इशिका ठाकुर,करनाल:
चुनावों मे नशा बांटने वालों के खिलाफ रहेगा प्रशासन का कठोर रुख।
पंचायत चुनाव से पहले जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव होने हैं। करनाल में जिला परिषद के 25 वार्डों में कांटे की टक्कर होगी। भाजपा ने यहां पार्टी सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। इसके अलावा आप पार्टी चिह्न पर चुनाव लड़ेगी, वहीं कांग्रेस ने बिना सिंबल के चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है, जबकि अन्य दलों की स्थिति अभी साफ नहीं हो सकी है।
विदित हो कि 9 नवंबर को जिला परिषद के लिए मतदान होना है। इससे पहले नामांकन की प्रक्रिया होगी और नामांकन पत्रों की जांच होगी । हालांकि जो पार्टी चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़ रही वह किसी उम्मीदवार को समर्थन जरुर करेंगी । इसके अलावा अन्य दलों के उम्मीदवारों की स्थिति अभी तक पूरी तरह से साफ नहीं हुई है। दूसरी ओर संभावित उम्मीदवारों जोरशोर से चुनाव में दम ठोक रहे हैं।
नशा बांटने वालों के खिलाफ रहेगा प्रशासन का कठोर रुख
करनाल सांसद संजय भाटिया ने कहा भाजपा में संगठन के स्तर पर सिंबल पर न लड़ने पर सहमति जताई है.पंचायत चुनावों को भाईचारे का चुनाव माना जाता है। ऐसे में भाजपा इसमें ‘पार्टी’ बनने के हक में नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी एक वार्ड से जिला परिषद में कहीं-कहीं उम्मीदवार खड़े हैं तुम ऐसे में हम नहीं चाहते कि कोई भी हमारी पार्टी से निराश हो क्योंकि अगर पार्टी चुनाव चुनाव लड़ती है तो किसी एक उम्मीदवार का साथ देना। हालांकि नगर निगम, नगर परिषद और नगर पालिका के चुनाव भाजपा शुरू से ही अपने चुनाव चिह्न पर लड़ती आई है।
भाजपा ने प्रत्येक जिले में पंचायती चुनाव पार्टी के सिंबल पर लड़ने के लिए स्थानीय नेताओं के संगठन के ऊपर बात छोड़ी थी ताकि स्थानीय नेता अपने जिले के बारे में जानकारी दे सके और बता सके कि उनको कहां पर पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं। अभी तक हरियाणा में पंचायत समिति के चुनाव में बीजेपी ने सिर्फ तीन जिले पंचकूला, यमुनानगर और नूंह में चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने की बात कही है । लेकिन बड़ी बात यह है कि सीएम सिटी करनाल में भाजपा पार्टी चुनाव चिन्ह पर पंचायती चुनाव नहीं लड़ रही। इसका मुख्य कारण माना जा रहा है कि इसी वर्ष जून महीने में हुए निकाय चुनाव में बीजेपी को करनाल में करारी हार मिली थी। शायद यही वजह है कि सी एम सिटी करनाल में बीजेपी चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़ रही।
सीएम के गृह जिले करनाल में निकाय चुनाव मे बीजेपी की करारी हार, 4 में से सिर्फ एक चेयरमैन उम्मीदवार जीता थाभाजपा जून 2022 में हुए निकाय चुनाव में मुख्यमंत्री के गृह जिले में चेयरमैन की 4 सीटों में से सिर्फ एक सीट पर ही जीत हासिल कर पाई थी । जो सीएम सिटी करनाल में बीजेपी की बहुत बड़ी हार थी। हालांकि शुरू से ही कहा जा रहा है कि बीजेपी का वोट बैंक शहरी क्षेत्र में ज्यादा होता है लेकिन उसके बावजूद भी शहरी क्षेत्र में बीजेपी को करारी हार मिली थी।
बड़ी बात ये रही कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल के गृह जिले में चार नगर पालिकाओं में से बीजेपी का एक ही चेयरमैन उम्मीदवार जीता है. वो भी 31 वोटों के मामूली अंतर से.
घरौंडा नगर पालिका में बीजेपी चेयरमैन उम्मीदवार हैप्पी गुप्ता को 5108 वोट मिले थे . दूसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार सुरेंद्र कुमार रहे थे . जिन्हें 5077 वोट मिले थे . करनाल में चार में से यही एक नगर पालिका है जिसमें बीजेपी को जीत मिली थी . बीजेपी चेयरमैन उम्मीदवार आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार से मजह 31 वोटों मामूली अंतर से जीता था। यह नगर पालिका बीजेपी के दूसरी बार विधायक बने हरविंदर कल्याण के क्षेत्र मे आती है ।
असंध नगर पालिका में बीजेपी चेयरमैन पद के उम्मीदवार कमलजीत सिंह लाडी को कुल 3855 वोट मिले थे . वहीं निर्दलीय उम्मीदवार सतीश कटारिया को 4408 वोट मिले थे . निर्दलीय उम्मीदवार सतीश ने 553 वोटों से जीत दर्ज की थी . बता दें कि सतीश कटारिया कांग्रेस नेता जिले राम शर्मा के समर्थित उम्मीदवार थे ।
निसिंग नगर पालिका चुनाव में आजाद उम्मीदवार रोमी सिंगला चेयरमैन बने थे . यहां पर बीजेपी ने अपना उमीदवार नहीं उतारा था.इसके अलावा तरावड़ी नगर पालिका से चेयरमैन पद के लिए वीरेंद्र कुमार उर्फ बिल्ला आजाद 538 वोटों से विजय हुए थे . वीरेंद्र उर्फ बिल्ला को 7059 वोट मिले थे . वहीं बीजेपी चेयरमैन पद उम्मीदवार राजीव नारंग को 6521 वोट मिले थे।
भाजपा का पंचायती चुनाव पार्टी चिन्ह पर ना लड़ने का मुख्य कारण है किसान आंदोलन
ईटीवी भारत ने ग्रामीण क्षेत्र के लोगों से बात की और जाना की क्या वजह है कि भारतीय जनता पार्टी पंचायत समिति के चुनाव पार्टी के सिंबल पर क्यों नहीं लड़ रहे।स्थानीय निवासी गजे सिंह ने कहा किसान 1 साल से ज्यादा किसान आंदोलन के चलते सड़कों पर बैठे रहे. जिसमें पूरे भारत में किसान आंदोलन मे 700 से ज्यादा किसानों की मौत हो गई थी । और जो किसानों की बात सरकार ने मानी थी उनको अभी तक लागू नहीं किया गया। उनका मानना है कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री ने किसानों की बात मानी लेकिन उनको अभी तक लागू नहीं किया , जिसे स्पष्ट होता है कि किसान आंदोलन के चलते उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ा झटका लग सकता था। वहां चुनाव जीतने के लिए ही उन्होंने किसानों आंदोलन खत्म करने की बात कही थी । इसी से किसानों में अभी तक रोष है और इस रोष को देखते हुए ही भाजपा ने पार्टी के सिंबल पर पंचायत समिति के चुनाव लड़ने से पीछे हट गई ।
अग्निवीर योजना के चलते युवाओं में है भारी रोष
भाजपा युवाओं को नहीं मुहैया करवा पा रही रोजगार
इस मौके पर ये रहे मौजूद
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