Celebrate Shri Ganesh Janmotsav from today till 12 September, keep Siddhi Vinayak fast: आज से 12 सितबंर तक मनाएं श्री गणेश जन्मोत्सव, रखें सिद्धि विनायक व्रत

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हर मांगलिक कार्य में सबसे पहले श्री गणेश की वंदना भारतीय संस्कृति में अनिवार्य माना गया है। व्यापारी वर्ग बही खातों ,यहां तक कि आधुनिक बैंकों में भी लैजर्स आदि में सर्वप्रथम श्री गणेशाय नम: अंकित किया जाता है। नव वर्ष तथा दीवाली के अवसर पर लक्ष्मी एवं गणेश जी की ही आराधना से शेष कार्यक्रम आरंभ किए जाते हैं। विवाह में लग्न पत्रिका में भी ‘श्री गणेशायनम:’ लिखा जाता है। कोई भी पूजा अर्चना, देव पूजन, यज्ञ, हवन, गृह प्रवेश, विद्यारंभ, अनुष्ठान हो सर्वप्रथम गणेश वंदना ही की जाती है ताकि हर कार्य निर्विघ्न समाप्त हो । भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी गणेश जी के प्रादुर्भाव की तिथि संकट चतुर्थी कहलाती है। परंतु महीने की हर चौथ पर भक्त, गणपति की आराधना करते हैं। गणेश जी हिन्दुओं के आराध्य देव हैं जिन्हें देवताओं में विशेष स्थान प्राप्त है। विवाह हो या कोई भी महत्वपूर्ण कार्य, निर्विघ्न पूर्ण करने के लिए सर्वप्रथम गजानन की ही पूजा की जाती है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को श्री गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। गणपति जी का जन्म काल दोपहर माना गया है। गणेशोत्सव भाद्रपद की चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक 10 दिन चलता है। गणेशोत्सव हिन्दी तिथि 4 से 14 तक मनाया जाता है। इस साल यह अवधि 2 सितंबर से 12 सितंबर तक रहेगी।
ज्ञान और बुद्वि के देवता
भगवान गणेश बुद्धि के देवता हैं। विघ्न विनाशक हैं। चूहा इनका वाहन है। ऋद्धि-सिद्धि दो पत्नियां हैं। कलाकारों के लिए गणेश जी की आकृति बनाना सबसे सुगम है। एक रेखा में भी इनका चित्रण हो जाता है। वे हर आकृति और हर परिस्थिति में ढल जाते हैं। गणेश जी के छोटे नेत्र, एकाग्र होकर लक्ष्य प्राप्ति का संदेश देती हैं। बड़े कान सबकी बात सुनने की सहन शक्ति देते हैं। विशाल मस्तक परंतु छोटा मुंह इंगित करता है कि चिन्तन अधिक-बातें कम की जाएं। लंबी सूंड कहती है कि हर हालत में सजग रह कर कष्टों का सामना करें। एकदन्त का अर्थ है कि हम एकाग्रचित्त होकर चिन्तन, मनन, अध्ययन व शिक्षा पर ध्यान दें। बड़ा उदर सबकी बुराई बडेÞ कान से सुनकर बड़े पेट में ही रखने की शिक्षा देता है। छोटे पैर उतावला न होने की प्रेरणा देते हैं। चंचल वाहन, मूषक मन की इंद्रियों को नियंत्रण में रखने की प्रेरणा प्रदान करता है।
आज रख जाएगा व्रत
आज 2 सितबंर को सिद्धि विनायक व्रत रखा जाएगा। इसे कलंक चौथ या पत्थर चौथ भी कहा जाता है। पश्चिमी भारत, महाराष्ट् व गुजरात में गणेशोत्सव के दौरान डांडिया नृत्य जनमानस में पंजाब के भंगड़े की तरह नई उमंग व स्फूर्ति का संचार करते हैं। अंतिम दिन गणेश प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। उस समय सामूहिक घोषित किया जाता है-
गणपति बप्पा मोरिया, घीमा लडडू चोरिया, पुडचा वरसी लौकरिया, बप्पा मोरिया, बप्पा मोरिया रे!!
गणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त.
गणेश चतुर्थी तिथि : 2 सितंबर 2019
गणेश विसर्जन : 12 सितंबर 2019
मध्यान्ह गणेश पूजा : दोपहर 11:05 से 01:36 तक
चंद्रमा न देखने का समय : सुबह 8:55 बजे से शाम 9:05 बजे तक।
ऐसे करें पूजा
शुभ घड़ी अर्थात शुभ मुहूर्त में ही गणपति को गृह प्रवेश कराएं तो कल्याण होता है। पूजन से पूर्व शुद्ध होकर आसन पर बैठें। एक ओर पुष्प, धूप, कपूर, रौली, मौली, लाल चंदन, दूर्वा, मोदक आदि रख लें। एक पटड़े पर साफ पीला कपड़ा बिछाएं । उस पर गणेश जी की प्रतिमा जो मिट्टी से लेकर सोने तक किसी भी धातु में बनी हो, स्थापित करें। गणेश जी का प्रिय भोग मोदक व लडडू है। मूर्ति पर सिंधूर लगाएं, दूर्वा अर्थात हरी घास चढ़ाएं व उपासना करें। धूप, दीप, नैवेद्य, पान का पत्ता, लाल वस्त्र तथा पुष्पादि अर्पित करें। इसके बाद मीठे मालपुओं तथा 11 या 21 लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए। इस पूजा में संपूर्ण शिव परिवार-शिव, गौरी, नंदी तथा कार्तिकेय सहित सभी की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। पूजा के उपरांत सभी आवाहित देवी देवताओं की विघि विधानानुसार विसर्जन करना चाहिए परंतु लक्ष्मी जी व गणेश जी का नहीं करना चाहिए। गणेश प्रतिमा का विसर्जन करने के बाद उन्हें अपने यहां लक्ष्मी जी के साथ ही रहने का आमंत्रण करें। यदि कोई कर्मकांडी यह पूजा संपन्न करवा रहा है तो उसका आशीर्वाद प्राप्त करें और यथायोग्य पारिश्रमिक दें। सामान्यत: तुलसी के पत्ते छोड़कर सभी पत्र-पुष्प गणेश प्रतिमा पर चढ़ाए जा सकते हैं। गणपति जी की आरती से पूर्व गणेश स्तोत्र या गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें। नीची नजर करके चंद्रमा को अर्ध्य दें, इस मंत्र का जाप कर सकते हैं- वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:! निर्विघ्न कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा!! इसके अलावा ओम् गं गणपत्ये नम: मंत्र गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए ही काफी है।
कलंक चतुर्थी पर कैसे करें बचाव
विशेष ध्यान रखें कि आज के दिन चांद न देखें। इसे कलंक चतुर्थी और पत्थर चौथ भी कहते हैं। मान्यता है कि चंद्रदर्शन से मिथ्यारोप लगने या किसी कलंक का सामना करना पड़ता है। यदि अज्ञानतावश या जाने अनजाने यह दिख जाए तो निम्न मंत्र का पाठ करें- सिंह प्रसेनम् अवधात,सिंहो जाम्बवता हत:! सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्रास स्वमन्तक !! इसके अलावा आप हाथ में फल या दही लेकर भी दर्शन कर सकते हैं। यदि आप पर कोई मिथ्यारोप लगा है, तो भी इसका जाप करते रहें। दक्षिणावर्त गणपति की मूर्ति का रहस्य
गणेश जी की सभी मूर्तियां सीधी या उत्तर की ओर सूंड वाली होती हैं। यह मान्यता है कि गणेश जी की मूर्ति जब भी दक्षिण की ओर मुड़ी बनाई जाती है तो वह टूट जाती है। कहा जाता है कि यदि संयोगवश यदि आपको दक्षिणावर्ती मूर्ति मिल जाए और उसकी विधिवत उपासना की जाए तो अभीष्ट फल मिलते हैं। गणपति जी की बार्इं सूंड में चंद्रमा का प्रभाव और दाई में सूर्य का माना गया है। प्राय: गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाओं से दिखती है। जब सूंड दार्इं ओर घूमी होती है तो इसे पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित माना गया है। ऐसी प्रतिमा का पूजन, विघ्न विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्र तथा शक्ति प्रदर्शन आदि जैसे कार्यों के लिए फलदायी माना जाता है। जबकि बार्इं ओर मुड़ी सूंड वाली मूर्ति को इड़ा नाड़ी व चंद्र प्रभावित माना गया है। ऐसी मूर्ति की पूजा स्थाई कार्यों के लिए की जाती है। जैसे शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य, पारिवारिक खुशहाली के लिए किया जाता है। सीधी सूंड वाली मूर्ति का सुश्ज्ञाुम्रा स्वर माना जाता है और इनकी आराधना ऋद्धि- सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। संत समाज ऐसी मूर्ति की ही आराधना करता है। सिद्धि विनायक मंदिर में दाईं ओर सूंड वाली मूर्ति है। इसीलिए इस मंदिर की आस्था आज शिखर पर है।
गणेश जी का चित्र या मूर्ति कैसे रखी जाए
घर के मंदिर में तीन गणेश प्रतिमाएं नहीं रखनी चाहिए। मूर्ति का मुंह सदा आपके घर के अंदर की ओर होना चाहिए, पीठ कभी नहीं। उनकी दृष्टि में सुख समृद्धि, ऐश्वर्य व वैभव है जो आपके यहां प्रवेश करते हैं। पीठ में दरिद्रता होती है जो रोग, शोक, नकारात्मक ऊर्जा लाती है। अत: कुछ लोग गलती से घर के द्वार या माथे पर गणेश जी की मूर्ति या संगमरमर की टाईल्स लगवा देते हैं और सारी उम्र फिर भी दरिद्र रह जाते हैं। इस दोष को दूर करने के लिए उसके समानान्तर उसके पीछे एक और चित्र या मूर्ति ऐसे लगाएं कि गणेश जी की दृष्टि निरंतर आपके घर पर रहे।
अराधना से दूर होते हैं दोष
इस बार यह गणेश चौथ सोमवार को पड़ रही है। सूर्य कन्या राशि में आ रहे हैं और 19 साल बाद कन्या की संक्रान्ति गणेश चतुर्थी पर आ रही है। मान्यता है कि यदि इस तिथि को मंगल या रविवार पड़ जाए तो यह महा चतुर्थी कहलाती है। ज्योतिष विज्ञान के अधिपति भी गणेश जी ही हैं। इनकी आराधना से नवग्रहों के समस्त दोषों की भी शांति होती है। ग्रह दोष निवारण भी हो जाता है क्योंकि वे सभी अन्य देवताओं के भी गण हैं अर्थात गणपति।
राशि अनुसार ऐसे करें पूजन
मेष व वृश्चिक: गणेश जी को लाल या नारंगी वस्त्र, बूंदी के पीले लडडू, अनार, लाल पुष्प चढ़ाएं। ओम् गं गणपत्ये नम: मंत्र का जाप करते हुए दूर्वा अर्थात हरी धास अर्पित करें।
वृष व तुला: प्रतिमा पर श्वेत वस्त्र, सफेद फूल तथा मोदक चढ़ाएं। गणेश चालीसा का पाठ लाभदायक रहेगा।
मिथुन व कन्या: गणेश जी की मूर्ति या चित्र पर हरे वस़्त्र, पान, हरी इलायची, दूर्वा, हरे मूंग, पिस्ता आदि चढ़ाएं और अथर्वशीर्ष का पाठ करें ।
कर्क : गुलाबी परिधान से मूर्ति को सुशोभित करें। गुलाब के फूल मिश्रित खीर का भोग लगाएं और गायत्री गणेश का मंत्र जाप करें।
सिंह: लाल रंग के वस्त्र, कनेर के या लाल पुष्प, गुड़ या गुड़ का हलवा अर्पित करें। संकट नाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करें।
धनु व मीन: इस राशि वाले लोग पीले वस्त्र, पीले पुष्प,बेसन के लडडू, केले, पपीते का प्रसाद चढ़ाएं। गणेश बीज मंत्र का जाप करें।
मकर व कुंभ: नीले वस़्त्र, खोए का प्रसाद, आक के पत्ते, नीले फूल अर्पित करें। श्री गणेशाय नम: मंत्र का जाप करें।
गणेशोत्सव आप को शुभ हो।

मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषाचार्य