(Bhiwani News) लोहारू। ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरागत रूप से प्रयोग की जाने वाली ऊंट व बैलगाडिय़ों के दिन एक बार फिर लौट आए हैं। पैट्रो पदार्थो की बढ़ती कीमतों व जोतों के घटते आकार ने किसानों को फिर से अपने सदियों के साथी रहे ऊंट व बैलों की याद दिला दी है। ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं ऊंट व बैलगाडिय़ों का विशेष रूप से प्रयोग कर रही हैं तथा इससे उनकी रोजमर्रा की जिंदगी काफी आसान हो गई है। अब ग्रामीण महिलाएं खेतों में आवागमन व सामान ढ़ोने का काम ऊंट व बैलगाडिय़ों से ही लेती हैं।
बैलों के गले में बजते डब घुंघरू और उनके पैरों से उठती गोधूली ग्रामीण भारत की पहचान रही
ट्रैक्टर की अपेक्षा ऊंट व बैलगाड़ी का नियंत्रण महिलाएं आसानी से संभाल लेती हैं और इनके प्रयोग से उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। उल्लेखनीय है कि बैलों के गले में बजते डब घुंघरू और उनके पैरों से उठती गोधूली ग्रामीण भारत की पहचान रही है। क्षेत्र के किसान हल जोतने, बोझा ढोने व सवारी का काम ऊंटों व बैलों से लेते रहे हैं। कृषि में बढ़ते मशीनीकरण के चलते किसान बैल व ऊंट की जगह ट्रैक्टरों से काम लेने लगे थे। करीब दो दशक तक किसानों ने ट्रैक्टरों का जमकर प्रयोग किया और बैलों व ऊंटों की कद्र घटती चली गई। अब पेट्रो पदार्थों के दामों में वृद्धि व सिकुड़ते खेतों ने किसानों को फिर से बैलों व ऊंटों की याद दिला दी है।
छोटे किसान के लिए वैसे तो ट्रैक्टर रखना कभी लाभदायक नहीं रहा और अब रही-सही कसर पेट्रोल डीजल की आसमान छूती कीमतों ने निकाल दी है। ऊंट व बैल किसान के घर में अन्य पशुओं के साथ ही सस्ते में अपना गुजारा कर लेते हैं तथा इनको जोतना आसान व सुरक्षित है। यही कारण है कि किसान, खासकर उनकी औरतें अब बड़े पैमाने पर ऊंट व बैलों का प्रयोग करने लगी हैं।
ट्रैक्टर पर आना-जाना, उससे खेती करना व सामान ढोना काफी महंगा
ग्रामीण किसान महिलाओं ने बताया कि हमारे खेत गांवों से दूर पड़ते हैं। ट्रैक्टर पर आना-जाना, उससे खेती करना व सामान ढोना काफी महंगा पड़ता है। उन्होंने बताया कि खेतों में जाकर प्रतिदिन चारा काटकर लाना व अन्य कुछ कृषि कार्य महिलाओं को ही करने पड़ते हैं। ऊंट व बैलगाड़ियों से उनको काम में काफी सुविधा हो गई है। किसानों ने बताया कि ट्रैक्टर रखना आम किसान के वश की बात नहीं है। एक अच्छा बैल और उसकी गाड़ी 25 से 30 हजार रुपये में तैयार हो जाती है जबकि ऊंट की कीमत भी एक लाख रुपये के आसपास पड़ जाती है।
यह आम पशु वाला ही चारा खाता है, इसलिए ऊंट व बैल रखना किसान के लिए काफी सस्ता है। किसान ऊंट व बैलगाड़ी से खेतों से माल लाते हैं व हल जोतने का काम भी इन से ही कर लेते हैं।
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