Aaj Samaj (आज समाज),Bombay high court, नई दिल्ली :
8*भीमा कोरेगांवः बरवरा राव को नहीं मिली हैदराबाद जाने की इजाजत, डिवीजन बेंच में दाखिल करेंगे याचिका*
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बरवरा राव से कहा है कि वो मोतियाबिंद की सरजरी मुंबई से बाहर कराने की अनुमति के लिए डिवीजनल बेंच के सामने याचिका दाखिल करें। बॉम्बे उच्च न्यायालय की एकल बेंच के न्यायाधीश एसवी कोटवाल ने प्रकरण देखा और पाया कि राव द्वारा आवेदन उनकी जमानती शर्तों को संशोधित करने के लिए था, किंतु वो मुंबई नहीं छोड़ सकत थे।
सोमवार को बंबई उच्च न्यायालय ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में अभियुक्त पी वरवरा राव को मुंबई से हैदराबाद जाकर कटरेक्ट सर्जरी करवाने की अनुमति के लिए उच्च न्यायालय के विभागीय बेंच के पास जाने के लिए निर्देश दिए।
“दोनों पक्षों के वकीलों की सहमति हैं इस बात पर थी कि याचिका में की गई प्रार्थनाएं आवेदक को दी गई जमानत को संशोधित करने के लिए हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किए गए कानून के अनुसार ऐसा मामला केवल विभाजन बेंच ही निर्णीत कर सकती है। अब यह मामला न्यायाधीश एएस गडकरी के नेतृत्व में विभाजन बेंच द्वारा सुना जाएगा।
बारबराव राव को 2018 में गिरफ्तार किया गया था और मार्च 2021 तक न्यायिक हिरासत में रहा थे उन्हें बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा चिकित्सा के आधार पर अस्थायी जमानत दी गई थी।
आदेश में से एक शर्त थी कि राव मुंबई के राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अधिनियम के तहत विशेष न्यायालय अनुमति के बिना मुंबई से नहीं छोड़ सकते। वर्तमान याचिका में राव ने यह दावा किया कि मुकदमा अभी तक शुरू नहीं हुआ है और उनका कटरेक्ट बढता जा रहा है। उन्होंने यह दावा किया कि मुंबई में सर्जरी और ऑपरेशन की देखभाल महंगी होती है, जबकि तेलंगाना राज्य में पेंशन होल्डर के लिए यह मुफ्त होती है।
27 अप्रैल 2013 को, उच्च न्यायालय ने एनआईए से राव के दावे और तेलंगाना भेजने पर एऩआईए से पूछा था कि क्या राव को भेजा जा सकता है।
9*रेप पीड़िता और उसकी मां को थाने बुलाकर बैठाने पर कोर्ट सख्त, SHO को किया तलब*
दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने मानसिक रूप से कमजोर एक रेप पीड़िता और उसकी मां को जांच के लिए थाने बुलाने पर सख्त रुख अख्तियार किया है। कोर्ट ने इस मामले में दिल्ली पुलिस से इस मामले में रिपोर्ट तलब की है। बताया जाता है कि यह मामला मामला वेलकम थाने का है।
दरअसल, पीड़िता की मां ने वाकी एनके सिंह के माध्यम से कोर्ट में दरख्वास्त लगाई थी कि सीआरपीसी की धारा 161 बयान दर्ज कराने के नाम पर पुलिस उन्हें प्रताड़ित करती है। जब कि सीआरपीसी की धारा 160 में साफ लिखा हुआ है कि महिलाओं से थाने में नहीं बल्कि उनके आवास पर पूछताछ की जाएगी। लेकिन दिल्ली पुलिस ने प्रथा बना ली है कि आईओ महिलाओं को पुलिस स्टेशन में बुला कर बयान दर्ज करते हैं। नियमानुसरा यह धारा 166/166-ए/188 आईपीसी के तहत अपराध है।
कड़कड़डूमा कोर्ट की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) से इस मामले में सात जून को रिपोर्ट मांगी है।
कोर्ट को दी गई दरख्वास्त में रेप पीड़िता की मां ने कहा है कि उसकी बेटी का अपहरण कर लिया गया था और उसे गाजियाबाद के लोनी ले जाया गया था। कुछ लोगों ने कथित तौर पर उसके साथ बलात्कार किया और उसके साथ अप्राकृतिक यौनाचार किया। शिकायत पर पुलिस ने पीड़िता को ढूंढ निकाला और उसकी मां के पास ले गई।
रेप पीड़िता की मां का आरोप है कि मामला वेलकम थाना में दर्ज कराया गया है। आईओ महिला एसआई ने कई मौकों पर आवेदक और उसकी बेटी को थाने बुलाया।
आरोप है कि दोनों को थाने में बैठा दिया और मां को पीटा। शिकायत के बाद दूसरे आईओ की प्रतिनियुक्ति की गई। नए आईओ भी ने मां-बेटी को थाने बुलाया।
अधिवक्ता एन के सिंह भदौरिया ने तर्क दिया कि धारा 160 सीआरपीसी के अनुसार किसी महिला को थाने में नहीं बुलाया जा सकता है। जांच करने के लिए आईओ उनके आवास पर जाएंगे।
इसी दलील पर एमएम कड़कड़डूमा ने दिल्ली पुलिस को तलब कर लिया है।
10*बार काउंसिल ऑफ इंडिया और बार काउंसिल ऑफ इंग्लैण्ड के बीच महत्वपूर्ण समझौता*
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक दूसरे के अधिकार क्षेत्र के बीच प्रशिक्षण और सीखने के आपसी आदान-प्रदान के लिए वकीलों और कानून के छात्रों के आदान-प्रदान कार्यक्रम के लिए बार काउंसिल ऑफ इंग्लैंड एंड वेल्स एंड लॉ सोसाइटी ऑफ इंग्लैंड एंड वेल्स के साथ एक समझौता किया है।
समझौते के तहत, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के कुछ युवा वकीलों को इंग्लैण्ड की कुछ प्रतिष्ठित लॉ कंपनियों में प्रशिक्षण देने का करार हुआ है और इंग्लैण्ड के युवा वकील यहां आकर प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंग।
हालांकि, बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा अनुशंसित वकीलों को यूके में प्रैक्टिस करने का कोई अधिकार नहीं होगा। इसका उद्देश्य केवल दोनों अधिकार क्षेत्रों में सीखने और अनुभव प्राप्त करने का अवसर प्रदान करना है।
इसी तरह, यूके के बार निकायों में इंटर्नशिप के लिए बीसीआई द्वारा चयनित लॉ छात्रों की सिफारिश की जाएगी।
समझौता के अनुसार बीसीआई इंग्लैंड और वेल्स के सॉलिसिटरों और बैरिस्टरों को प्रशिक्षण सुविधाएं प्रदान करेगा। इस तरह के प्रशिक्षु सॉलिसिटर और बैरिस्टर को एमओयू की शर्तों के तहत भारत में किसी भी रूप में प्रैक्टिस की अनुमति नहीं दी जाएगी और 90 दिनों का कार्यक्रम केवल प्रशिक्षण और सीखने तक ही सीमित रहेगा।
समझौता ज्ञापन पर 5 जून को लंदन में आयोजित एक बैठक में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, इंग्लैंड और वेल्स की बार काउंसिल के अध्यक्ष के साथ-साथ इंग्लैंड और वेल्स की लॉ सोसाइटी के अध्यक्ष द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे।
बैठक के दौरान, बीसीआई के अध्यक्ष श्री मनन कुमार मिश्रा ने प्रतिनिधियों को सूचित किया कि भारत में विदेशी वकीलों के प्रवेश के नियमों में कुछ महत्वपूर्ण बदलावों की आवश्यकता है। उपाध्यक्ष श्री एस प्रभाकरन ने कहा कि बीसीआई को भारतीय कानून फर्मों और भारतीय बार के एक वर्ग से अभ्यावेदन प्राप्त हुआ है। इस मुद्दे पर विदेशी निकायों की राय का भी स्वागत किया जाएगा।
11*बॉम्बे हाईकोर्ट में लुकर इलेक्ट्रिक के खिलाफ एटमबर्ग का दावा खारिज*
बॉम्बे हाईकोर्ट ने लुकर इलेक्ट्रिक के खिलाफ दायर मुकदमे में एटमबर्ग को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति मनीष पिटाले की एकल न्यायाधीश बेंच ने पाया कि एटमबर्ग को प्रतिवादी लुकर इलेक्ट्रिक टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को एटमबर्ग टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड को उनके मुकदमे में कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया, जिसमें लुकर इलेक्ट्रिक टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड पर डिजाइन उल्लंघन चुराने का आरोप लगाया था।
एटमबर्ग ने 8 सितंबर, 2018 को एक छत के पंखे, ‘एटमबर्ग रेनेसा सीलिंग फैन’ के डिजाइन को पंजीकृत किया था।
इसमें दावा किया गया है कि ल्यूकर ने 21 मार्च, 2022 को दो सीलिंग पंखे: साइज जीरो फैन 1 और 2 के लिए पंजीकरण प्राप्त था
एटमबर्ग ने आरोप लगाया गया है कि ल्यूकर ने करार उल्लंघन के साथ-साथ डिजाइन पासिंग का काम भी किया।
एटमबर्ग ने अदालत को बताया कि उसने वर्ष 2015 में सीलिंग पंखे का उत्पादन शुरू किया था और 2016 से इसे ऑनलाइन भी बेच रहा था।
इसके अलावा 2018 में, एटमबर्ग ने पूरे भारत में खुदरा बाजार में प्रवेश किया।
ल्यूकर ने दावा किया कि एटमबर्ग ने इस तथ्य को दबा दिया कि चुनौती के तहत डिजाइन पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में प्रकाशित किया गया था और इसे “गोरिल्ला सीलिंग फैंस” कहा जाता था।
यह भी दावा किया गया कि एटमबर्ग डिजाइन को पंजीकृत नहीं कर सकता था क्योंकि इसमें कुछ भी नया या अनूठा नहीं था। न्यायमूर्ति पिटाले ने लूकर की दलीलों से सहमति जताई और अंतरिम राहत के लिए एटमबर्ग की याचिका खारिज कर दी।
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