नई दिल्ली। आम आदमी के हक के लिए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र स रकार को फटकार लगाई। केंद्र स रकार की टीकाकरण नीति पर सवाल उठाए और कहा कि अगर नागरिकों के हक छिनें तो अदालतेंमूकदर्शक नहीं बनी रह सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की टीकाकरण नीति पर सवाल उठाए और कहा कि 45 साल से अधिक आयु वाले लोगों को फ्री टीका लगाने और उससे कम वालों के लिए पेड वैक्सीन का निर्णय पहली नजर में ही चिढ़ाने वाला और मनमाना है।
विपक्ष के बार बार टीकाकरण नीति पर सवाल उठाने पर अदालत में भी सरकार ने कहा है कि वह इस वर्ष के अंत तक देश में सभी व्यस्कों को टीका लगा देगी। वैक्सीनेशन में पहले वयस्कों को तरजीह देने को लेकर अब कोर्ट ने भी सवाल किए हैं। कोर्ट ने कहा कि 18 से 44 साल के लोग संक्रमित हो रहे हैंऔर इसके कारण और भी कई असर हो रहे हैं। उन्हेंलंबे समय तक अस्पतालों में रहना पड़रहा है और यंग डेथस भी हो रहीं हैं। बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने भी केंद्र सरकार से कहा था कि यंग लोगोंके इलाज को तरजीह क्यों नहीं दी जा रही। अस्सी साल तक पहुंच गए लोग अपना जीवन जी चुके उनकी बजाय युवा लोगों के इललाज को तरजीह दी जानी चाहिए। यही नहींकेंद्र सरकार की तरफ से कहा गया कि नीतियों को लागू करने से कोर्ट को दूर रहना चाहिए। जिस पर शीर्ष अदालत ने तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि ऐसे वक्त में अदालत मूकदर्शक नहीं रह सकती, जब नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो। संविधान का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि जब नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो अदालतें मूकदर्शक बनी रहेंऐसा संविधान में नहीं कहा गया है। बेंच ने सरकार से कहा कि आखिर बजट में वैक्सीन के लिए तय किए गए 35,000 करोड़ रुपये अब तक कैसे खर्च हुए हैं और 18 से 44 साल वाले लोगों के लिए उसका क्या इस्तेमाल किया जा रहा है। कोर्ट ने सरकार से एफिडेविट दाखिल कर यह बताने को कहा कि उसने कोविशील्ड, कोवैक्सिन और स्पूतनिक-वी की कब और कैसे खरीद की है।