बिहार विधान सभा 2020 के चुनाव परिणाम एन डी ए के पक्ष में आ चुके हैं। जनता दल यूनाइटेड,भारतीय जनता पार्टी व राष्ट्रीय जनता दल की अलग अलग दलीय स्थिति को देखते हुए राजनैतिक विश्लेषकों द्वारा विभिन्न कोणों से इन चुनाव परिणामों का विश्लेषण किया जा रहा है।
बहरहाल जनतांत्रिक व्यवस्था में चूंकि गिनतियों के आधार पर ही जीत हार व बहुमत अल्पमत का फैसला होता है इसलिए इन सवालों के कोई मायने नहीं रह जाते कि राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में उभरा या जिन नितीश कुमार के चेहरे पर एन डी ए चुनाव लड़ा वही नितीश कुमार अपनी पार्टी जे डी यू को सम्मान जनक जीत दिलवाने के बजाए तीसरे स्थान पर क्यों पहुंच गए और 2015 की तुलना में उनका प्रदर्शन कहीं खराब क्यों रहा? हकीकत तो यह है कि 243 सीटों की विधान सभा में 122 सीटें जीतने वाला दल सत्ता का दावेदार होता है। इस तरह चूंकि एन डी ए ने 125 सीटों पर जीत दर्ज की लिहाजा सत्ता पर दावेदारी भी उसी की है। चुनाव आयोग में की गयी शिकायतें,बैलट मतों की गिनती के विवाद, जीत हार के कम से कम अंतर आदि अलग बहस के विषय हैं।
बहरहाल, एन डी ए की इस नाम मात्र जीत के बाद बिहार जैसे सद्भावना प्रदेश में ऐसा लगता है कि सांप्रदायिक ताकतों के हौसले बुलंद होने शुरू हो चुके हैं। हालाँकि इन शक्तियों को ऊर्जा मिलनी तो उसी समय से शुरू हो चुकी थी जबकि तीन वर्ष पूर्व मुख्यमंत्री नितीश कुमार अपनी जे डी यू सहित महागठबंधन को ‘तलाक’ देकर भाजपा के साथ रिश्ता बना बैठे थे और ‘पलटी बाज ‘ की उपाधि से ‘सुशोभित’ हुए थे। गत तीन वर्षों में ही भाजपा ने राज्य में अपनी जड़ें इतनी गहरी कीं कि ताजातरीन विधानसभा चुनावों में राज्य में सबसे बड़ी निर्वाचित पार्टी बनने के बिल्कुल करीब पहुँच गयी।
यहाँ तक का सफर तय करने के लिए भाजपा को अपने चुनाव प्रचार में पाकिस्तान, धारा 370, अयोध्या-राम मंदिर व एन आर सी तक का सहारा लेना पड़ा। हद तो तब हो गयी जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान एन आर सी का जिक्र करते हुए कहा कि सत्ता में आने पर घुसपैठियों को निकाल फेकेंगे तो मुख्यमंत्री नितीश कुमार को योगी की बात का खंडन करते हुए कहना पड़ा कि ‘यह फुजूल की बातें हैं,ऐसा कुछ भी नहीं होगा’।
परन्तु भारतीय जनता पार्टी जो कि सद्भवना की बातें तो जरूर करती है,सबका साथ सबका विकास का नारा भी लगाती है परन्तु उसके नेताओं द्वारा अपने भाषणों में किये जाने वाले इशारे पार्टी कार्यकतार्ओं विशेषकर हिंदुत्ववादी विचारधारा रखने वाले संप्रदायिकतावादियों को वह सन्देश दे देते हैं जिसकी पार्टी उम्मीद रखती है। अन्यथा चुनावी जीत के पश्चात् किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में सांप्रदायिक उन्माद भड़कने का आखिर क्या औचित्य है ? परन्तु बिहार के चंपारण में तो कम से कम यही देखने को मिला।
प्राप्त खबरों के मुताबिक चंपारण जिले की ढाका विधानसभा सीट के अंतर्गत जमुआ गांव में मुस्लिम समुदाय के लगभग 20-25 परिवार रहते हैं जबकि यहां करीब 500 परिवारों की एक बड़ी हिंदू आबादी रहती है। ढाका विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी पवन कुमार जायसवाल ने आर जे डी प्रत्याशी फैसल रहमान को मात्र 1,649 मतों से पराजित क्या कर दिया कि भाजपाई उन्मादियों ने विजय जुलूस के दौरान जमुआ गांव की मस्जिद पर पथराव कर दिया। जिस वक़्त मस्जिद पर पथराव किया गया उस समय वहां नमाज पढ़ने वाले मौजूद थे इनमें से कई लोग बुरी तरह जख़्मी भी हुए। पथराव के दौरान हमलावर उन्मादियों ने जय श्री राम के नारे लगाए और मुस्लिम विरोधी गली गलौच व नारे बाजी की।
सत्ता के नशे में चूर इन उन्मादियों तथा इनको प्रश्रय देने वाले नेताओं को यह जरूर सोचना चाहिए कि जब कभी पाकिस्तान,बांग्लादेश या अफगानिस्तान जैसे देशों में हिन्दू या किसी अन्य गैर मुस्लिम धर्म स्थलों पर कट्टरपंथी सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा अकारण हमला किया जाता है तो हम भारतवासियों को कितना बुरा महसूस होता है? इन्हीं देशों में जब कभी कोई अल्पसंख्यक जुल्म व हिंसा का शिकार होता है तो भारत में गुस्से की लहर दौड़ पड़ती है। जिस तरह हम मुस्लिम कट्टरपंथी शक्तियों के खिलाफ अपने गम और गुस्से का इजहार करते हैं उसी तरह अपने देश में होने वाली ऐसी सांप्रदायिक व दुर्भावनापूर्ण घटनाओं की निंदा क्यों न की जाए?
जब हम हजरत मुहम्मद के कार्टून बनाने वाले के खिलाफ की गयी बर्बरता व हिंसा को हजरत मोहम्मद के जीवन चरित्र या उनकी शिक्षा से नहीं जोड़ सकते फिर आखिर मस्जिद पर पथराव नमाजियों को लहुलहान करना तथा मस्जिद को क्षति पहुँचाने का ‘जय श्री राम’ के नारों से रिश्ता कैसे कायम कर सकते हैं? यदि सत्ता हासिल करने का अर्थ सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना या दूसरों के धर्म स्थलों पर हमले करना व सांप्रदायिक विद्वेष फैलाना है फिर तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए ही नहीं बल्कि भारतीय संविधान तथा देश की एकता व अखंडता के लिए भी बेहद खतरनाक है। बिहार देश का वह राज्य है जहां सदियों से हिन्दू व मुसलमान प्रेम सद्भाव व भाईचारे से रहते आ रहे हैं। यह वही राज्य है जिसने आज तक जनसंघ या भाजपा को अपने बल पर कभी भी सत्ता तक नहीं पहुँचने दिया। यही वजह है कि हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र की तरह बिहार में भी भाजपा ने सत्ता तक पहुँचने के लिए कभी राम बिलास पासवान को अपनी बैसाखी बनाई तो कभी नितीश कुमार को।
परन्तु जब जब भाजपा अपने तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सहयोगी दलों के साथ सत्ता में आई तब तब पार्टी ने राज्य में सांप्रदायिक उन्माद को बढ़ावा देने की पूरी कोशिश की। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह द्वारा समय समय बोले जाने वाले ‘बेतुके बोल’ इस बात का प्रमाण हैं। कहा जा सकता है कि चंपारण में ढाका क्षेत्र के जमुआ गांव की घटना भाजपा के ऐसे ही नेताओं के बिगड़े बोल का नतीजा हैं। इन घटनाओं से यह सवाल भी उठता है कि प्रधानमंत्री सहित भाजपा के अनेक नेता देश में सद्भावना के वादे व दावे तो जरूर करते हैं परन्तु क्या वजह है कि उनके कार्यकर्ता सांप्रदायिकता,विद्वेष व दुर्भावना की राह पर चलना ज्यादा पसंद करते हैं?
-तनवीर जाफरी
(लेखक स्तंभकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)