Bihar Assembly Elections: पिछड़ों और मुस्लिम राजनीति का अखाड़ा बनेगा राजग अभी मजबूत स्थिति में

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Bihar Assembly Elections: पिछड़ों और मुस्लिम राजनीति का अखाड़ा बनेगा राजग अभी मजबूत स्थिति में

Bihar Elections-2025, अजीत मेंदोला, (आज समाज), नई दिल्ली: बिहार में एक बार फिर बीजेपी और विपक्ष के बीच पिछड़ों के वोटों को साधने के लिए तमाम दांव खेले जा रहे हैं।बिहार का चुनाव विकास के मुद्दों पर नहीं बल्कि जाति और मुस्लिम राजनीति के भरोसे जीतने की कोशिश होती दिख रही है। कांग्रेस और पूरा विपक्ष संविधान और मुसलमानों, पिछड़ों के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाने की राजनीति को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने जा रहा है।

हिंदुत्व के मुद्दे को भी धार देगी बीजेपी 

यूं कह सकते हैं कि लोकसभा चुनाव की तरह कांग्रेस और महागठबंधन के सभी सहयोगी पिछड़ों और मुसलमानों को आरक्षण से लुभाने का बड़ा प्रयोग बिहार में एक बार फिर कर रहे हैं। ये भी होने के आसार हैं कि महागठबंधन अगड़ी जाती को सीमित टिकट दे। दूसरी तरफ बीजेपी अपने गठबंधन को जातीय समीकरण से मजबूत करने के साथ हिंदुत्व के मुद्दे को धार देगी। महाकुंभ ओर वक्फ बिल इसमें अहम भूमिका निभायेगा। दूसरे राज्यों की तरह पर्दे के पीछे से राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को संघ धार देगा।

विपक्ष के आरक्षण खत्म करने के मुद्दे को झूठा करार दिया 

हालांकि आम चुनाव के बाद बीते 6 माह में बीजेपी ने कांग्रेस और विपक्ष के आरक्षण खत्म करने के मुद्दे को झूठा करार दे उल्टा संविधान और अंबेडकर के मुद्दे को अपने तरीके से आम जन के बीच पहुंच पकड़ मजबूत की है।बीजेपी ने कई अभियान चला कर पिछड़ों की राजनीति को कमजोर किया है।हरियाणा,महाराष्ट्र और दिल्ली की जीत से बीजेपी को ताकत मिली है जबकि विपक्ष कमजोर हुआ है।इसके बाद भी विपक्ष में खास तौर पर कांग्रेस की संविधान और पिछड़ों की राजनीति पर ही सारी उम्मीदें टिकी हुई हैं।लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी तमाम दिक्कतों के बाद भी पीछे हटने को तैयार नहीं है।

कर्नाटक में सरकार के भीतर ही बड़ा विरोध

कांग्रेस का सबसे अहम और बड़ा राज्य कर्नाटक में जाति की राजनीति को लेकर पेंच फंस गया है। जातीय जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करने को लेकर सरकार के भीतर ही बड़ा विरोध हो गया है। हालात सरकार पर संकट के बन गए हैं।मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने फिलहाल मामले को आगे बढ़ा दिया है। लेकिन उप मुख्यमंत्री डी शिवकुमार खुद जातीय जनगणना की रिपोर्ट लागू करने के हिमायती है नहीं। क्योंकि वह वोक्कलिंगा जाति से आते है।वोक्कलिंगा और लिंगायत आरक्षण के खिलाफ हैं। इन दोनों जातियों के बिना कर्नाटक में सरकार नहीं बन सकती है।

रोहित वैमुला एक्ट का दबाव बनाए हुए हैं राहुल 

राहुल अपने सीएम पर आरक्षण बढ़ाने के साथ अब दबाव बनाए हुए हैं कि रोहित वैमुला एक्ट बनाए। जिसमें पिछड़ों के साथ मुसलमानों को भी आरक्षण मिले।राहुल गांधी पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के भरोसे अपनी राजनीति को आगे बढ़ा तो रहे हैं,लेकिन उतना ही बीजेपी ध्रुवीकरण की राजनीति को तूल दे रही है। बिहार में बीजेपी में इतना तो स्पष्ट कर दिया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में चुनाव लड़ा जाएगा और इशारों ही इशारों में फेस भी घोषित कर दिया। नीतीश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओबीसी के सबसे बड़े फेस बीजेपी के पास हैं। जीतनराम मांझी और चिराग पासवान जैसे दलित नेता बीजेपी गठबन्धन में हैं।

बिहार में राजग मजबूत गठबंधन

जातीय समीकरण के हिसाब से बिहार में राजग मजबूत गठबंधन है।जहां तक यादव वोटरों का सवाल है तो मध्यप्रदेश में मोहन यादव को सीएम बनाया गया है।अभी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर भी अहम फैसला होना है।भूपेंद्र यादव रेस में बने हुए हैं।हो सकता है कि कोई ओबीसी या कोई पिछड़ी जाति से ही अध्यक्ष बन जाए तो बिहार पर असर पड़ेगा।बीजेपी ने जातीय राजनीति के हिसाब से मजबूत गठबंधन बनाया हुआ है।रहा मुस्लिम वोटरों का मामला तो वक्फ बिल से कुछ तो मुस्लिम वोट बीजेपी को मिलेगा।सबसे अहम विपक्ष वक्फ बिल को जितना तूल देगा हिन्दू वोटों का सीधा ध्रुवीकरण होगा।

राजग ने सहयोगियों को साधना शुरू किया

राजग ने सीट बंटवारे को लेकर सहयोगियों को साधना शुरू कर दिया है। चेहरे और सीटों को लेकर कोई मतभेद अभी दिख नहीं रहा है। वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन में फेस से लेकर सीटों को लेकर खींचतान जारी है।राष्ट्रीय जनता दल ने साफ कर दिया है कि तेजस्वी यादव उनके मुख्यमंत्री के फेस होंगे।150 सीटों पर दावेदारी की है।कांग्रेस न तो सीएम फेस पर सहमति दे रही है और ना ही सीटों को लेकर।दूसरा कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को जिस तरह फेस बना आगे किया हुआ है उससे भी राजद खुश नहीं है।राजद और कांग्रेस में केवल एक बात पर सहमति दिखती है वह हैं मुद्दे।राजद कांग्रेस की पिछड़ों और मुसलमानों को रिझाने की राजनीति से सहमत है।हो सकता है दोनों दल टिकट बंटवारे में अगड़ी जाति को इस बार कम महत्व दें।इससे बिहार का चुनाव आगे दूसरे राज्यों के चुनाव के लिए एजेंडा सेट कर सकता है।

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