आज समाज डिजिटल: सुप्रीम कोर्ट में शीतकालीन अवकाश के दौरान इस बार कोई पीठ तात्कालिक मामलों की सुनवाई के लिए मौजूद नहीं रहेगी। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को यह ऐलान किया। उन्होंने सुनवाई शुरू होने से पहले अपने कोर्ट रूम में मौजूद वकीलों को बताया कि 17 दिसंबर से एक जनवरी तक शीर्ष अदालत में अवकाश रहेगा।
शनिवार से एक जनवरी तक कोई बेंच उपलब्ध नहीं होगी- सीजेआई चंद्रचूड़
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि 16 दिसंबर को शीर्ष अदालत का अंतिम कार्य दिवस है और इसके बाद शीर्ष अदालत दो जनवरी को फिर से खुलेगी। उन्होंने कहा कि शनिवार से एक जनवरी तक कोई बेंच उपलब्ध नहीं होगी। सीजेआई चंद्रचूड़ की यह घोषणा इसलिए अहम मानी जा रही है, क्योंकि केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने गुरुवार को राज्यसभा में कहा था कि लोगों का मानना है कि अदालतों की लंबी छुट्टियां न्याय चाहने वालों के हित में नहीं हैं।
बता दें कि कॉलेजियम की नियुक्ति की फाइलें केंद्र सरकार के पास लंबित होने को लेकर केंद्र व सुप्रीम कोर्ट में ताजा तकरार के बीच देश की अदालतों में छुट्टियों का मुद्दा नए सिर से उठा है। इससे पहले भी यह मामला उठा था। गौरतलब है कि इससे पहले तक अवकाश के दिनों में भी आपात मामलों की सुनवाई के लिए एक या दो अवकाशकालीन पीठ मौजूद रहती थीं।
सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिला कोर्ट तक ऐसा होता था। बता दें, जजों द्वारा जजों की नियुक्ति’ के कॉलेजियम सिस्टम की विभिन्न क्षेत्रों में आलोचना की जा रही है। केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने 25 नवंबर को इसे लेकर कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली संविधान के लिए बाहरी है। केंद्र के पास जजों की नियुक्तियों की कॉलेजियम की कई सिफारिशें लंबित हैं। शीर्ष कोर्ट ने हाल ही में इस पर कड़ा ऐतराज जताते हुए इस रवैये को उसके फैसलों की अवमानना जैसा बताया था।
लोगों में जजों के आराम में रहने की धारणा गलत : जस्टिस रमण
अदालतों की छुट्टियों पर पूर्व में हुई बहस के बीच पूर्व सीजेआई एनवी रमण ने इसी साल जुलाई में रांची में ‘लाइफ ऑफ ए जज’ विषय पर जस्टिस एसबी सिन्हा मेमोरियल लेक्चर देते हुए कहा था कि यह गलत धारणा है कि जज बेहद आराम में रहते हैं और वे अपनी छुट्टियों का आनंद लेते हैं। उन्होंने कहा था कि जजों की रातों की नींद उड़ जाती है और वे अपने फैसलों पर पुनर्विचार करते हैं।
लोगों के मन में यह गलत धारणा है कि जज आराम में रहते हैं और केवल सुबह 10 से शाम चार बजे तक काम करते हैं और छुट्टियों का मजा लेते हैं। ये बाते झूठी हैं। जजों को ये बातें गले नहीं उतरती हैं। जस्टिस रमण ने कहा था कि फैसलों के प्रभावों को देखते हुए न्याय करने की जिम्मेदारी बेहद बोझिल है। उन्होंने कहा था, हम छुट्टियों के दौरान भी फैसलों पर शोध करते हैं। इस प्रक्रिया में हम जीवन की खुशियां खो देते हैं।
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