रस तो गुजराती गांधी और बंगाली विवेकानन्द डाल ही चुके हैं।