Buddha and Islam behind communism!: साम्यवाद के पीछे बुद्ध और इस्लाम!

0
402

साम्यवाद का दार्शनिक आधार बुद्ध हैं और सामाजिक आधार हज़रत मुहम्मद द्वारा चलाया गया धर्म इस्लाम। बुद्ध के द्वंदात्मक दर्शन को हीगेल ने आज की जरूरतों के अनुरूप बनाया और इस्लाम के अनुयायी भले तमाम फिरकों और बिरादरियों में बटे हों, शादी-ब्याह में सैयद की बेटी कसाई या हलवाई को नहीं ब्याही जा सकती। न रांगड़ और मूला में परस्पर शादी होगी। लेकिन पूजा स्थल और खान-पान में सब समान हैं। इसीलिए साम्यवाद का आधार भी यही दोनों हैं। सच बात तो यह है कि हिंदू होकर आप साम्यवादी नहीं हो सकते। इसके लिए आपको अपने हिन्दुत्त्व से विरत होना पड़ेगा। हिंदू अपनी बीवी के हाथ का बना भोजन भी कभी-कभी नहीं करता फिर वह भला कैसे वंचितों, म्लेच्छों को अपना मानेगा!

लेकिन फिर भी जो इस हिन्दुत्त्व की अवधारणा से ऊपर उठे उन्होंने न तो मुसलमानों को वोट बैंक समझा न उन्हें किसी ने अंत्यज माना। तीन उदहारण मैं देता हूँ। पहले अविभाजित पंजाब के रेवेन्यू मंत्री सर छोटूराम, दूसरे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह और तीसरे पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु के राज में भूमि सुधार मंत्री रहे विनयकृष्ण चौधरी। आज ममता बनर्जी भले मस्जिद में नमाज़ पढ़ आएं या मुसलमानों की स्वयंभू रक्षक होने का दम्भ भरें लेकिन माकपा राज में मुसलमानों को बराबरी के अधिकार थे। विनय कृष्ण चौधरी ने जो भूमि सुधार किया उससे मुसलमान सर्वाधिक लाभान्वित हुए और ज़मीनें बंगाली भद्रलोक के हाथ से चली गईं, लेकिन उस वक़्त हिन्दुओं में मुसलमानों के प्रति कोई कटु भाव नहीं उपजा। ममता तो मुसलमानों और हिन्दुओं को बाँट रही हैं।

इसी तरह मुलायम, अखिलेश और लालू भले मुस्लिम मसीहा बनने का स्वांग करें, किन्तु ये चौधरी चरण सिंह की विरासत नहीं बन सकते। इन सभी नेताओं ने परोक्ष रूप से भाजपा को ही मजबूत किया है। और इसी का नतीजा ये भोग रहे हैं। चौधरी चरणसिंह ने सीलिंग एक्ट बनाकर यूपी के रजवाड़ों, जमींदारों और बड़े भूमिधरों की खाट खड़ी कर दी थी। इसका सीधा लाभ मुसलमानों और छोटी जोत वाले किसानों को हुआ था। इंदिरा गाँधी ने प्रीवीपर्स तो चौधरी चरण सिंह के सीलिंग एक्ट के कई साल बाद उठाया था। चौधरी साहब किसी को सिर पर नहीं चढ़ाते थे। खरी बात मुंह पर बोलते थे। कहते हैं कि एक बार मुजफ्फरनगर में जाटों की एक पंचायत ने कह दिया- चौधरी अबकी आपको वोट नहीं करेंगे। चौधरी साहब ने जवाब दिया- जेब में डाल लो अपना वोट। मुसलमान हो या हिंदू, जाट हो या गूजर अथवा ब्राह्मण या दलित और यादव, चौधरी साहब ने कभी किसी को खास तवज्जो नहीं दी, लेकिन किसानों का कल्याण किया।

इसी तरह थे आज़ादी के पहले के सर छोटूराम। जो अविभाजित पंजाब की सर सिकंदर हयात की सरकार में राजस्व मंत्री थे। उन्होंने भूमि सुधार के ऐसे नेक काम किये जिसके कारण पंजाब के मुस्लिम किसान उन्हें अपना मसीहा समझते थे। बहुत लोग सोचते और मानते भी हैं कि भाखड़ा नंगल बांध पंडित जवाहरलाल नेहरु का बनवाया हुआ है, वे गलत हैं। भाखड़ा नंगल बांध जिस नेशनल हीरो की ताक़त पर बना उसे आजाद भारत के कांग्रेसी इतिहास ने भुला दिया। वह हीरो थे सर छोटूराम। सर छोटूराम जब 1935 में अविभाजित पंजाब के राजस्व मंत्री थे तब उन्होंने महाराजा बिलासपुर को भाखड़ा नंगल बांध के लिए ज़मीन देने और बनवाने के लिए राज़ी कर लिया था। सर छोटूराम ने उसका ब्लू प्रिंट भी बनवा लिया, लेकिन इसी बीच सरकार चली गई। पंजाब सरकार ने उनके प्रोजेक्ट को जब ओके किया तब ही 1945 की 9 जनवरी को उनकी मृत्यु हो गई।

संस्कृत और अंग्रेजी के आधिकारिक विद्वान सर छोटूराम का जन्म पंजाब के रोहतक जिले के गढ़ी सांपला गाँव में 24 नवम्बर 1881 को एक सामान्य जाट परिवार में हुआ था। तब पंजाब के एक ही एक अन्य कस्बे दिल्ली, जो तब रोहतक जिले की ही एक तहसील थी, के सेंट स्टीफेंस से संस्कृत आनर्स करने के बाद उन्होंने आगरा से क़ानून की डिग्री ली। कुछ दिन वकालत की फिर 1916 से 1920 तक रोहतक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। पर जल्दी ही कांग्रेस की आपाधापी देख कर उनका जी ऊब गया और उन्होंने एक यूनियनिस्ट पार्टी बनाई। यह कांग्रेस के उलट हिंदू-मुस्लिम एकता की जबरदस्त समर्थक थी। और हिंदू तथा मुस्लिम जाट किसानों का इसे पूरा समर्थन था। इस पार्टी में मुस्लिम खूब थे। पंजाब में सरकार बनी और सर छोटूराम राजस्व मंत्री बने। उन्होंने किसानों के लिए इतना काम किया कि सर छोटूराम को मुस्लिम किसान भी देवता की तरह पूजते थे। कहा जाता है कि सर छोटूराम मुसलमानों में गाँधीजी से भी ज्यादा पूज्य थे। मगर आज़ादी के बाद कांग्रेस के इतिहासकारों ने उन्हें भुला दिया।

यह सही है कि भाखड़ा नांगल की परिकल्पना सर छोटू राम ने की थी। इस परिकल्पना को डॉ. अम्बेडकर ने आगे बढ़ाया था जब वह 1942 से 1946 तक वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य थे। उस समय पीडब्लूडी विभाग उनके पास था। उन्होंने उस समय राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय जल आयोग की स्थापना की थी। जिसका अध्यक्ष पंजाब के मुख्य अभियंता एएन खोसला को बनाया गया था। जबकि तत्कालीन पंजाब सरकार उन्हें इस कार्य हेतु छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। इस दौरान डॉ. अम्बेडकर ने पूरे देश मे बाढ़ नियंत्रण, नदी बांध विद्युत उत्पादन, सिंचाई तथा जल यातायात संबंधी बहुउद्देशीय योजनाएं बनाई थीं। डॉ. अम्बेडकर ने ही भारत के सबसे पहले दामोदर नदी बांध का निर्माण करवाया था। यह अलग बात है कि भाखड़ा नांगल डैम का निर्माण उस समय न होकर बाद में नेहरू जी के समय मे हुआ।

यह भी उल्लेखनीय है कि हमारी वर्तमान बिजली व्यवस्था भी डॉ. अम्बेडकर की ही देन है। उन्होंने ही सेंट्रल तथा स्टेट पावर कमिशनों की स्थापना की थी। भारत के आधुनिकीकरण में सर छोटू राम की तरह डॉ. अम्बेडकर के योगदान को जानबूझ कर भुला दिया गया है। 1991 में केंद्रीय सरकार ने पहली बार जल संसाधनों के विकास, जल सिंचाई तथा बहुउद्देश्यीय योजनाओं की परिकल्पना में डॉ. अम्बेडकर के योगदान को पहचाना और इस संबंध में शोध पुस्तक छापी।मज़े की बात कि ये तीनों हस्तियाँ जन्म से हिंदू थीं लेकिन उनके विचार सच्चे साम्यवादी थे। आज के तलछट माकपाइयों की तरह नहीं, जो लाल झंडा उठाए फेसबुक पर साम्प्रदायिकता का जहर फैलाते रहते हैं।

शंभूनाथ शुक्ल