Situation Not Good In Rajasthan And UP, (अजीत मेंदोला) (आज समाज), नई दिल्ली: राजस्थान के एक वरिष्ठ मंत्री किरोड़ी लाल मीणा का इस्तीफा। उत्तर प्रदेश में होने वाले दस सीटों के उप चुनाव को लेकर पार्टी में खींचतान। ये भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। यही वे दो राज्य हैं जिन्होंने बीजेपी को अपने दम पर बहुमत से रोक दिया ।उत्तर प्रदेश में भाजपा पिछली बार की 62 सीटों के मुकाबले 29 सीट कम लाई और राजस्थान की 25 में से 11 सीट पर हार गई। दोनों राज्यों की ये टोटल सीट 40 होती हैं। इन्हें अगर 240 में जोड़ दिया जाए तो 280 हो जाती हैं।जबकि भाजपा को इन दोनों राज्यों से सबसे ज्यादा उम्मीदें थी।
राजस्थान और उत्तर प्रदेश पर विपक्ष की नजरें
लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद हिंदी बेल्ट के ये दो ऐसे राज्य है जिन पर विपक्ष की नजरें लगी हैं।कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन अगर 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव तक बना रहता है तो बीजेपी की परेशानियां बढ़ेंगी।हालांकि उत्तर प्रदेश से पहले कई महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव होंगे जिनके चुनाव परिणाम भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेंगे। इनमें हरियाणा,महाराष्ट्र और झारखंड में तो इसी साल अक्तूबर नवंबर में और बिहार,दिल्ली जैसे राज्यों के चुनाव अगले साल होने हैं।
एक संकेत यह भी
एक संकेत यह भी है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार के चुनाव हरियाणा और महाराष्ट्र के साथ भी करा सकते हैं।इन राज्यों में दिल्ली और झारखंड को छोड़ बाकी में बीजेपी या उनके गठबंधन की सरकार है।बीजेपी के लिए सबसे अहम है हरियाणा जीतना।क्योंकि इस राज्य में उसकी सीधी लड़ाई कांग्रेस से है।जीते तो फिर बीजेपी कह सकती है कांग्रेस अपने दम पर चुनाव नहीं जीत सकती है।क्योंकि हिंदी बेल्ट वाले राज्यों में कांग्रेस सीधी लड़ाई में जीत नहीं पाई है।एक मात्र छत्तीसगढ़ में सीधी लड़ी तो एक ही सीट जीत पाई।ऐसे में भाजपा अब कांग्रेस को सीधी लड़ाई वाले राज्य हरियाणा में घेरने में पूरी ताकत लगाएगी।
भाजपा में ठीक नहीं दिखते अंदुरूनी हालात
बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अकेले लड़ने का फैसला किया है। बीजेपी के लिए जीत तभी संभव है जब वह पहले राज्यों में चल रहे अंदुरूनी झगड़ों को जल्द से जल्द निपटाए। क्योंकि लोकसभा चुनाव में अपने दम पर बहुमत नहीं जुटा पाने के बाद भाजपा में अंदुरूनी हालात ठीक नहीं दिखते हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में हो रही देरी और प्रदेशों से आ रही गुटबाजी की खबरें और नेताओं के बयान सब परेशानी बढ़ाने वाले हैं।
बीजेपी आलाकमान को अपने नेताओं पर अंकुश लगाना होगा
बिहार में बीजेपी गठबंधन की सरकार चला रही है। जेडीयू के समर्थन से केंद्र में सरकार चल रही हैं। वहां पर अश्वनी चौबे जैसे कई नेता अपने दम पर सरकार बनाने की बात कर टेंशन पैदा कर रहे हैं। बीजेपी आलाकमान को अपने नेताओं पर अंकुश लगाना होगा। अब राजस्थान को देखें तो सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति पूरे देश में वहीं पर बनी हुई है।यह तब है जब 25 में से 14 जीतने वाले सांसदों में से पांच को केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण पद दिए गए हैं। इनमे ओम बिड़ला लोकसभा के अध्यक्ष हैं।भूपेंद्र यादव,गजेंद्र सिंह शेखावत,अर्जुनराम मेघवाल और भागीरथ चौधरी को मंत्री बनाया गया है।इसके बाद राजस्थान भाजपा में कुछ भी ठीक ठाक नहीं चल रहा है।
सात माह से राजस्थान में नया अध्यक्ष नहीं बना पाई बीजेपी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को सात माह पूर्व मुख्यमंत्री तो बना दिया लेकिन जब उन्हें वह ताकत देते केंद्र में खुद ही कमजोर हो गए। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को साइड करने के बाद से बीजेपी में ऐसा कोई दूसरा नेता नहीं पनप पाया जिसकी पूरे प्रदेश में पकड़ हो और सब को साथ ले कर चल सके। स्थिति यह हो गई है पार्टी सात माह से प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी की जगह नया अध्यक्ष नहीं बना पाई। कहीं किसी की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अफसर शाही हावी है। ऐसे मंत्री का इस्तीफा सरकार की परेशानी ही बढ़ाएगा।
भाई को लोकसभा में दौसा से टिकट दिलवाना चाहते थे किरोड़ी लाल
किरोड़ी लाल मीणा भले ही कहते हैं कि उन्होंने उनके इलाके में हुई हार के चलते इस्तीफा दिया है। किरोड़ी ने चुनाव से पहले कहा था पूर्वी राजस्थान में पार्टी हारेगी तो इस्तीफा दे देंगे, लेकिन उनके इस्तीफे को दबाव की राजनीति से जोड़ा जा रहा है। एक तो वह दिए गए मंत्रालय से खुश नहीं थे। दूसरा वह अपने भाई जगमोहन मीणा को लोकसभा में दौसा से टिकट दिलवाना चाहते थे उनकी आलाकमान ने नहीं सुनी।अब खबरें हैं कि उप चुनाव में वह अपने भाई को टिकट दिलवा अपनी राजनीतिक विरासत सौंपना चाहते हैं। उन्होंने ऐसे समय पर इस्तीफा दिया जब राज्य में बजट सत्र चल रहा था और केंद्र हार से व्यतित था। उन्होंने इस्तीफा दे पार्टी को परेशानी में डाल दिया है।हालांकि पार्टी आलाकमान ने उन्हें दिल्ली बुलाकर बात की है।लेकिन सवाल उठने लगे हैं कि क्या बीजेपी में अब डर कम होने लगा है।
बीजेपी राजस्थान में ठीक से सोशल इंजीनियरिंग भी नहीं कर पाई
बीजेपी राजस्थान में ठीक से सोशल इंजीनियरिंग भी नहीं कर पाई जो हार की वजह बनी।भजनलाल सरकार में जाट, मीणा और गुजरों को उचित प्रतिनिधित्व न दिए जाने और भीतरघात ने पार्टी को हरा दिया ।ऐसे में आलाकमान पर भारी दबाव है कि राजस्थान के हालात को कैसे काबू में किया जाए।लोकसभा चुनाव परिणामों में हुई हार से नेताओं और कार्यकतार्ओं ने दिल्ली का डर कम हुआ है।पांच सीटों पर उपचुनाव होने है केंद्र और भजनलाल के लिए इन्हें जीतना बहुत आसान नहीं है।ठीक यही हालत उत्तर प्रदेश की बनी हुई है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विरोधी हुए सक्रिय
लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा निराशाजनक प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विरोधी सक्रिय हो गए हैं।हार की दो बड़ी वजह सामने आई हैं।इनमे एक आरक्षण खत्म करने का भय और दूसरा भीतरघात।पार्टी की परेशानी यह है कि भीतरघात और गुटबाजी से कैसे निपटे।दस सीटों पर जल्दी उप चुनाव होने हैं।प्रधानमंत्री मोदी और योगी की जोड़ी की बड़ी परीक्षा इन चुनाव में होगी।पार्टी अभी जिस स्थिति से गुजर रही है उससे उसे जल्दी बाहर निकलना होगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन का फैसला जल्द कर प्रदेशों में भी संगठन को टाइट करना होगा।संगठन अगर मजबूत नहीं किया गया तो कांग्रेस वाली स्थिति होने में देर नहीं लगेगी।