परिंदों का स्वर्ग : भरतपुर

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आज समाज डिजिटल, भरतपुर:
भारत में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान ही एक मात्र ऐसा स्थान है, जहाँ साइबेरियन क्रेन सर्दियां बिताने आते हैं। ये करीब अक्टूबर के अंत या नवम्बर के प्रारम्भ में आते हैं और फरवरी के अंत या मार्च के प्रारंभ में साइबेरिया के लिए वापस प्रस्थान कर जाते हैं।

Bird’s Paradise: Bharatpur: दूर देश से हजारों मील उड़ान भर कर आने वाले पक्षियों का स्वर्ग कहे जाने वाले भरतपुर के महल, किले एवं मन्दिर यहां के शासकों के स्थापत्य प्रेम का प्रतीक हैं। सैलानियों के अनेक आकर्षण के साथ-साथ यहॉ पुरूषों द्वारा किये जाने वाला बम नृत्य जिसे बम रसिया भी कहा जाता है, होली के अवसर पर किये जाने वाला प्रसिद्व लोक नृत्य है। इसमे नगाड़ा बजाने के लिये मोटे डंडो का प्रयोग किया जाता है। भरतपुर में हाथरस शैली की नौटंकी के लिये भी मशहूर है। इसमे सांरगी, ढोलक, शहनाई, ढपली वाघों का प्रयोग किया जाता है। शिव शक्ति की महिमा का बखान करते हुरंगो का आयोजन होली के बाद पंचमी से लेकर अष्टमी तक किया जाता है। बृजक्षेत्र से जुड़ा होने से यहॉ चित्रकार कृष्णलीला से जुडे़ बारहमासा एवं राग माला के चित्र प्रधानता से बड़े पैमाने पर बनते हैं।

अजीबोगरीब इमारतों को देखकर हो जाएंगे हैरान

Bird’s Paradise: Bharatpur: भरतपुर के दक्षिण-पूर्व में गम्भीरी एवं बाणगंगा नदियों के संगम पर स्थित विश्वविख्यात केवला देव राष्ट्रीय उद्यान विश्व के सबसे अधिक आकर्षित करने वाले जलपक्षी की शरणस्थलियों में से एक है। उद्यान के बीच में बने केवलादेव (शिव) के मंदिर पर इसका नाम रखा गया है। इस उद्यान को पहले घाना बर्ड सेन्चुरी के नाम से जाना जाता था। यह राष्ट्रीय उद्यान एक प्राकृतिक छिछली तश्तरी के रूप में है। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को रामसर साइट की सूची में शामिल किया गया एवं इसके जैविक एवं पारिस्थितिकीय महत्व को देखते हुए इसे विश्व प्राकृतिक धरोहर की सूची में सम्मिलित किया गया।

साइबेरियन क्रेन सर्दियां बिताने आते हैं

Bird’s Paradise: Bharatpur: भारत में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में ही एक मात्र ऐसा स्थान है, जहाँ साइबेरियन क्रेन सर्दियां बिताने आते हैं। ये करीब अक्टूबर के अंत या नवम्बर के प्रारम्भ में आते हैं और फरवरी के अंत या मार्च के प्रारंभ में साइबेरिया के लिए वापस प्रस्थान कर जाते हैं। पक्षियों के स्वर्ग में 390 से अधिक प्रजाति के पक्षियों को सूचीबद्ध किया गया है। इनमें से करीब 120 प्रजाति के प्रवासी (माईग्रेटरी) पक्षी तथा शेष आवासी (रेजीडेन्ट) पक्षी हैं। प्रत्येक वर्ष की शुरूआत होते ही देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों आवासी (रेजीडेन्ट) पक्षी यहाँ आकर अपने नीड़ का निर्माण करते हैं। प्रति वर्ष ओपेन बिल्ड स्टार्क, पेन्टेड स्टार्क, इग्रेट, स्पूनबिल, कामोर्रेन्ट, स्नेक बर्ड, व्हाईट आईबिस, ग्रेहीरान आदि प्रजाति के हजारों पक्षी यहाँ आकर अपने जोड़े बनाकर प्रजनन करते हैं। इन विभिन्न पक्षियों द्वारा बनाए गए घोंसले कुशल कारीगरी का परिचय देते हैं।यहाँ के जलीय क्षेत्र में करीब 100 जलीय वनस्पति की प्रजातियां पाई जाती हैं।

लेहागढ़ दुर्ग: शत्रु के सामने पराजित नहीं हुए

पूर्व में यह किला भारत के उन गिने-चुने दुर्गों में गिना जाता है जो कभी भी किसी शत्रु के सामने पराजित नहीं हुए। भरतपुर सदैव अजेय ही बना रहा। दुर्ग में नगर के दक्षिणी हिस्से में लोहागढ़ पत्थरों का बना हुआ पक्का दुर्ग है जिसके चारों ओर 61 फुट गहरी और 100 फुट चौड़ी खाई है। 1733 में जिस स्थान पर किले की नींव रखी गई, वहां खेमकरण जाट की एक कच्ची गढ़ी थी, जो चौबुर्जा कहलाती थी। महाराजा सूरजमल ने अन्य दुर्गों के दोषों को ध्यान में रखते हुए समय की आवश्यकता के अनुरूप नया किला बनवाया। दुर्ग को तैयार होने में लगभग 8 वर्ष का समय लगा। आयताकार दुर्ग का फैलाव 6.4 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में है। दुर्ग में दो विशाल प्राचीरें हैं, जिनमें भीतरी प्राचीर ईंट पत्थरों से पक्की बनी हैं तथा बाहरी प्राचीर मिट्टी की है। दुर्ग की सुदृढ़ प्राचीर में 8 विशाल बुर्जें, 40 अर्द्ध चन्द्राकार बुर्जें तथा दो विशाल दरवाजे हैं। इनमें से उत्तरी द्वार अष्ट धातु दरवाजा तथा दक्षिणी द्वार लोहिया दरवाजा कहलाता है। भव्य, सुदृढ़ और कलात्मक अष्ट धातु दरवाजा महाराजा जवाहर सिंह वर्ष 1765 में मुगलों के शाही खजाने की लूट के साथ ऐतिहासिक लाल किले से उतार कर लाया था। किले की अन्य बुर्जों में सिनसिनी बुर्ज, भैंसावाली बुर्ज, गोकला बुर्ज, कालिका बुर्ज, बागरवाली बुर्ज और नवल सिंह बुर्ज उल्लेखनीय हैं। स्वतंत्रा के बाद दुर्ग में सरकारी कार्यालय खुल गये हैं।

लक्ष्मण मंदिर

भरतपुर शहर के मध्य लक्ष्मण मंदिर एक प्रमुख तीर्थ है। माना जाता है कि 400 साल पुराना है। यह मंदिर राजस्थानी स्थापत्य शैली की मिसाल है। इस मंदिर के दरवाजे, छत, स्तंभ, दीवारें और मेहराब पठार के शानदार काम से सुसज्जित हैं। यह मंदिर स्थित है और भगवान राम के भाई लक्ष्मण को समर्पित है। एक किवदंती के अनुसार इस मंदिर का निर्माण एक साधु नागा बाबा ने किया था। इस मंदिर के पास एक अन्य लक्ष्मण मंदिर स्थित है। यह मंदिर भी लक्ष्मण को समर्पित है और इसका निर्माण 1870 में महाराजा बलदेव सिंह ने शासनकाल में हुआ। बलुआ पत्थर और संगमरमर से बना मंदिर भगवान राम, लक्ष्मण, उर्मिला, भरत, शत्रुध्न और हनुमान की अष्टधातु की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।

गंगा महारानी का मंदिर

भरतपुर में सबसे सुन्दर मंदिर के रूप में गंगा महारानी का मंदिर है। वास्तुकला की राजपूत, मुगल और दक्षिण भारतीय शैली का खूबसूरत मिश्रण गंगा महारानी मंदिर का निर्माण भरतपुर के शासक महाराजा बलवंत सिंह ने करवाया था। मंदिर की दीवारों और खम्भों पर की गयी बारीक और सुंदर नक्काशी दर्शनीय है। मंदिर को पूरा होने में 91 वर्ष का समय लगा। अपने अद्भुत वास्तुशिल्प के कारण मंदिर लोगों को आकर्षित करता है। देवी गंगा की मूर्ति के अलावा भरतपुर के इस मदिर में मगरमच्छ के एक विशाल मूर्ति है जिन्हें देवी गंगा का वाहन भी माना जाता हैं। हर साल भक्त हरिद्वार से गंगाजल लाकर देवी के चरणों के पास रखे विशाल रजत पात्र में डालते है।

डीग के महल

खूबसूरत डीग के महल का निर्माण महाराजा सूरजमल ने वर्ष 1755 से 1765 के बीच करवाया। महल के फव्वारें इन्हें अद्भुत स्वरूप प्रदान करते हैं। महल में गोपाल भवन बहुत प्रसिद्ध है। इसके सामने काले पत्थर का एक झूला नुमा सिंहासन रखा हुआ है। यह झूला मुगल बादशाह शाहजहां का है। महलों का निर्माण रूपाबास तहसील में स्थित बासी पहाड़पुर की खानों से लाये गये कठोर बलुआ पत्थर से किया गया है। महलों की सुन्दरता, भव्य आकृति तथा कारीगरी का मुकाबला पूरे भारत में बहुत कम भवन कर सकते हैं। ये महल एक चतुष्कोणीय आकृति का निर्माण करते हैं जिनके मध्य में 145 मीटर 107 मीटर आकार का उद्यान स्थित है जिसमें में फूलों की क्यारियों तथा फव्वारों का सुन्दर संयोजन किया गया है।