कैग की रिपोर्ट में कई विभागों के कामकाज पर उठे सवाल

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आज समाज डिजिटल, शिमला:

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने हिमाचल सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। पवन हंस कंपनी पर विभाग के मेहरबान होने को लेकर कैग ने रिपोर्ट में सवाल खड़े किए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि पवन हंस पर सामान्य प्रशासन विभाग के मेहरबान होने की वजह से खजाने से करोड़ों की रकम बेवजह खर्च हुई।
कैग की रिपोर्ट मार्च-2019 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष को लेकर है। यह रिपोर्ट सरकार के सामाजिक, सामान्य व आर्थिक खर्चों पर आधारित है। रिपोर्ट में न सिर्फ पवन हंस पर सामान्य प्रशासन विभाग की मेहरबानी, बल्कि प्रदेश विश्वविद्यालय, शिक्षा विभाग तथा जिला उपायुक्त द्वारा एसडीआरएफ की करोड़ों की रकम को बेवजह खर्च करने को लेकर सवाल उठाए गए हैं।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सुरक्षा उपायों के मद्देनजर पवन हंस कंपनी के हैलीकॉप्टर की स्थिति संतोषजनक नहीं पाए जाने के बावजूद सामान्य प्रशासन विभाग ने इसके ठेके को ठेका राशि में सालाना दस फीसदी के इजाफे के साथ बढ़ा दिया। तकनीकी बोली में दूसरी कंपनियों को इसमें शामिल होने का मौका नहीं मिला। नतीजतन सरकार का 18.39 करोड़ रुपए बेवजह खर्च हुआ। यही नहीं, कंपनी को सरकार प्रति उड़ान के घंटे के हिसाब से भुगतान करती है, लेकिन अनुबंध की शर्तों से अधिक उड़ान की अवधि को प्रतिवर्ष के हिसाब से समायोजित करने की वजह से करीब 6.97 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च खजाने से हुआ।
कैग ने कामगार कल्याण बोर्ड के माध्यम से कौशल विकास केंद्र की स्थापना पर किए गए 24.15 करोड़ की राशि के खर्च पर भी सवाल उठाए। कैग ने कहा कि इतनी भारी भरकम रकम खर्च करने के बावजूद कौशल विकास केंद्र संस्थान का उपयोग नहीं किया जा सका।
प्रदेश विश्वविद्यालय व शिक्षा विभाग की कार्य प्रणाली पर भी सवाल
कैग रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय व शिक्षा विभाग की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठाए गए हैं। कैग ने रिपोर्ट में कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने रजिस्टरों व बैंक खातों का रोजाना मिलान नहीं किया। मिलान न होने से करीब 1.13 करोड़ रुपए का गबन हुआ। वहीं, शिक्षा विभाग की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कैग ने स्कूल वर्दी के कपड़े की जांच में एक प्रयोगशाला को काम देने को लेकर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि वित्तीय नियमों की अवहेलना कर वर्दी के कपड़े की सेंपल जांच का कार्य एक लैब को दिया गया। नतीजतन 1.62 करोड़ रुपए का फालतू खर्च हुआ।
कैग का खुलासा- करोड़ों रुपए की वसूली में नाकाम रही अफसरशाही
कर्ज की बैसाखियों के सहारे काम चला रही प्रदेश सरकार की अफसरशाही करोड़ों की रकम की वसूली में नाकाम रही है। इसका खुलासा भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 में एक ओर जहां सरकार की राजस्व प्राप्तियां खर्चों से अधिक बताई गई हैं, वहीं दूसरी ओर कर्ज का आंकड़ा भी लगातार बढ़ रहा है।
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक 2019-20 में प्रदेश सरकार की राजस्व प्राप्तियां 30742.41 करोड़ रुपए थी। इसमें 7623 .82 करोड़ रुपए टैक्स तथा 2501 करोड़ रुपए गैर कर राजस्व शामिल था। साथ ही केंद्र से मिलने वाली ग्रांट के एवज में मिलने वाली 15939 करोड़ रुपए की रकम भी शामिल थी। इसके मुकाबले सरकार ने 30730.43 करोड़ रुपए खर्च किया। जाहिर है कि राजस्व प्राप्तियों के मुकाबले खर्च कम थे। खर्चों में भी वेतन पर 11477 करोड़ रुपए तथा पेंशन पर 5489 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च हुई। उपदान पर 1067 करोड़ रुपए तथा ग्रांट इन एड पर 34.96 करोड़ रुपए की रकम खर्च हुई। ब्याज के भुगतान पर 4234 करोड़ रुपए की राशि सरकार ने साल में खर्च की। 2018-19 में सरकार का कर्ज 35363.18 करोड़ रुपए था, यह रकम 2019-20 में 39527.78 करोड़ ेरुपए हो गई।
रिपोर्ट के मुताबिक एक ओर सरकर की कर्ज की रकम बढ़ रही है तो दूसरी ओर अफसरशाही ने 437.17 करोड़ रुपए का टैक्स और अन्य शुल्क ही नहीं वसूले। इसका खुलासा शुक्रवार को सदन के पटल पर रखी कैग रिपोर्ट में हुआ। कैग रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान बिक्री कर, मूल्य वर्धित कर, राज्य आबकारी, मोटर वाहन, यात्री एवं माल करए वन प्राप्तियोंए स्टांप शुल्क, टोकन कर, विशेष कर, रॉयल्टी की अल्प वसूली की गई। 1168 मामलों में समग्र 437.17 करोड़ रुपए कम वसूल किए गए।
713 बिक्री मामलों में संपत्ति के बाजार मूल्य पर विचार नहीं किया गया। भूमि की सर्किल दरों को भी नहीं जांचा। इससे राज्य को 10.56 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। विभाग ने संपत्ति के बाजार मूल्य का गलत निर्धारण किया। इससे 1.53 करोड़ रुपए के पट्टे किराया स्टांप शुल्क और पंजीयन फीस की अल्प वसूली की गई।
रिपोर्ट के मुताबिक 31.70 करोड़ रुपए की वन प्राप्तियों की वसूली नहीं की गई। इसे लकड़ी के दोहन और रेजिन ब्लेडों पर रॉयल्टी का दावा न करने, रॉयल्टी दरों में कटौती करने, रॉयल्टी के देरी से भुगतान पर ब्याज संग्रहण में विफल होने, चीड़ के वृक्षों की विश्वसनीय स्थायी सूची का रख-रखाव नहीं करने और दोहन के पर्यवेक्षण में कमी और विस्तार फीस की वसूली नहीं की गई।