नई दिल्ली। देश में अगले साल शुरूआत में पांच राज्यों में एक साथ विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन सभी की निगाहें उत्तर प्रदेश के चुनाव पर हैं। सत्ताधारी बीजेपी से लेकर सपा, बसपा और कांग्रेस ही नहीं बल्कि बिहार में राजनीतिक आधार रखने वाली सियासी पार्टियां भी यूपी के चुनावी मैदान में उतरने का दम भर रही हैं। ऐसे में देखना होगा कि बिहार के दल यूपी की सियासत में क्या राजनीतिक गुल खिलाते हैं? नीतीश कुमार की जेडीयू से लेकर पूर्व सीएम जीतनराम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने यूपी में चुनाव लड़ने ऐलान किया है जबकि यह तीनों ही दल बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं। वहीं, बिहार की मुख्य विपक्षी दल आरजेडी यूपी में सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी में है जबकि एलजेपी की नजर भी सूबे के चुनावों पर टिकी है।
यूपी के चुनाव में बिहार की पार्टियों की दस्तक
नीतीश की जेडीयू, मांझी की हम और सहनी की वीआईपी ने लड़ने को तैयार
तीनों दल बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर चला रहे हैं सरकार
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यूपी के रण में जेडीयू आजमाएगी किस्मत
जेडीयू ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने पर अहम फैसला लिया है। जेडीयू 200 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है। जेडीयू ने यूपी चुनाव की कमान पार्टी महासचिव केसी त्यागी को सौंप रखी है, जो जनता दल से लेकर सपा तक में रह चुके हैं। हालांकि, जेडीयू की पहली प्राथमिकता बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरने की है, लेकिन अगर बीजेपी के साथ उसे सम्मानजनक सीटें नहीं मिलती हैं, तो जेडीयू अकेले ही चुनाव लड़ेगी। उत्तर प्रदेश में जेडीयू को अपने राजनीतिक विस्तार की काफी संभावनाएं दिख रही हैं और सूबे का सामाजिक समीकरण भी अनुकूल नजर आ रहा है। बिहार से सटे यूपी के जिलों में कुर्मी समुदाय की बड़ी आबादी है, जो जेडीयू का बिहार में परंपरागत वोटर माना जाता है। इसकी वजह यह है कि नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से आते हैं जो यूपी में यादव के बाद दूसरी सबसे बड़ी ओबीसी जाति है। हालांकि, कुर्मी समुदाय यूपी में बीजेपी का कोर वोटबैंक है।
नीतीश कुमार ने 2017 में भी यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। उन्होंने वाराणसी, प्रयागराज से लेकर कानपुर तक कई रैलियां भी की थीं, लेकिन बाद में बीजेपी के साथ तालमेल हो जाने के चलते जेडीयू ने चुनाव नहीं लड़ा था। यूपी में 6 फीसदी कुर्मी समुदाय करीब तीन दर्जन विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यूपी में संतकबीर नगर, मिजार्पुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती, बाराबंकी, कानपुर, अकबरपुर, एटा, बरेली और लखीमपुर जिलों में कुर्मी समुदाय जीतने की स्थिति में है या फिर किसी को जिताने की स्थिति में है। इसके बावजूद जेडीयू अभी तक यूपी में कोई बड़ा करिश्मा नहीं दिखा सकी।
मुकेश सहनी की नैया का यूपी में क्या होगा
बिहार एनडीए के सहयोगी और नीतीश कैबिनेट में मंत्री मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) उत्तर प्रदेश चुनाव में लड़ने के लिए ताल ठोक रही है। सहनी बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़े और चार सीटें जीतने में सफल रहे। इतना ही नहीं बीजेपी के कोटे से एमएलसी और मंत्री बने हैं, लेकिन यूपी में अब वह बीजेपी के खिलाफ चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने लखनऊ में पार्टी कार्यालय भी बना लिया है और पार्टी की कमान सूबे में लौटन राम निषाद को सौंप दी है। मुकेश सहनी की नजर यूपी में निषाद समुदाय पर है, जिसके लिए वह पूर्व सांसद फूलन देवी के सहारे अपनी सियासी जमीन मजबूत करना चाहते हैं। सहनी 25 जुलाई को फूलन देवी की पुण्यतिथि पर यूपी के भदोही जिले के अलमीहरा गांव फूलन देवी की विशाल प्रतिमाएं लगाना चाहते थे, लेकिन यूपी पुलिस ने ऐसा होने नहीं दिया और उनको वाराणसी एयरपोर्ट से ही वापस भेज दिया। इसके बाद से सहनी ने बीजेपी को लेकर तेवर सख्त कर लिए हैं और योगी सरकार के खिलाफ दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं। यूपी में निषाद समाज की आबादी करीब 4 फीसदी है, लेकिन पूर्वांचल से लेकर मध्य यूपी के 18 जिलों में निषाद समुदाय की अच्छी-खासी तादाद है, जिसे मुकेश सहनी अपने पाले में लाकर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यूपी में पांव जमाना चाहते हैं। हालांकि, इस निषाद समुदाय के वोटों पर बीजेपी की भी नजर है। इसीलिए संजय निषाद की पार्टी के साथ बीजेपी ने हाथ मिला रखा है और निषाद समुदाय के कई लोगों को मलाईदार पद भी दिए हैं। ऐसे में मुकेश सहनी यूपी की सियासत में क्या सियासी गुल खिलाते हैं यह तो 2022 के चुनाव में ही पता चल सकेगा।
जीतन राम मांझी यूपी में आजमाएंगे किस्मत
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाला हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम), जो बिहार में एनडीए का हिस्सा हैं, लेकिन अब वह 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हंै। जीतन राम मांझी के बेटे व बिहार सरकार में मंत्री संतोष मांझी यूपी का सियासी मूड भांपने और अपनी पार्टी की ताकत का आकलन करने के लिए लखनऊ आए थे। इस दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात कर उन्हें अपनी पार्टी की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। संतोष मांझी ने योगी से मिलने के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि यूपी और बिहार दोनों ही राज्यों में दलितों के मुद्दे एक समान ही हैं। हालांकि, उन्होंने कहा था कि यूपी में बीजेपी साथ चुनाव लड़ेंगे या उससे अलग इस सवाल पर फैसला बाद में किया जाएगा, लेकिन उनकी पार्टी यूपी में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। जीतनराम मांझी भी यूपी में अपनी पार्टी का विस्तार करने का ऐलान कर चुके हैं और दलित वोटों के सहारे यूपी में अपना पैर जमाना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश में दलित राज्य की आबादी का लगभग 22 फीसदी है और पश्चिमी यूपी की कई सीटों में वे निर्णायक भूमिका निभाने के लिए जाने जाते हैं। यूपी की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 85 दलितों के लिए आरक्षित हैं। पहले इस समुदाय को बसपा के एकमुश्त वोट बैंक के रूप में देखा जाता था, लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनावों में दलितों के बीच अपना आकर्षण खोने के बाद अब इस पार्टी को केवल जाटव दलितों पर पकड़ रखने वाला दल माना जाता है। ऐसे में गैर-जाटव दलित वोटों पर मांझी से लेकर कई दलों की नजर है।
आरजेडी ने मिलाया सपा से हाथ
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव यूपी विधानसभा चुनाव में मुलायम परिवार से रिश्ते का फर्ज निभाने में जुट गए हैं, जैसे बिहार चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तेजस्वी यादव के लिए निभाया था। आरजेडी ने यूपी में सपा के साथ हाथ मिला लिया है, लेकिन सीटों को लेकर कोई डिमांड नहीं रखी है। आरजेडी के यूपी अध्यक्ष अशोक सिंह ने कहा कि हमारी पार्टी ने तय किया है कि बीजेपी के सत्ता में आने से रोकने के लिए सपा को समर्थन करेंगे। आरजेडी और सपा का एक ही यादव और मुस्लिम वोटबैंक है। ऐसे में अगर दोनों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ती तो वोट बिखरने का खतरा है। वहीं, एलजेपी यूपी में हमेशा से चुनावी मैदान में उतरती रही है, लेकिन इस बार अभी तक पार्टी ने कोई औपचारिक ऐलान नहीं किया है।