आज समाज डिजिटल, अंबाला:
पंजाब में विधानसभा चुनाव के चलते सियासत जमाने के लिए घूम रहे भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम दास चढ़ूनी की अपनी जमीन भी खिसकती नजर आ रही है। वे हरियाणा में संगठन की मजबूती गंवा बैठे। पंजाब चुनाव में हिस्सा लेने के फैसले से उनकी यूनियन बिखर गई है।
नाराज पदाधिकारियों ने न केवल उनका संगठन छोड़ा, बल्कि उनके सामने ही अंबाला, करनाल और उनके गृह जिले कुरुक्षेत्र में नया संगठन खड़ा कर दिया है। अंबाला में नई यूनियन तैयार हो गई है, करनाल में तैयारी चल रही है। किसान आंदोलन में एकत्र चंदे की बात पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
किसान आंदोलन से पहले चढूनी के संगठन का प्रभाव कुरुक्षेत्र, यमुनानगर और कैथल तक सीमित था। पिछले साल तीन कृषि कानूनों के खिलाफ गुरनाम सिंह चढूनी एक बड़े किसान नेता के रूप में उभरे। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में चढूनी के आक्रामक रवैये से प्रदेश और पंजाब में उन्हें समर्थन मिला।
खासकर जीटी रोड बेल्ट में उनके संगठन को मजबूती मिली। इसके चलते चढूनी ने पंजाब चुनाव में ताल ठोकी, लेकिन उनका फार्मूला फेल हो गया। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल के संगठन के साथ गठजोड़ के बावजूद उनका कोई भी उम्मीदवार बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सका।
गुरनाम सिंह चढूनी की शुरू से ही राजनीति में हिस्सा लेने की सोच रही है। चढूनी की पत्नी बलविंदर कौर ने 2014 में आप की टिकट पर कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से ताल ठोकी थी। उन्हें 79 हजार वोट मिले थे। इसके बाद गुरनाम चढूनी ने 2019 में लाडवा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था, यहां भी उनको करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। किसान आंदोलन में मिले समर्थन के बाद चढूनी ने संयुक्त संघर्ष पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ने का फैसला लिया।
पंजाब की राजनीति में हिस्सा लेने के विरोध में फरवरी में चढूनी यूनियन के 45 पदाधिकारियों ने एक साथ संगठन से इस्तीफा दिया। किसान नेता जगदीप औलख ने कहा कि किसान यूनियन गैर राजनीतिक दल है। उन्होंने इस फैसले का विरोध किया था। अब पंजाब की जनता ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी है। चढूनी पार्टी के सभी सदस्यों को पंजाब की जनता ने नकार दिया है।
अंबाला में भी चढूनी यूनियन के पदाधिकारियों सुखविंद्र सिंह, जय सिंह, दिलबाग सिंह, छतरपाल आदि ने इस्तीफा देकर भाकियू भगत सिंह संगठन का गठन किया है। इसी प्रकार, इस्माइलाबाद में सुखविंद्र चम्मू समेत अन्य कार्यकर्ता यूनियन को छोड़ चुके हैं। इनके जाने से चढूनी की यूनियन की कई संगठनों में बंट गई है।
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