Congress SP & TMC Ruckus in Parliament, अजीत मेंदोला (आज समाज), नई दिल्ली: बजट सत्र में विपक्ष का आचार व्यवहार बड़ा हैरान करने वाला रहा है। विपक्ष शायद यह मान बैठा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता देश भर में खत्म हो चुकी है, विपक्ष का यह आंकलन समझ से परे है।बजट सत्र से लगा कि कांग्रेस अपने हिसाब से विपक्ष को चला रही है।
विपक्ष शायद यह भूल गया…
विपक्ष शायद यह भूल गया है कि 1984 के बाद से लेकर 2014 तक कांग्रेस की अगुवाई में जो भी सरकारें बनी उन्होंने कभी बहुमत नहीं पाया। यही नहीं 2004 से 2014 तक यूपीए की सरकार बनाने वाली कांग्रेस ने एक बार 145 और दूसरी बार 200 की संख्या बड़ी मुश्किल से पार कर गठबंधन की सरकार चलाई।साफ था कि कांग्रेस ने जैसे तैसे जुगाड कर सरकार चलाई। गौर करने वाली बात यह है कि कांग्रेस ने चुनाव बाद बहुमत जुटाया। कांग्रेस के पास ऐसा कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं था जिसके नाम पर वोट पड़ा हो। अगर कोई चेहरा होता तो शायद कांग्रेस बहुमत के आसपास पहुंचती। सत्ता पाने के लालच में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी और संगठन को कमजोर कर दिया।
कांग्रेस ऐसी राजनीति कर रही मनो उनके पास बहुमत हो
कांग्रेस अब मोदी सरकार को अस्थिर करने के लिए इस तरह की राजनीति कर रही मानो उनके पास बहुमत हो और मोदी बिना बहुमत के सरकार चला रहे हों। जबकि आम चुनाव 2024 से पूर्व ही राजग ने अपना चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घोषित किया हुआ था और उनकी अगुवाई में चुनाव लड़ बहुमत से ज्यादा 293 सीट हासिल की।इस जीत पर मोदी सरकार को चुनौती दी ही नहीं जा सकती। यह सीटें भी प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के चलते ही आई।
बीजेपी 240 सीट ले सबसे बड़ा दल बनी
यह ठीक बात है कि बीजेपी तीसरी बार अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा पाई, लेकिन 240 सीट ले सबसे बड़ा दल बनी। अब सवाल यहीं से खड़ा होते हैं कि विपक्ष किस आधार पर सरकार को कमजोर मान रहा है। पहली बात कांग्रेस की अगुवाई में बना इंडिया गठबंधन अपने दम पर बीजेपी जितनी सीटें भी नहीं ला पाया। कांग्रेस खुद 99 पर अटक गई। विपक्ष ने जो भी सीट उत्तर भारत में जीती वह आरक्षण खत्म करने का भ्रम फैलाकर जीती। मोदी सरकार के दस साल के शासन के बाद भी विपक्ष ऐसा कोई माहौल नहीं बना पाया कि मुद्दों के आधार पर चुनाव जीत पाता।
इंदिरा के कमजोर होने के बाद कांग्रेस कभी उभर नहीं पाई
कांग्रेस भूल गई कि जिन दलों को साथ लेकर वह राजनीति कर रही है इन्ही दलों ने उनकी ताकतवर नेता इंदिरा गांधी को कमजोर किया था। इंदिरा गांधी के कमजोर होने के बाद कांग्रेस कभी उभर नहीं पाई। इंदिरा गांधी के निधन के बाद जैसे तैसे कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ी होती जाति की राजनीति ने उसे टुकड़ों में बांट दिया।कांग्रेस के खिलाफ तमाम क्षेत्रीय दल खड़े हो गए।
राजीव गांधी के कार्यकाल में ही कांग्रेस बहुमत हासिल नहीं कर पाई। उनके निधन के बाद भी कांग्रेस ने ही जोड़ तोड़ की राजनीति का ऐसा खेल खेला जो न तो कांग्रेस के हित में रहा और ना ही देश हित में। सत्ता के मोह के चलते कांग्रेस की कमान संभालते ही सोनिया गांधी ने अपने पैरों में खड़े होने के बजाए गठबंधन की ही राजनीति को आगे बढ़ाया। 2004 में 145 सीट मिलने पर सोनिया गांधी ने गठबंधन की सरकार बनाने में देर नहीं की।जिन क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को हाशिए पर लगाया सपा,बसपा,राजद,टीएमसी,डीएमके जैसे दलों का साथ ले सरकार बनाने में सफलता हासिल की।
कांग्रेस ने जनार्दन द्विवेदी की बात नहीं मानी
2009 में बहुमत नहीं आने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने सरकार न बनाने का सुझाव पार्टी को दिया था। उनका तर्क था कि कांग्रेस को अपने दम पर बहुमत के लिए संघर्ष करना चाहिए,लेकिन पार्टी ने उनकी बात नहीं मानी। उसका नतीजा यह हुआ कि यूपीए पार्ट दो कांग्रेस भ्रष्टाचार को लेकर इतनी बदनाम हुई कि आजादी के बाद का सबसे खराब प्रदर्शन कर डाला।प्रतिपक्ष के नेता बनने लायक भी कांग्रेस सीट नहीं ला पाई।राहुल गांधी ने पार्टी की कमान संभालने के बाद मां सोनिया गांधी की राजनीति को ही आगे बढ़ाया।पार्टी संगठन पर ध्यान देने के बजाए गठबंधन के भरोसे वाली राजनीति की।
फिर 2019 में पार्टी की करारी हार हुई। 2024 में राहुल गांधी ने फिर वही रास्ता पकड़ा जो जिसने कांग्रेस को कमजोर किया।राहुल जातपात की राजनीति में उलझ अपने सभी विरोधियों को साथ ले इंडिया गठबंधन बनाया।हालांकि इस गठबंधन में शामिल टीएमसी और आम आदमी पार्टी ने राज्यों में कांग्रेस से दूरी बनाई और आगे भी बनाएंगे।राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी जिस समाजवादी पार्टी के दम पर राजनीति कर रहे हैं गारंटी नहीं है 2027 तक साथ रहेंगे।
अखिलेश हंगामे में राहुल के पीछे खड़े दिखाई दिए
बजट सत्र में लोकसभा में सपा नेता अखिलेश यादव हंगामे में राहुल के पीछे खड़े दिखाई दिए तो राज्यसभा में जया अमिताभ बच्चन ने मोर्चा संभाला। जया ने इस तरह की राजनीति की कि मानो कांग्रेस को खुश करना है। पांच बार की वरिष्ठ सदस्य होने के बाद भी सभापति की चेयर पर सवाल खड़े करने से नहीं चुकी।सदन में प्रतिपक्ष के नेता वरिष्ठ मल्लिकार्जुन खरगे भी इसी कोशिश में लगे रहे कि अपनी नेता सोनिया गांधी को हंगामा कर कितना खुश किया जाए।
राहुल गांधी के भाषण से साफ लगा, 10 साल की खीज उतार रहे
लोकसभा में तो जातपात और बजट पर दिया राहुल गांधी के भाषण से साफ लगा कि बीते दस साल की खीज उतार रहे हैं।उन्होंने ऐसा व्यवहार किया कि सदन उनके हिसाब से चलेगा।कांग्रेस की रणनीति ठीक उसी तरह की लग रही है जो 80 के दशक में इंदिरा गांधी के खिलाफ अपनाई गई थी।प्रधानमंत्री मोदी को टारगेट कर छोटी छोटी बातों पर विरोध प्रदर्शन किया जाए।मुद्दे जाति,माइक बंद,मेरे नाम के साथ अमिताभ क्यों लगाया।साफ दिखता है कि गांधी परिवार विपक्ष की पूरी राजनीति को अपने इर्दगिर्द चलाना चाहता है।पूरा विपक्ष अभी साथ है,लेकिन जब उसे अहसास होगा कि कांग्रेस अपना हित साध रही है तो फिर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ेंगी।2029 तक ये हालात बने रहेंगे लगता नही है।राज्यों के चुनाव हालात बदल भी सकते हैं।