अनुरेखा लांबरा, पानीपत:
पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आज पानीपत में आयोजित हिंद दी चादर गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाशोत्सव में हिस्सा लिया। कार्यक्रम में उन्होंने शीश नवाकर सच्चे पातशाह से मानव जाति की सुख-समृद्धि के लिए अरदास की।
पूरी मानवता के लिए पूजनीय हैं गुरु जी: हुड्डा
इस मौके पर हुड्डा ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी सिर्फ एक धर्म के नहीं, बल्कि पूरी मानवता के गुरु और पूजनीय हैं। उन्होंने उस दौर में देश, धर्म व मानवता के लिए बलिदान दिया जब देश मुगलों के अत्याचार झेल रहा था। पानीपत में आयोजित राज्य स्तरीय कार्यक्रम में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सरकार से मांग करी कि ऐसी महान विभूति की याद में हरियाणा स्थित धमतान साहिब में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कॉलेज व रिसर्च सेंटर बनाया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को अच्छी शिक्षा मिले और गरीब व दीन-दुखी की सेवा हो सके।
बताया- त्याग और बलिदान की मिसाल
हड्डा ने कहा कि यह हम सबके लिए गर्व की बात है कि हरियाणा प्रदेश आज हिंद दी चादर गुरु तेग बहादुर जी का 400वां प्रकाशोत्सव मना रहा है। गुरु तेग बहादुर जी साहस, त्याग, बलिदान और आपसी प्रेम की वो मिसाल थे, जिन्हें मानव जाति कभी नहीं भुला सकेगी। गुरु जी की शिक्षा और सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। आज भी हमें उनके जीवन से धार्मिक सहिष्णुता, एकता और आपसी भाईचारे की सीख लेने की आवश्यकता है।
समूची मानवता के इतिहास में त्याग व बलिदान की इससे अनूठी मिसाल कहीं नहीं मिलती। जिनके दादा गुरु अर्जुन देव जी, खुद और उनकी पत्नी माता गुजरी जी, सुपुत्र गुरु गोबिन्द सिंह जी और उनके चारों सुपुत्र बाबा जुझार सिंह, अजीत सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह ने अपने धर्म, सिद्धांत, संस्कृति और स्वाभिमान के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उन्होंने सिर दिया पर सार न दिया अन्यायी और क्रूर औरंगजेब का गुरुर तोड़ दिया।
हर मोर्चे पर दोहरा संघर्ष किया सिख गुरुओं ने
हुड्डा ने कहा कि सिख धर्म का पूरा इतिहास हिन्दुओं के लिए तड़प, सहानुभूति और बलिदान का रहा है। गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिन्द सिंह जी तक सभी गुरुओं को दो मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ा। एक तरफ देश में फैले अंधविश्वास, सामाजिक बुराइयां, कुरीतियां, रुढ़िवादिता और धार्मिक भावनाओं के शोषण के विरुद्ध संघर्ष किया।
दूसरी तरफ मुगल शासकों के जुल्म, जबरदस्ती, अन्याय और धर्म परिवर्तन की चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया। उस दौर में उन्होंने अपने अनुयायियों में साहस, संगठन, समानता और बलिदान की भावना जगाई। उन्होंने ‘देग-तेग’, मीरी-पीरी की शानदार परंपरा को विकसित किया। लंगर और संगत प्रथा से संगठन, समानता और सौहार्द का निर्माण हुआ।