Bombay High Court : आई लव यू’ फिल्म पर रोक की मांग वाली याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट ने की खारिज

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आशीष सिन्हा
आशीष सिन्हा

Aaj Samaj (आज समाज),Bombay High Court , नई दिल्ली :

1*’आई लव यू’ फिल्म पर रोक की मांग वाली याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट ने की खारिज*

बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में लायंस गेट इंडिया एलएलपी (एलजीआईएल) द्वारा कॉपीराइट उल्लंघन का आरोप लगाते हुए फिल्म के निर्माताओं के खिलाफ दायर याचिका में हिंदी फिल्म ‘आई लव यू’ की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति आरआई छागला की एकल पीठ ने एलजीआईएल द्वारा कॉपीराइट उल्लंघन के मुकदमे में आदेश पारित किया जिसमें दावा किया गया था कि “आई लव यू” के निर्माताओं ने अमेरिकी फिल्म “पी2” का रीमेक बनाने के अपने विशेष अधिकार का उल्लंघन किया था।
एएनएम ग्लोबल के माध्यम से दायर मुकदमे में, एलजीआईएल ने दावा किया कि “आई लव यू” के निर्माताओं ने अमेरिकी फिल्म “पी2” का रीमेक बनाने के अपने विशेष अधिकारों का उल्लंघन किया है। उन्होंने फिल्म के निर्माताओं और वायकॉम 18 मीडिया प्राइवेट के खिलाफ निषेधाज्ञा मांगी। लिमिटेड, उल्लंघनकारी फिल्म का अधिकार धारक, इसकी रिलीज को रोकने के लिए।

LGIL ने कहा कि समिट एंटरटेनमेंट, एक अमेरिकी संस्था, P2 के सभी कॉपीराइट का मालिक है और उसने LGIL को हिंदी रीमेक अधिकारों के लिए विशेष लाइसेंस प्रदान किया है। हालांकि, एथेना ई एंड एम एलएलपी ने एलजीआईएल के प्राधिकरण के बिना उल्लंघनकारी फिल्म का पुनर्निर्माण और निर्माण किया।
LGIL को 5 जून को पता चला कि उल्लंघन करने वाली फिल्म 16 जून, 2023 को Viacom के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर रिलीज होने वाली थी।

जवाब में, एलजीआईएल ने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने और फिल्म पर कॉपीराइट का दावा करने वाले निर्माताओं के खिलाफ निषेधाज्ञा की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया। उन्होंने वायकॉम 18 मीडिया सहित निर्माताओं से हर्जाने के रूप में ₹10 करोड़ की भी मांग की।
LGIL ने तर्क दिया कि अदालत को उल्लंघन का निर्धारण करने के लिए दोनों फिल्मों की प्रस्तुति, अभिव्यक्ति और नाटकीय विशेषताओं की जांच करने की आवश्यकता है।

सुनील खेत्रपाल के साथ फिल्म के निर्माता एथेना एनएम एलएलपी ने सभी आरोपों का खंडन किया और जोर देकर कहा कि उनकी फिल्म पूरी तरह से मूल थी। वायाकॉम ने एलजीआईएल द्वारा किए गए अनुरोधों का भी विरोध किया।
एकल पीठ ने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने में अनिच्छा व्यक्त की और LGIL द्वारा मांगी गई तत्काल राहत के संबंध में प्रतिवादियों से जवाब मांगा।खंडपीठ ने मामले की आगे की सुनवाई एक सप्ताह के बाद निर्धारित की है।

2* राजद्रोह का मामला: कर्नाटक हाईकोर्ट ने बीदर स्कूल प्रबंधन पर सीएए विरोधी नाटक के मंचन के खिलाफ कार्यवाही रद्द की

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हाल ही में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की आलोचना करने वाले एक नाटक के मंचन के लिए बीदर में शाहीन स्कूल प्रबंधन के खिलाफ दायर एक देशद्रोह के मामले को खारिज कर दिया। प्राथमिकी 2020 में कक्षा 4, 5 और 6 के छात्रों द्वारा नाटक की प्रस्तुति पर दर्ज की गई थी, जिसमें सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर चर्चा की गई थी। कलबुर्गी खंडपीठ के एकल न्यायाधीश न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर ने चार आरोपियों, जो प्रबंधन का हिस्सा हैं, की दलीलों को स्वीकार कर लिया और उनके खिलाफ धारा 504 (अपमान), 505 (2) (दुश्मनी, नफरत या नफरत पैदा करने या बढ़ावा देने वाले बयान) वर्गों के बीच मनमुटाव), 124A (देशद्रोह), 153A (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) भारतीय दंड संहिता (IPC)।के तहत शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया।

स्कूल के प्रबंधन के खिलाफ दायर शिकायत के अनुसार, कम उम्र के छात्रों को ऐसी भाषा का उपयोग करने के लिए निर्देशित किया गया था जो देश-विरोधी भावनाओं को बढ़ावा दे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए प्रोत्साहित करे। इसके अतिरिक्त, यह आरोप लगाया गया कि बच्चों को यह कहना सिखाया गया कि यदि संसद द्वारा सीएए, एनआरसी और एनपीआर लागू किया गया, तो मुसलमानों को देश छोड़ना होगा।

3*पंजाब सिविल सेवा नियमो को संशोधित न करने पर सुप्रीम कोर्ट की सरकार को फटकार*

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सिविल सेवा नियम, 1934 को अपडेट या संशोधित नहीं करने पर नाराजगी जाहिर की है। अदालत ने इस दौरान कहा कि ये नियम तब के हैं जब इंस्पेक्टर जनरल राज्य पुलिस का प्रमुख होता था। समय के साथ इनमें भी बदलाव किए जाने थे। बदलाव न होने से बदलते समय और परिस्थितियों के अनुरूप इसमें विसंगतियां पैदा हो गई हैं।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अवकाशकालीन पीठ ने इस मसले पर सुनवाई की। उन्होंने कहा कि मूल रूप से 1934 में बनाए गए नियमों में अधिकारियों को महानिरीक्षक, एक उप महानिरीक्षक और एक पुलिस अधीक्षक के रूप में माना गया था। उस समय का इंस्पेक्टर जनरल यानी महानिरीक्षक (जब सेवा को शाही/भारतीय पुलिस कहा जाता था) राज्य पुलिस का प्रमुख होता था, लेकिन आज ज्यादातर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस महानिदेशक सर्वोच्च पद है। इस पर भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी की तैनाती होती है।

अदालत ने कहा कि वास्तव में आज पुलिस महानिरीक्षक प्रशासनिक रूप से पुलिस महानिदेशक और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के अधीन है। ये नियम भी उस समय बनाए गए थे जब रेंज और कमिश्नरेट की व्यवस्था नहीं बनी थी। निश्चित रूप से, बेहतर या बदतर के लिए नियम समय के साथ तालमेल नहीं बिठा पाए हैं। हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि संबंधित अधिकारी भ्रम को दूर करने के लिए कम से कम पदों के सही आधिकारिक विवरण के साथ नियमों को अपडेट-संशोधित करने में असमर्थ क्यों हैं।

शीर्ष अदालत ने यह बात पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ एक व्यक्ति की ओर से दायर अपील को खारिज करते हुए कही। हाईकोर्ट ने हरियाणा के पुलिस महानिदेशक के आदेश को बहाल कर दिया था, जिसमें भ्रष्टाचार, अवज्ञा और कर्तव्य में लापरवाही के कारण याचिकाकर्ता के खिलाफ वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया गया था। पीठ ने कहा कि डीजीपी ने अपीलकर्ता को उचित कारण बताओ नोटिस दिया और उसके बाद आगे की कार्रवाई की। अदालत ने कहा कि डीजीपी को कार्रवाई को मनमाना नहीं कहा जा सकता और उस पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया।

4 *बीबीसी के बाद अब अल जजीरा की डॉक्युमेंट्री! इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगाई रोक*

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉक्युमेंट्री ‘इंडिया हू लिट द फ्यूज’ के प्रसारण पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को आदेश का पालन कराने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने सामाजिक सौहार्द कायम रखने और राज्य हितों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने अलजजीरा मीडिया नेटवर्क दोहा, कतर को नोटिस भी जारी किया है। 6 जुलाई को मामले में अगली सुनवाई होगी।

याचिका में डॉक्यूमेंट्री फिल्म के प्रसारण पर देश की कानून व्यवस्था प्रभावित होने की बात कही गई है। धार्मिक उन्माद और घृणा फैलने का अंदेशा जताया गया है। याची ने कोर्ट में यह भी कहा कि फिल्म सच से काफी दूर मनगढ़ंत कथानक पर आधारित है। कोर्ट ने कहा संविधान का अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। यह मौलिक अधिकार है, लेकिन यह अनियंत्रित नहीं है, तर्कसंगत प्रतिबंध लगाया जा सकता है। कोर्ट ने कहा फिल्म से सामाजिक सौहार्द बिगड़ने का खतरा है। ऐसे में फिल्म का परीक्षण और विचार होने तक इसके प्रसारण पर रोक लगाई जाए।

हाईकोर्ट ने कतर के मीडिया चैनल अल जजीरा से कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दों का निस्तारण होने तक यह फिल्म प्रसारित न की जाए। सुधीर कुमार ने याचिका में दलील दी थी कि अगर ये फिल्म प्रसारित की जाती है तो इससे धर्म के लोगों के बीच नफरत पैदा हो सकती है और देश का सौहार्द बिगड़ सकता है।

याचिका में अनुरोध किया गया है कि केंद्र सरकार, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और सेंसर बोर्ड फिल्म की समीक्षा कर इसके प्रसारण से पहले प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया जाए। अदालत ने कहा, आरोपों की गंभीरता देखते हुए इस याचिका में आए मुद्दों का निस्तारण होने तक फिल्म का प्रसारण टाला जाए। उच्च न्यायालय ने केंद्र और संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि जब तक फिल्म की स्क्रिप्ट, कहानी की समीक्षा नहीं कर दी जाती, फिल्म के प्रसारण को मंजूरी न दी जाए और इसके लिए जरूरी कानून कार्रवाई की जाए।

याचिकाकर्ता का दावा है कि अखबारों और सोशल मीडिया से पता चला है कि इस लघु फिल्म में मुस्लिमों को भय के साये में जीवन जीने की बात कही गई है। इससे लोगों में घृणा की भावना पैदा होती है। यह सच्चाई से परे है।

5*’फेसबुक पुलिस जांच में सहयोग नहीं करेगा तो पूरे देश में बैन किया जा सकता है’*

कर्नाटक हाईकोर्ट ने फेसबुक को चेतावनी दी है अगर वो  राज्य की पुलिस के साथ सहयोग नहीं करेगा तो उसकी, तो  सेवाएं को पूरे भारत में बंद करने पर विचार किया जा सकता है।

कोर्ट की यह टिप्पणी सऊदी अरब में कैद एक भारतीय से जुड़े केस की जांच को लेकर आई है। आरोप है कि फेसबुक इस मामले में कर्नाटक पुलिस के साथ कथित तौर पर सहयोग नहीं कर रहा है।

दक्षिण कन्नड़ जिले के बिकरनकाट्टे की रहने वाली कविता की याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित की बेंच ने सोशल मीडिया कंपनी को यह चेतावनी दी। बेंच ने फेसबुक को निर्देश दिया कि फेसबुक जरूरी जानकारी के साथ पूरी रिपोर्ट एक हफ्ते के अंदर कोर्ट के सामने पेश करे।

बेंच ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को यह बताना चाहिए कि सऊदी अरब में एक भारतीय नागरिक की फर्जी गिरफ्तारी के मुद्दे पर अब तक हमारी तरफ से क्या कदम उठाए गए हैं। इसी के साथ मंगलुरु पुलिस को जांच जारी रखने और रिपोर्ट फाइल करने के आदेश दिए गए हैं।

कर्नाटक हाईकोर्ट में दायर याचिका में याचिकाकर्ता कविता ने बताया है कि उनके पति शैलेश कुमार पिछले 25 साल से सऊदी अरब की एक कंपनी में काम कर रहे थे। कविता ने बताया कि उनके पति ने 2019 में नागरिकता संशोधन कानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन के समर्थन में फेसबुक पोस्ट डाला था। लेकिन कुछ अज्ञात लोगों ने उनके नाम पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर सऊदी अरब के शासक और इस्लाम के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट डाल दिए। जैसे ही शैलेश की नजर में यह बात आई, उन्होंने अपने परिवार को इसकी जानकारी दी और पत्नी ने इस मामले में मंगलुरु पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। हालांकि, इस बीच सऊदी पुलिस ने शैलेश को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें जेल में डाल दिया।

इस मामले में मंगलुरु पुलिस ने जांच की और फेसबुक से फर्जी फेसबुक अकाउंट खोले जाने की जानकारी मांगी। लेकिन फेसबुक ने पुलिस की मांगों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। 2021 में याचिकाकर्ता ने जांच में देरी को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

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