- अपने अपने दावों के बीच बना रहे हार-जीत के समीकरण
(Bhiwani News) लोहारू। विधानसभा चुनावों को लेकर दिनोंदिन राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ रही है तथा उम्मीदवारों का प्रचार अभियान भी अब अंतिम दौर में पहुंच गया है। इसी बीच चुनावी चर्चाओं के लिए ग्रामीण चौपालों पर लोगों को मंच मिल रहा है। इन दिनों चौपालों, हुक्कों व सार्वजनिक स्थानों पर सुबह, शाम, देर रात तक चुनावी चर्चाओं ने अन्य सभी सामाजिक, पंचायती मुद्दों को पीछे छोड़ दिया है।
इनमें प्रदेश से लेकर स्थानीय स्तर पर बनने वाले चुनावी हालातों, विभिन्न प्रत्याशियों की स्थिति, सियासी भागदौड़, जातीय समीकरण से जुड़ी हल्की से लेकर गंभीर चर्चाएं शामिल होती हैं। चौपालों पर हुक्कों के धुएं के साथ कभी कभी इतनी गर्मी भी आ जाती है कि चर्चाएं बड़ी बहस में तबदील हो जाती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में चौपालों के अलावा आज भी बड़ी संख्या में ऐसे दरवाजे, सार्वजनिक स्थान व मौजिज लोगों के निवास है जहां शाम होते ही जमघट लगना शुरू हो जाता है। वहां हुक्कों को गुडग़ुड़ाते बुजुर्गो के साथ युवा भी विभिन्न मुद्दों पर अपनी बेबाक बात कहते हैं। गांवों में चौपालों के रूप में लगने वाली महफिलों में चुनावी चर्चाओं से रौनक भी बढ़ गई है।
वक्तव्यों की होती है समीक्षा:-
ग्रामीण हुक्का चौपालों पर चुनावों के साथ-साथ विभिन्न सियासी पार्टियों के नेताओं के अखबारों व चैनलों पर आने वाले वक्तव्यों की ग्रामीण अपने-अपने अंदाज में समीक्षा करते दिखाई देते हैं। इनमें ताजा हालातों व विभिन्न नेताओं के बयानों पर बारीकी से खूब मंथन होता है। विधानसभा क्षेत्र को लोग दो हिस्सों में बांटते रहे है, एक तो बहल सिवानी क्षेत्र व दूसरा लोहारू। ऐसे में क्षेत्रीय, जातीय समीकरण को लेकर भी समीक्षा होती है जिसके सहारे माहौल को लेकर भी समीकरण बनाए जा रहे है। चौपालों पर विभिन्न उम्मीदवारों के आरोपों प्रत्यारोपों, चुटीले वक्तव्यों को बेहद रोचक ढंग से पेश किया जाता है। उम्मीदवारों की बात के कई अर्थ ढूंढे जाते हैं तथा उनके प्रभाव पर कई देर तक चर्चा गर्म रहती है।
नतीजों को लेकर लगते हैं कयास:-
ग्रामीण क्षेत्रों की हुक्का चौपालों में अपने-अपने अनुभव व अनुमानों के आधार पर लोग इस बार के चुनाव को खास मान रहे है तथा इनके संभावित नतीजों को लेकर भी कयास चुनाव से पूर्व ही लगाए जा रहे है। इन चौपालों में जाति के आधार पर कई उम्मीदवारों को मजबूती से पेश कर रहे है तो कईयों को झटका भी दे रहे है। उम्मीदवार भी इससे चिंतित नजर आ रहे है तथा युवा से लेकर बुजूर्गो तक को चुनाव विश्लेषक से कम नहीं मान रहे है। इन चौपालों के समर्थन को भी वे हवा का रुख बदलने के तौर पर देखते हैं। अलग-अलग गांवों व क्षेत्रों में ग्रामीण चौपालों पर वहां के माहौल का असर देखा जा सकता है।
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