***|| जय श्री राधे ||***
*** महर्षि पाराशर पंचांग ***
*** अथ पंचांगम् ***
****ll जय श्री राधे ll****
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दिनाँक:-28/06/2022, मंगलवार
चतुर्दशी, कृष्ण पक्ष,
आषाढ़
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)
** दैनिक राशिफल **
देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।
कर्क
आज का दिन आपके लिए उन्नति भरा रहेगा। आप अपने परिवार के सदस्य के साथ कुछ समय बातचीत में व्यतीत करेंगे। परिवार में किसी कार्यक्रम का आयोजन हो सकता है। जल्दबाजी में कोई काम न करें। पुराना रोग परेशानी का कारण बन सकता है। कोई आवश्यक वस्तु गुम हो सकती है। चिंता तथा तनाव रहेंगे। कुंआरों को वैवाहिक प्रस्ताव मिल सकता है। प्रयास सफल रहेंगे। निवेश शुभ रहेगा। नौकरी में उन्नति होगी। व्यापार लाभदायक रहेगा। प्रमाद न करें। सरकारी नौकरी में कार्यरत लोगों को आज ट्रांसफर मिल सकता है। आपका कोई पुराना मित्र आपसे मेल मिलाप कर सकता है और आपको किसी परिजन के कारण व्यापार में धन लाभ मिलता दिख रहा है। जो लोग सट्टेबाजी में धन का निवेश करते हैं, उन्हें दिल खोलकर निवेश करना बेहतर रहेगा। कार्यक्षेत्र में लाभ के अवसरों को पहचानकर उन पर अमल करना होगा, तभी आप लाभ कमा पाएंगे।
तिथि———- चतुर्दशी 05:51:29 तक
पक्ष————————- कृष्ण
नक्षत्र——— मृगशिरा 19:03:55
योग————– गण्ड 07:45:41
करण———- शकुनी 05:51:30
करण——— चतुष्पद 19:06:20
वार———————-मंगलवार
माह———————- आषाढ
चन्द्र राशि——–वृषभ 05:32:01
चन्द्र राशि——————- मिथुन
सूर्य राशि—————— मिथुन
रितु————————- ग्रीष्म
सायन———————— वर्षा
आयन—————— उत्तरायण
सायन—————– दक्षिणायण
संवत्सर———————- नल
संवत्सर (उत्तर)—————– राक्षस
विक्रम संवत—————- 2079
विक्रम संवत (कर्तक) ———2078
शक संवत—————— 1944
वृन्दावन
सूर्योदय————— 05:27:36
सूर्यास्त————— 19:17:18
दिन काल————- 13:49:42
रात्री काल————–10:10:36
चंद्रोदय—————- 05:46:48
चंद्रास्त—————- 18:57:00
लग्न—- मिथुन 12°9′ , 72°9′
सूर्य नक्षत्र——————– आर्द्रा
चन्द्र नक्षत्र—————- मृगशिरा
नक्षत्र पाया——————- लोहा
*** पद, चरण ***
वो—- मृगशिरा 05:32:01
का—-मृगशिरा 12:17:55
की—- मृगशिरा 19:03:55
कु—- आर्द्रा 25:49:57
*** ग्रह गोचर ***
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
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सूर्य=मिथुन 12:12 आर्द्रा , 2 घ
चन्द्र = वृषभ 29°23,मृगशिरा, 2 वो
बुध =वृषभ 22 ° 07′ रोहिणी ‘ 4 वू
शुक्र=वृषभ 12°05, रोहिणी ‘ 1 ओ
मंगल=मेष 00°30 ‘ अश्विनी ‘ 1 चू
गुरु=मीन 12°30 ‘ उ o भा o, 3 झ
शनि=कुम्भ 00°33 ‘ उ o भा o ‘ 3 गु
राहू=(व) मेष 26°00’ भरणी , 4 लो
केतु=(व) तुला 26°00 विशाखा , 2 तू
*** मुहूर्त प्रकरण ***
राहू काल 15:50 – 17:34 अशुभ
यम घंटा 08:55 – 10:39 अशुभ
गुली काल 12:22 – 14:06 अशुभ
अभिजित 11:55 – 12:50 शुभ
दूर मुहूर्त 08:14 – 09:09 अशुभ
दूर मुहूर्त 23:21 – 24:17* अशुभ
***चोघडिया, दिन
रोग 05:28 – 07:11 अशुभ
उद्वेग 07:11 – 08:55 अशुभ
चर 08:55 – 10:39 शुभ
लाभ 10:39 – 12:22 शुभ
अमृत 12:22 – 14:06 शुभ
काल 14:06 – 15:50 अशुभ
शुभ 15:50 – 17:34 शुभ
रोग 17:34 – 19:17 अशुभ
***चोघडिया, रात
काल 19:17 – 20:34 अशुभ
लाभ 20:34 – 21:50 शुभ
उद्वेग 21:50 – 23:06 अशुभ
शुभ 23:06 – 24:23* शुभ
अमृत 24:23* – 25:39* शुभ
चर 25:39* – 26:55* शुभ
रोग 26:55* – 28:12* अशुभ
काल 28:12* – 29:28* अशुभ
***होरा, दिन
मंगल 05:28 – 06:37
सूर्य 06:37 – 07:46
शुक्र 07:46 – 08:55
बुध 08:55 – 10:04
चन्द्र 10:04 – 11:13
शनि 11:13 – 12:22
बृहस्पति 12:22 – 13:32
मंगल 13:32 – 14:41
सूर्य 14:41 – 15:50
शुक्र 15:50 – 16:59
बुध 16:59 – 18:08
चन्द्र 18:08 – 19:17
***होरा, रात
शनि 19:17 – 20:08
बृहस्पति 20:08 – 20:59
मंगल 20:59 – 21:50
सूर्य 21:50 – 22:41
शुक्र 22:41 – 23:32
बुध 23:32 – 24:23
चन्द्र 24:23* – 25:14
शनि 25:14* – 26:04
बृहस्पति 26:04* – 26:55
मंगल 26:55* – 27:46
सूर्य 27:46* – 28:37
शुक्र 28:37* – 29:28
*** उदयलग्न प्रवेशकाल ***
मिथुन > 04:48 से 06:04 तक
कर्क > 06:04 से 08:28 तक
सिंह > 08:28 से 10:32 तक
कन्या > 10:32 से 12:48 तक
तुला > 12:48 से 15:03 तक
वृश्चिक > 15:03 से 17:18 तक
धनु > 17:18 से 19:28 तक
मकर > 19:28 से 21:10 तक
कुम्भ > 21:10 से 22:44 तक
मीन > 22:44 से 23:10 तक
मेष > 23:10 से 01:54 तक
वृषभ > 01:54 से 04:48 तक
***विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार
(लगभग-वास्तविक समय के समीप)
दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
***दिशा शूल ज्ञान————-उत्तर
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो घी अथवा काजू खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll
*** अग्नि वास ज्ञान -:
यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,
चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।
दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,
नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।। महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्
नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।
15 + 15 + 3 + 1 = 34 ÷ 4 = 2 शेष
आकाश लोक पर अग्नि वास हवन के लिए अशुभ कारक है l
*** ग्रह मुख आहुति ज्ञान ***
सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है
केतु ग्रह मुखहुति
*** शिव वास एवं फल -:
30 + 30 + 5 = 65 ÷ 7 = 2 शेष
गौरि सन्निधौ = शुभ कारक
***भद्रा वास एवं फल -:
स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।
मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।
*** विशेष जानकारी ***
* चतुर्दशी तिथि वृद्धि
* भौमवती अमावस्या
* पितृकार्य अमावस्या
*** शुभ विचार ***
साधुभ्यस्ते निवर्तन्ते पुत्रामित्राणि बान्धवाः ।
ये च तैः सह गन्तारस्तध्दर्मात्सुकृतं कुलम् ।।
।। चा o नी o।।
पुत्र , मित्र, सगे सम्बन्धी साधुओं को देखकर दूर भागते है, लेकिन जो लोग साधुओं का अनुशरण करते है उनमे भक्ति जागृत होती है और उनके उस पुण्य से उनका सारा कुल धन्य हो जाता है
*** सुभाषितानि ***
गीता -: मोक्षसान्यांसयोग अo-18
काम्यानां कर्मणा न्यासं सन्न्यासं कवयो विदुः ।,
सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः ॥,
श्री भगवान बोले- कितने ही पण्डितजन तो काम्य कर्मों के (स्त्री, पुत्र और धन आदि प्रिय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए तथा रोग-संकटादि की निवृत्ति के लिए जो यज्ञ, दान, तप और उपासना आदि कर्म किए जाते हैं, उनका नाम काम्यकर्म है।,) त्याग को संन्यास समझते हैं तथा दूसरे विचारकुशल पुरुष सब कर्मों के फल के त्याग को (ईश्वर की भक्ति, देवताओं का पूजन, माता-पितादि गुरुजनों की सेवा, यज्ञ, दान और तप तथा वर्णाश्रम के अनुसार आजीविका द्वारा गृहस्थ का निर्वाह एवं शरीर संबंधी खान-पान इत्यादि जितने कर्तव्यकर्म हैं, उन सबमें इस लोक और परलोक की सम्पूर्ण कामनाओं के त्याग का नाम सब कर्मों के फल का त्याग है) त्याग कहते हैं॥,2॥,
*आपका दिन मंगलमय हो*
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आचार्य नीरज पाराशर (वृन्दावन)
(व्याकरण,ज्योतिष,एवं पुराणाचार्य)
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