Amit Shah Focus On Electoral States, अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी ने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन से पहले अभी अपना पूरा फोकस राज्यों के चुनावों पर केंद्रित कर दिया है। बीजेपी के राजनीतिक चाणक्य माने जाने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जिन राज्यों में अगले साल चुनाव हैं, उनके लिए अभी से चुनावी रणनीति बनाने में जुट गए हैं।श् ाुक्रवार को तमिलनाडु में शाह ने नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा के साथ एआईएडीएमके से गठबंधन कर अपनी पहली रणनीति को अंजाम दे दिया है।इसके बाद उनका अगला टारगेट पश्चिम बंगाल रहने वाला है।

बंगाल में भी तमिलनाडु के साथ अगले साल इलेक्शन

बंगाल में भी तमिलनाडु के साथ ही अगले साल ही चुनाव है। हालांकि असम और पुडुचेरी में भी अगले साल चुनाव होना है, लेकिन इन दोनों राज्यों में बीजेपी को कोई चुनौती दिख नहीं रही है। तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल बीजेपी के मुख्य टारगेट हैं। बंगाल में पिछली बार बीजेपी ने टीएमसी को कड़ी टक्कर दे 70 सीटें जीत विपक्ष का दर्जा हासिल किया। इस बार वह बहुमत के आंकड़े से ज्यादा सीट लाने की रणनीति बना रही है। इसके लिए बंगाल में ऐसा चेहरा देना चाहती है जो टीएमसी नेत्री ममता बनर्जी को कड़ी चुनौती दे सके। इसलिए किसी महिला नेत्री को बीजेपी मौका दे सकती। हालांकि शाह का पहला लक्ष्य तमिलनाडु था जिसमें वह अपने हिसाब से विसात बिछाने में सफल हो गए।

सबसे पहले अन्नामलाई को अध्यक्ष की रेस से अलग किया

शाह ने सबसे पहले अपने चर्चित प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई को अध्यक्ष की रेस से अलग किया। फिर एआईएडीएमके से बातचीत शुरू की। एआईएडीएमके प्रमुख पालनिस्वामी के साथ फाइनल बातचीत से पूर्व नागेंद्रन को प्रदेश की कमान सौंपी गई। फिर शाह ने गठबंधन की घोषणा की। बीजेपी और एआईएडीएमके का गठबंधन का डीएमके और कांग्रेस के गठबंधन के साथ सीधा मुकाबला तय हो गया। डीएमके के लिए अब सरकार रिपीट करना आसान नहीं होगा। शाह कह चुके हैं कि इस बार बीजेपी तमिलनाडु और बंगाल जीत कर दिखाएगी। दक्षिण भारत में बीजेपी गठबंधन के साथ चुनाव जीतती है तो केंद्र में ताकत मिलने के साथ दक्षिण में भी मजबूत होगी।

2026 से लेकर 2028 तक सभी बड़े राज्यों में चुनाव

शाह तमिलनाडु के बाद बंगाल पर अब फोकस करेंगे। बीजेपी ने अपने महत्वपूर्ण राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों का फैसला इसलिए नहीं किया है जिससे वह चुनाव वाले राज्यों पर पहले फोकस करे। बीजेपी के रुख से ऐसा लगता है कि आगामी चुनाव के मद्देनजर वह अभी से ऐसे फैसला करना चाहती है जो चुनाव में असर डाले। 2026 से लेकर 2028 तक सारे बड़े राज्यों में चुनाव होने हैं। इनमें बीजेपी अधिकांश में सत्ता में है। अभी जो भी प्रदेश की कमान संभालेगा उसके नेतृत्व में ही चुनाव होंगे।

तीन साल के लिए चुना जाता है प्रदेश अध्यक्ष

पार्टी संविधान के हिसाब से प्रदेश अध्यक्ष तीन साल के लिए चुना जाता है। क्योंकि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के चलते राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव समय पर नहीं हुआ और अब एक साल से ज्यादा समय हो गया है। केंद्रीय गृहमंत्री शाह कह चुके हैं कि अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष पर कोई फैसला नहीं हुआ है। 11 करोड़ सदस्यों में से एक को चुनने में समय लगता है, इसलिए जल्दबाजी नहीं है। शाह के इस बयान से साफ है पहले प्रदेशों पर ध्यान है।

बंगाल में निर्णायक भूमिका निभाने वाला चेहरा चाहती है बीजेपी

तमिलनाडु के बाद बंगाल के लिए कई नाम सामने आए हैं। वहां पर बीजेपी को किसी के साथ गठबंधन नहीं करना है लेकिन वह ऐसा फेस सामने लाना चाहती है जो निर्णायक भूमिका निभा सके।दो महिला नेत्रियों के नाम चल रहे है।इनमें एक अग्निपाल मित्रा हैं तो दूसरी लॉकेट चटर्जी।दोनों के विधायक दल नेता सुवेंदु अधिकारी से ठीक संबंध है।बीजेपी अधिकारी को ही भरोसे में ले फैसला करेगी।वक्फ बोर्ड के नए कानून से मचे बवाल का बीजेपी को लाभ मिल सकता है।

बिहार-असम के लिए पार्टी तय कर चुकी है प्रदेशाध्यक्ष

बीजेपी बिहार और असम के लिए प्रदेश अध्यक्ष पहले ही तय कर चुकी है। बिहार में इस साल चुनाव होने हैं।वहां पर भी राजनीति दिलचस्प हो गई है।महागठबंधन में खींचतान होने से राजग लाभ में रहेगी।असम में मुख्यमंत्री हेमंत विश्वा शर्मा फेस हैं।इन राज्यों के बाद 2027 में गुजरात,उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, पंजाब और कर्नाटक जैसे राज्यों में चुनाव होंगे।बंगाल से निपटने के बाद इन राज्यों की तब बारी आती दिखती है।एक महत्वपूर्ण राज्य मध्यप्रदेश भी है।

उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष का चुनाव भी हुआ काफी अहम

उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष का चुनाव भी काफी अहम हो गया है।जातीय समीकरणों साध 2027 के चुनाव को देखते हुए ही फैसला होगा।ब्राह्मण और पिछड़े के बीच असमंजस बना हुआ है।कर्नाटक में बीजेपी जल्दबाजी के मूड में नहीं है। वहां पर कांग्रेस की सरकार में कुछ भी ठीक ठाक नहीं चल रहा है।इसलिए बीजेपी मौके के हालात देख किसी ऐसे चेहरे को आगे कर सकती है जो कांग्रेस में सेंध लगा सके।गुजरात में पार्टी को कोई दिक्कत है नहीं।किसी को भी मौका दिया जा सकता है लेकिन पंजाब बहुत अहम है।उत्तराखंड का फैसला भी पेचीदा हो गया है। वहां पर पार्टी कोई चौंकाने वाले फैसले कर सकती है।

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