Cancer Psychology: एडवांस्ड स्टेज के कैंसर को मात देकर मरीज हो जाता है स्वस्थ : डाक्टर विशाल राव

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Cancer Psychology

आज समाज डिजिटल, (Cancer Psychology):  विज्ञान ने कैंसर का मुकाबला करने के लिए एक ठोस प्रणाली विकसित की है जिसे हम ‘स्टेजिंग सिस्टम’ के नाम से जानते हैं, लेकिन फिर भी आज तक विज्ञान कैंसर के रहस्य को पूरी तरह समझने में असमर्थ रहा है। एक सर्जन की हैसियत से मुझे कैंसर के जीवशास्त्र और कैंसर के इलाज में गहरी विषमता जान पड़ती है। कई बार देखा गया है की अर्ली-स्टेज कैंसर इलाज के दौरान बिगड़ता चला जाता है और अंत में यह जानलेवा साबित होता है, जबकि एडवांस्ड स्टेज के कैंसर को मात देकर मरीज पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है।

जानिए क्या होता है कैंसर व ट्यूमर

आसान शब्दों में कैंसर को एक कोशिका (सेल) की सतह पर समझा जा सकता है। सामान्यत: कोशिका की वृद्धि (ग्रोथ) शरीर के सौष्ठव और संतुलन हेतु होती है, लेकिन जब यह वृद्धि अनावश्यक हो, तो उसे हम कैंसर कहते हैं। उदहारण के तौर पर आंख में अगर कोशिकाओं की वृद्धि हो, पर उसके परिणाम स्वरुप दृष्टि में अगर कोई सुधार नहीं हुआ हो, तो उस वृद्धि को ट्यूमर कहा जाएगा।

संपूर्ण शरीर में उत्पात मचाता है ट्यूमर

ट्यूमर की सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि वह सुक्ष्म होते हुए भी अपना अस्तित्व जताता है और संपूर्ण शरीर में उत्पात मचाता है। एक छोटा सा ट्यूमर अलग-अलग लोगों के विचारो और कृतियों पर अलग-अलग आघात करता है। डॉक्टर हो, नर्स हो, मरीज हो या उसके परिजन, हर किसी पर उसका भिन्न भिन्न सतहों पर असर होता है। PET स्कैन में चाहे ट्यूमर का फैलाव शरीर के 5 प्रतिशत से ज्यादा न दिखता हो, पर उसका खौफ इतना ज्यादा होता है की इलाज करने वाले डॉक्टर भी शरीर के 95 प्रतिशत स्वस्थ हिस्से को अनदेखा कर देते हैं। ट्यूमर की इसी विलक्षण बात को कैंसर का अहंकार कहना उचित होगा। अन्यथा वह शरीर की संपूर्ण प्रणाली पर अपना अधिकार किसी तानाशाह की तरह कैसे जमा पाता?

ट्यूमर के अहम को एक विकसित शक्ति की तरह देखें

डाक्टर विशाल राव का कहना है कि ट्यूमर के अहम को एक विकसित शक्ति की तरह देखना चाहिए जिसका अपना वजूद है और जिसका अपना नजरिया है इस स्वीकृति का ट्यूमर के आकार या शारीरिक उगम स्थान से कोई संबंध नहीं है इसी स्वीकृति के आधार पर डॉक्टर ट्यूमर की मानसिकता को समझ सकता है और उसके प्रयोजन का गूढ़ वाचन कर सकता है। वह किस प्रकार शरीर में बढ़ना चाहता है और किस प्रकार शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मात देना चाहता है। यहां सबसे अहम प्रश्न उठता है की टूयमर शरीर में उत्पात क्यों मचाना चाहता है लेकिन बहुतांश डॉक्टर उस ट्यूमर को सिर्फ उसके उगम स्थान से जोड़ते है जैसे की यकृत, गला, त्वचा इत्यादि इस वजह से कैंसर के अहंकार की कई उपशाखाए बन गई हैं, जो केवल उसके उदगम स्थान पर केंद्रित रहती है – ठीक वैसे जैसे एक कंपनी में विभिन्न विभागों के लोगो के अपने अपने अहंकार होते है, और अक्सर एक विभाग की दूसरे विभाग से अनबन होती है।

कैंसर को कैंसर की तरह देखना चाहिए

कैंसर को कैंसर की तरह देखना चाहिए, फिर चाहे शरीर के किसी भी हिस्से में व्याप्त हो। अगर सम्मिलित रूप से मेडिकल, सर्जिकल, रेडिऐशन, और इम्मुनोथेरपी की टीम्स कैंसर के अहंकार को समझ पाए तो हम धीरे धीरे इलाज को ‘कैंसर से जंग’ के बदले ‘कैंसर का विरोहण (Healing) की दृष्टि से कर पाएंगे। कैंसर के अहम को स्वीकार करते हुए उस पर विजय पा सकेंगे, इस सन्दर्भ में एनजीओजेनिसिस (angiogenesis) के जनक जुडाह फॉकमन का तत्वज्ञान बहुत मायने रहता है जिन्होंने कहा था, हमें कैंसर को एक दीर्घकालिक बीमारी की सतह पर लाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि इसके साथ अपना सह-अस्तित्व कायम कर सकें जैसे हम मधुमेह, हाइपरटेंशन, दमा, और अन्य बीमारियों के मामले में करते है। यह वह साम्यवस्था होगी जहां हर किसी का अहम एक साथ राजी खुशी अपना अस्तित्व बनाए रखे।

विज्ञान आज तक ढूंढ रहा है इस सवाल का जवाब

एक और मौलिक प्रश्न ऐसा है जिसका उत्तर विज्ञान आज तक ढूंढ रहा है। जहां एक तरफ शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र बाहरी स्त्रोतों से होने वाले वायरल और बैक्टीरियल विकारों का डटकर मुकाबला करता है, वहा दूसरी ओर शरीर के अंदर पनप रहे कैंसर की रोकथाम क्यों नहीं कर पाता? कैंसर को इसी वजह से मानवी अहंकार की उपज कहा जा सकता है, क्योंकि जब आपकी अपनी कोशिकाएं शरीर में तेजी से बढ़ती जाती है, वह एक तरह से आपसे बगावत करती हैे इस आकस्मिक आक्रमण से आपके अहम् को चोट पहुँचती है और अपने अस्तित्व, पहचान, और भविष्य को लेकर आप चिंता में डूब जाते हैे

दोस्ताना वातार्लाप जरूरी

कैंसर के सामने में इसी वजह से मैं दोस्ताना वातार्लाप करने वाला एक शांतिप्रिय राजनयिक बन जाता हंू न कि उसे नष्ट करने का भीष्म संकल्प करने वाला एक सर्जन। मानो मरीज से वार्तालाप के जरिये मैं उसे कह रहा हंू। हालांकि हमारे बीच कई मतभेद हैं, लेकिन उन्हें मिटाने के लिए मैं पूरी कोशिश करने को तैयार हंू। इस व्यापक दृष्टिकोण द्वारा मैं ट्यूमर की मानसिकता को समझने की कोशिश करता हंू। एक स्वस्थ शरीर में उसका जन्म क्यों हुआ उसके मूल कारण ( तंबाकू, शराब, प्रदुषण, अनुवांशिकता, या मानसिक तनाव) के इर्द गिर्द किन घटकों ने उसे शरीर में आने का न्योता दिया ?

मरीज से मैं करता हंू ऐसे सवाल कि…

उदाहरण के लिए अगर धूम्रपान की वजह से कैंसर होने की आशंका हो तो मैं मरीज से सिर्फ यह नहीं पूछता कि क्या आप धूम्रपान करते हो’ बल्कि यह भी पूछता हूं कि ‘आप धूम्रपान क्यों करते हो। जिससे मुझे उन कारकों के बारे में कई सुराग मिलते हैं। जिस वजह से कुछ कार्सिनोजेन्स को शरीर द्वारा न्योता दिया गया हो और कैंसर का जन्म हुआ हो।

अगर मरीज ट्यूमर के साथ भावनिक तौर पर तालमेल बनाए रखता है तो उसे एक संवेदनशील डॉक्टर तक पहुंचाने की संभावना बढ़ जाती है। सबसे पहले मरीज द्वारा परिस्थिति की स्वीकृति आवश्यक है, फिर अच्छे इलाज की अपेक्षाएं उतनी ही बढ़ जाती है। इस मानसिकता से सारे अहंकारों में संतुलन बना रहता है। ट्यूमर का अहंकार, मरीज का अहंकार, और डॉक्टर का अहंकार इस प्रकार एक पोषक वातावरण बन जाता है और चिकित्सा की गति एवं परिणाम दोनों में अपेक्षित लाभ होता है।

अंतिम क्षणों में अचानक दी जाती है सर्जरी की सलाह

इलाज से सम्बंधित परिवेष्टक घातक किसी भी रूप में फलदायी सिद्ध हो सकते हैं, जैसे कीमोथेरेपी निर्धारित की गई हो पर अंतिम क्षणों में अचानक सर्जरी की सलाह दी जाती है, या सर्जरी की तारीख निश्चित हो जाने के बाद यकायक रेडिएशन थेरेपी की सिफारिश होती हैे सर्जरी की तिथि ऐन मौके पर आगे पीछे हो जाती है, या इलाज करने वाला डॉक्टर अचानक बदल जाता है। इन रहस्यमय घटकों का रूप चाहे अलग हो, लेकिन उद्देश्य एक होता है – सही तकनीक और सही तरीके से ठीक समय पर ट्यूमर का इलाज।

सबसे अनोखी बात यह है की जब सर्जन इलाज हेतु ट्यूमर को शरीर से अलग करता है, तो साथ-साथ डॉक्टर और मरीज के अहंकार का भी शमन होता है। कई बार देखा गया है कि इलाज करने वाले सर्जन में हर आॅपरेशन के बाद थोड़ी और विनम्रता आ जाती है। इसका सुपरिणाम उसके भावी मरीजों के इलाज पर अपने आप होता है।

अच्छे सर्जन के लिए मायने रखती है विनम्रता

डॉक्टर विशाल राव का मानना है कि विनम्रता एक अच्छे सर्जन के लिए बहुत मायने रखती है, क्योंकि आम तौर पर डॉक्टर का यश केवल उसके आपरेशनों की संख्या से आंका जाता है – जितने ज्यादा आॅपरेशन, उतनी ज्यादा उसकी मान्यता और प्रतिष्ठा ेपर साथ ही उतना ही बड़ा उसका अहंकार जो इतनी हद तक बढ़ जाता है कि ‘अब हर ट्यूमर मेरे वश में है। ऐसा अति आत्मविश्वास उसमे जागृत हो जाता है और तभी कोई ट्यूमर उसे चकमा देकर जमीन पर गिराता है ताकि उसे अपनी कवि कल्पना की निरर्थकता का साक्षात्कार हो सके।

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