Bhiwani News : रक्षासूत्र में बांधने और बंधवाने वाले के बीच यह बंधन सुरक्षा का वचन देता है : राधा स्वामी कंवर साहेब

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This bond between the one who ties the Raksha Sutra and the one who gets it tied promises protection: Radha Soami Kanwar Saheb
रक्षाबंधन के अवसर पर दादरी के लोहारू रोड स्थित राधा स्वामी आश्रम में आयोजित सत्संग में परमसंत हुए  सतगुरु  कंवर साहेब जी महाराज।

(Bhiwani News) भिवानी। रक्षाबंधन के अवसर पर दादरी के लोहारू रोड स्थित राधा स्वामी आश्रम में आयोजित सत्संग में परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने संगत को आशीष वचन दिए और रक्षाबंधन के महत्व पर बोलते हुए कहा कि रक्षाबंधन के कई प्रसंग और कथाएं हैं, जिनमें अलग-अलग कहानियां हो सकती हैं, लेकिन उनका सार एक ही है—रक्षासूत्र में बांधने  और बंधवाने वाले के बीच यह बंधन सुरक्षा का वचन देता है।
हुजूर कंवर साहेब जी महाराज जी ने इस बात पर बल दिया कि यह वचन सिर्फ एक पारिवारिक परंपरा नहीं, बल्कि यह जीवनभर के लिए एक दूसरे की रक्षा और समर्पण का प्रतीक है। इस दृष्टि से, रक्षाबंधन केवल भाई-बहन के रिश्ते का पर्व नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य संबंध की भी महत्ता को दर्शाता है, जहां गुरु अपने शिष्य की आध्यात्मिक और जीवन के हर मोड़ पर रक्षा करने का वचन देता है।

सतगुरु की शिक्षाओं को पकडक़र चलना आवश्यक

उन्होंने मन, वचन, और कर्म को शुद्ध रखने पर जोर दिया है, जिससे व्यक्ति को सच्चे सुख और शांति की प्राप्ति होती है। उनका संदेश है कि किसी का मन दुखाना या कड़वे वचन बोलना न केवल दूसरों को चोट पहुंचाता है, बल्कि हमारे अपने आंतरिक शांति को भी भंग करता है। इसलिए, परोपकार और परमार्थ के कार्यों को अपने जीवन का आधार बनाना चाहिए। रक्षाबंधन के अवसर पर, महाराज जी ने गुरु-शिष्य संबंध की महत्ता को रेखांकित किया, जो रक्षाबंधन की भावना का सबसे बड़ा प्रतीक है। उन्होंने कहा कि जैसे भाई बहन की रक्षा का वचन देता है, वैसे ही गुरु भी शिष्य की रक्षा का वचन देता है। समाज में बढ़ती बुराइयों पर चिंता व्यक्त करते हुए, कंवर साहेब जी ने बताया कि कैसे आज की पीढ़ी टीवी और मोबाइल की गंदगी में उलझी हुई है, जबकि हमारे पूर्वजों ने धर्म और वीरता की कहानियों से जीवन को संजीवनी दी थी। उन्होंने महिमा का वर्णन करते हुए, उन्होंने कहा कि गुरु को केवल एक इंसान समझना गलत है; वह साक्षात् परमात्मा का रूप होते हैं। सतगुरु की शिक्षाओं को पकडक़र चलना आवश्यक है, क्योंकि सन्तों का बोया हुआ बीज कभी भी व्यर्थ नहीं जाता, वह अवश्य ही फलेगा। मुक्ति की प्राप्ति इसी जीवन में होनी है, और गुरु की बात मानकर इस जीवन को चार हिस्सों में बांटना चाहिए। महाराज जी ने कहा कि भक्ति हमारे भीतर ही है, जैसे लकड़ी में आग और दूध में मक्खन छिपा हुआ होता है।

 

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