BSNL News: प्रतिस्पर्धा के बावजूद देश में बीएसएनएल के सबसे अधिक उपभोक्ता

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BSNL News: प्रतिस्पर्धा के बावजूद देश में बीएसएनएल के सबसे अधिक उपभोक्ता
BSNL News: प्रतिस्पर्धा के बावजूद देश में बीएसएनएल के सबसे अधिक उपभोक्ता
  • नेटवर्क और स्पीड में सुधार नहीं कर पा रहा बीएसएनएल

BSNL Customers, निर्मल रानी, (आज समाज): भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) भारत सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (पीएसयू) का एक प्रमुख एवं लोकप्रिय उपक्रम है। इसका स्वामित्व दूरसंचार विभाग के पास है और दूरसंचार विभाग संचार मंत्रालय का एक हिस्सा है। भारत सरकार ही बीएसएनएल की 100 प्रतिशत शेयर पूंजी का मालिक भी है। मोदी कैबिनेट में संचार मंत्रालय का कामकाज इस समय अश्विनी वैष्णव देख रहे हैं। वह केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री हैं।

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हालांकि भारत संचार के क्षेत्र में रिलायंस जियो, भारती एयरटेल व वोडाफोन और आइडिया जैसी और भी कई छोटी व क्षेत्रीय निजी कंपनियां सक्रिय हैं, लेकिन इन सबसे प्रतिस्पर्धा होने के बावजूद आज भी बीएसएनएल को देश में सबसे अधिक उपभोक्ता रखने का गौरव हासिल है।

टेलीकॉम कंपनियों ने बढ़ा दिए हैं टैरिफ 

आंकड़ों के मुताबिक जुलाई 2024 तक बीएसएनएल के पास देश में लगभग 88.512 मिलियन मोबाइल फोन के ग्राहक थे। इसका मुख्य कारण यह भी था कि देश की प्रमुख टेलीकॉम कंपनियों ने जून 24 में ही अपने अपने मोबाइल टैरिफ बढ़ा दिये थे। इनमें रिलायंस जियो ने जहां 27 जून को अपने टैरिफ में 12 से 27 प्रतिशत की बढ़ोतरी की थी वहीं भारती एयरटेल ने 8 जून को अपना टैरिफ 11 से 21 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था।

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वोडाफोन आइडिया ने भी 29 जून,24 को अपना टैरिफ 10 से 24 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। इसी बढ़ोतरी के फौरन बाद ही बीएसएनएल में 2.93 मिलियन ग्राहकों की वृद्धि हुई । जबकि निजी दूरसंचार कंपनियों को अपने करोड़ों ग्राहकों से हाथ धोना पड़ा। उस समय बीएसएनएल ने पहली बार ग्राहकों की इतनी वृद्धि दर्ज की थी। जून- जुलाई 24 में बीएसएनएल ने लगभग 2.9 मिलियन उपयोगकर्ता अपने साथ जोड़े।

किसान आंदोलन में भी मिला मौका 

बीएसएनएल को ऐसा ही एक अवसर उस समय भी हाथ लगा था जबकि 2020-2021 में हुये किसान आंदोलन के समय पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश के किसानों द्वारा 2020 में भारतीय संसद द्वारा पारित तीन कृषि अधिनियमों के विरुद्ध आंदोलन चलाया जा रहा था। उस समय किसान, अंबानी – अडानी द्वारा संचालित उद्यमों व उपक्रमों का भी विरोध कर रहे थे।

पंजाब,हरियाणा में रिलायंस जियो का विरोध

किसानों का कहना था कि मोदी सरकार अंबानी – अडानी जैसे निजी उद्योगपतियों को फायदा पहुँचाने के लिये ही तीन कृषि अधिनियम लाई है। इसलिये किसानों द्वारा पंजाब,हरियाणा में रिलायंस जियो का भी बड़े पैमाने पर विरोध। यहां तक कि बहिष्कार किया जा रहा था। रिलायंस जियो के तो कई मोबाईल टावर्स में भी उस समय तोड़ फोड़ की खबरें आई थीं।

बीएसएनएल को स्वयं ही मिल रहे थे उपभोक्ता

बहरहाल जिन उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए निजी कम्पनीज सैकड़ों हजारों करोड़ रुपए विज्ञापन या प्रलोभन में खर्च करती हैं वही उपभोक्ता बिना किसी प्रयास के बीएसएनएल को स्वयं ही मिल रहे थे इससे बड़ी लोकप्रियता की बात बीएसएनएल के लिये और क्या हो सकती है ? परन्तु चिंता का विषय है कि देश का सबसे बड़ा संचार नेटवर्क होने के बावजूद नेटवर्क और स्पीड दोनों ही मामलों में बीएसएनएल अपने में सुधार नहीं कर पा रहा है।

चंडीगढ़ में स्पीड नाममात्र

उत्तर प्रदेश,उत्तरांचल व हरियाणा यहाँ तक कि चंडीगढ़ में तो इसकी गति नाममात्र है। सवाल यह है कि देश का सबसे बड़ा व सबसे साधन संपन्न नेटवर्क व सबसे अधिक टावर्स रखने के बावजूद आखिर क्या वजह है कि गांव में तो दूर शहरों तक में इसके पूरे मोबाईल सिग्नल नहीं आ पाते ? आज के युग में जबकि 5 -10 रुपये से लेकर लाखों रुपए तक की लेनदेन मोबाईल गूगल या पे फोन जैसे माध्यमों से की जा रही हो,ऐसे में अन्य निजी कम्पनीज की ही तरह बीएसएनएल का भी राष्ट्रव्यापी नेटवर्क तीव्र गति के साथ उपलब्ध होना बेहद जरूरी है।

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परन्तु एक तरफ तो देशभक्ति का जज्बा रखने वाले ग्राहकों का बीएसएनएल की ओर आकर्षित होना और दूसरी तरफ बीएसएनएल द्वारा अपने ग्राहकों की जरूरतों और नेटवर्क व स्पीड की कमी के चलते उन्हें होने वाली परेशानियों की अनदेखी करना या इसका तत्काल समाधान न करना बीएसएनएल के ग्राहकों के मन में संदेह जरूर पैदा करता है।
दरअसल पिछले एक दशक से ऐसी तमाम खबरें आ रही हैं जिनसे यह पता चलता है कि सरकारें उद्योगपतियों व कॉपोर्रेट घरानों की हितैषी के रूप में काम कर रही हैं।

अनेक क्षेत्रों में सरकारों की सरपरस्ती

जिसतरह विद्युत,रेल, बंदरगाह, इन्शुरन्स,बैंकिंग,तेल,गैस,कोयला,सैन्य सामग्री,विमानन व संचार जैसे अनेक क्षेत्रों में सरकारों की सरपरस्ती में उद्योगपतियों व कॉपोर्रेट घरानों का दखल बढ़ा है और देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इन उद्योगपतियों के लिये व्यवसायिक आधार तैयार कर कई देशों में इन्हें माइनिंग,बिजली व निर्माण आदि के ठेके दिलवाये गये हैं उन्हें देखकर यह संदेह होना भी स्वभाविक है कि कहीं बीएसएनएल को बदनाम करने व इसे कमजोर करने के लिये ही तो यह षड़यंत्र किसी बड़ी व सत्ता संरक्षित साजिश के तहत तो नहीं किया जा रहा ?

उपभोक्ताओं की परेशानियों से निजात दिलाना जरूरी

यदि बीएसएनएल ईमानदारी से चाहे तो कम से कम समय में अपने उपभोक्ताओं को हो रही इन परेशानियों से निजात दिला सकता है। और यदि बीएसएनएल की ओर से पूरे देश के हर कोने तक अपना नेटवर्क व पूरा सिग्नल पहुंचा दिया जाये और उसकी गति में सुधार कर दिया जाये तो निश्चित रूप से निजी कम्पनीज की तरफ से अभी और भी करोड़ों उपभोक्ता अपना मुंह फेर लेंगे।

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परन्तु सत्ता में बैठे उद्योगपतियों के वे शुभचिंतक जो वास्तव में सरकार में उद्योगपतियों व कॉपोर्रेट घरानों के हितों के न केवल पैरोकार हैं बल्कि सच पूछिए तो उन्हीं के सीधे प्रतिनिधि के रूप में सत्ता में अहम पदों पर बैठे हुये हैं। ऐसे लोगों के सत्ता के शीर्ष पदों पर रहते क्या बीएसएनएल, प्रमुख निजी टेलीकॉम कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा कर सकेगा ? बीएसएनएल मोबाइल के मौजूदा नेटवर्क तथा उसकी मंद गति को देखकर इस बात पर संदेह होना स्वाभाविक है।

बीएसएनएल, कहीं भीतरघात का शिकार तो नहीं

यदि बीएसएनएल में ही सर्वोच्च पदों पर बैठे अधिकारियों की साजिश के चलते और उनकी उद्योगपतियों व कॉपोर्रेट घरानों से मिली भगत के परिणाम स्वरूप इस पीएसयू की इतनी दयनीय हालत हो रही है तो ऐसे ‘विभीषणों ‘ का भी बेनकाब होना बेहद जरूरी है। न केवल सरकार बल्कि स्वयं बीएसएनएल कर्मियों को भी इस बात पर नजर रखनी होगी कि भारत सरकार का यह लोकप्रिय केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम बीएसएनएल किन कारणों से अपने उपभोक्ताओं को समुचित सेवायें नहीं दे पा रहा है ? बीएसएनएल, कहीं भीतरघात का शिकार तो नहीं ?

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