आज समाज डिजिटल,नई दिल्ली:
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि वह जिला अदालतों के रोजमर्रा के कामकाज को नियंत्रण नहीं कर सकता। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पुनरीक्षण शक्तियों का इस्तेमाल को निचली अदालत के दिन-प्रतिदिन के कामकाज को नियंत्रित करने के रूप में नहीं देखा जा सकता है। जस्टिस डी.के. शर्मा ने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की है, जिसमें स्थानीय आयुक्त नियुक्त करने की याचिकाकर्ता के मांग को खारिज कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि अदालतों में लंबित मामलों को त्वरित निपटारे के लिए साक्ष्य दर्ज करने के लिए स्थानीय आयुक्त को नियुक्त करने की प्रथा को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
निचली अदालत को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर गौर करना होगा
हालांकि, हाईकोर्ट ने साफ कर दिया कि निचली अदालत को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर गौर करना होगा। हाईकोर्ट ने कहा है कि इन मुद्दों पर फैसला करने के लिए निचली अदालत सबसे अच्छा मंच है क्योंकि वहां मामले का ट्रायल (सुनवाई्) चल रहा है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट को अपनी पुनरीक्षण शक्ति का प्रयोग करते हुए निचली अदालत के रोजमर्रा के कामकाज को नियंत्रित करने के रूप में नहीं देखा जा सकता है। जस्टिस शर्मा ने यह भी कहा कि यदि पक्षकारों की सहमति है, तो अदालतें कमीशन जारी करते हुए स्थानीय आयुक्त नियुक्त कर सकते हैं। साथ ही कहा है कि यदि कोई भी एक पक्ष सहमत नहीं है, तो अदालतों को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करना होगा। हाईकोर्ट ने कहा है कि दोनों पक्षकारों की सहमति नहीं होने पर मामले में नियुक्त स्थानीय आयुक्त को काफी परेशानियों का सामना करना होता है।
आयुक्त नियुक्त करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका खारिज
मौजूदा मामले में प्रतिवादी ने स्थानीय आयुक्त नियुक्त करके साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया और इसकी मांग पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी। साथ ही प्रतिवादी ने स्थानीय आयुक्त के शुल्क का 50 फीसदी खर्च भी वहन करने से इनकार कर दिया था। दूसरी तरफ याचिकाकर्ता ने कहा कि यदि साक्ष्य दर्ज करने के लिए मामले में स्थानीय आयुक्त नियुक्त नहीं किए जाते हैं तो इसके निपटारे में 10 साल का वक्त लग जाएगा। सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए मामले में स्थानीय आयुक्त नियुक्त करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका को खारिज कर दिया।